‘‘इनसान को भूख हर पल तो नहीं लगती न. इस पल इस जरा सी जान को पिता के प्यार की भूख है. पिता पास नहीं हैं, नताशा को पति का प्यार चाहिए, पति पास नहीं है, मां इस पल यही सोच कर बेचैन हैं...अगर मर गईं तो बेटा आग भी दे पाएगा या नहीं, बुढ़ापे को जवान बेटा चाहिए जो दूर है. आज ये सब लोग उस इनसान के भूखे हैं कल नहीं रहेंगे. आदत पड़ जाएगी इन्हें भी उस के बिना जीने की. इन की भूख धीरेधीरे मर जाएगी. यह जीना सीख जाएंगे. ऐसा ही होता है सोम जब भूख हो तभी कुछ मिले तो संतुष्टि होती है. हर भूख का एक निश्चित समय होता है.’’
सांस रोके मैं उसे सुन रहा था.
‘‘ऐसा ही होगा इस बच्ची के साथ भी. धीरेधीरे पिता को भूल जाएगी. नताशा का भी पति से बस उतना ही मोह रह जाएगा जितना डालर का भाव होगा. आज वह इन के मोह को पीठ दिखा कर चला गया कल जब उसे जरूरत होगी इन लोगों के मन मर चुके होंगे. किसी के प्यार का तिरस्कार कभी नहीं करना चाहिए सोम. बदनसीब है वह पिता जो आज इस बच्ची का प्यार नकार कर चला गया. मैं होता तो इतनी प्यारी बेटी को छोड़ कभी नहीं जाता. रुपया रुपया होता है, सोम. वह भावना का स्थान कभी नहीं ले सकता.’’
‘‘तुम शादी क्यों नहीं करते विजय. पता चला था तुम ने फैसला ही कर लिया है...क्या मिन्नी का इंतजार कर रहे हो. उस की हो जाए उस के बाद करोगे.’’