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पत्नीत्व का सुख दिया है? विनोद दफ्तर से लौटता है और तुम मुसकरा कर उस का स्वागत करने के बजाय उसे जलीकटी सुनाने लगती हो. उस पर तरहतरह के लांछन लगाती हो. आखिर कोई कब तक बरदाश्त कर सकता है? वह होटल में नहीं जाएगा तो क्या करेगा?’’ वह क्रोध और आवेश में सुनयना पर बरस पड़ा. सुनयना इस अपमान को बरदाश्त नहीं कर पाई. तिलमिला कर उठ गई, ‘‘जीजाजी, आप मेरा अपमान कर रहे हैं. हमारी घरेलू जिंदगी में दखल दे रहे हैं आप.’’

‘‘मैं मानता हूं कि मैं तुम्हारी घरेलू जिंदगी में दखल दे रहा हूं. मगर तुम्हें भी हमारे घरेलू मामलों में दखल देने का क्या अधिकार है? तुम क्यों हमारे घर की बरबादी पर जश्न मनाना चाहती हो? तुम यहां किसलिए आती हो? इसीलिए न कि तुम जया को हम सब के खिलाफ भड़का सको, इस घर की शांति को भी खत्म कर सको? अपना घर तो तुम ने तबाह कर ही लिया है, अब हमारा घर तबाह करने पर तुली हुई हो.’’ सुनयना इस अपमान को झेल नहीं पाई. क्रोध और आवेश में आ कर वह जाने लगी, ‘‘जया, मैं नहीं जानती थी कि इस घर में मेरा इस प्रकार अपमान होगा.’’ जया ने उसे रोकना चाहा मगर वह उसे मना करते हुए बोला, ‘‘उसे जाने दो, जया, और उस से कह दो कि फिर कभी हमारे घर न आए. हमें ऐसे हितचिंतकों की जरूरत नहीं है.’’ सुनयना चली गई तो जया रोने लगी,  ‘‘यह आज आप को क्या हो गया है? आप ने मेरी बहन का अपमान किया है.’’

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