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आईएएस की ट्रेनिग के बाद मेरी पहली पोस्टिंग जिला नागौर के डीएम के रूप में हुई. राजस्थान कैडर की अधिकारी थी, जानती थी राजस्थान के किसी जिले की डीएम बना कर भेजी जाऊंगी. लेकिन पहली बार में मुझे होम स्टेशन मिलेगा, इस की उम्मीद नहीं थी.

मुझे जब ट्रेनिंग संस्थान के प्रिंसिपल साहब ने इस पोस्टिंग के बारे और मेरी मूवमैंट के बारे में

जिलाधिकारी को लिखे सारे पत्र सौंपे तो मेरी आंखें आश्चर्य से खुली रह गईं.

‘‘मैं आप के यहां तक पहुंचने के संघर्ष को जान गया था. मैं ने गृह मंत्रालय से कह कर आप की पोस्टिंग नागौर की करवाई है. क्यों खुश नहीं हो?’’

‘‘सर, बहुत खुश हूं. थोड़ा हैरान जरूर हूं कि इतनी जल्दी मुझे उन अपनों के चेहरों के भाव

देखने को मिलेंगे जिन्होंने पगपग पर मेरे लिए कठिनाइयां उत्पन्न कीं, विरोध किया, पढ़ाई में

अड़चनें डालीं. मैं समझती हूं, मेरा पैतृक कसबा जायल भी इसी नागौर जिले के अंतर्गत आता है.’’

‘‘जिला नागौर ही है लेकिन तहसील डीडवाना के अंतर्गत आता है. तुम्हारे अधिकार क्षेत्र में रहेगा.

जाओ, उन के चेहरों के भाव देखो और खूब काम करो. मेरी शुभकामनाएं.’’

जब मेरी ट्रेन नागौर रेलवे स्टेशन पर पहुंची तो सुबह के 8 बज चुके थे. स्टेशन पर मुझे लेने के

लिए 2 महिला इंस्पैक्टर और डीएम औफिस के इंचार्ज आए हुए थे. उन को मुझे पहचानने में कोई दिक्कत नहीं इुई. महिला इंस्पैक्टर ने मुझे सैल्यूट किया. औफिस इंचार्ज ने भी इसी तरह का सम्मान व्यक्त किया.

‘‘मैडम, जब तक आप को सरकरी क्वार्टर अलौट नहीं हो जाता तब तक आप को नागौर रैस्ट हाउस में कमरा अलौट किया गया है.’’

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