‘‘मैडम, आप अपने खाने का मीनू बताएं.’’
‘‘मैं शुद्ध शाकाहारी हूं. उसी के अनुसार मेरा भोजन तैयार करवाएं.’’
‘‘जी मैडम.’’
इंस्पैक्टर संगीता ने फोन मिलाया और नाश्ते का आदेश दिया, ‘‘2 आलू के परांठे और एक गिलास दूध रूम नं. 402 में.’’
‘‘मैडम, आप फ्रैश हो लें. तब तक नाश्ता आ जाएगा. आज शनिवार है. डयूटी तो सोमवार से शुरू होनी है. नाश्ता यहां रूम में आ जाएगा. लंच और डिनर आप को नीचे ग्राउंडफलोर पर डाइनिंग हाल है, वहां बैठ कर करना होगा.’’
मैं ने उन की बात सुनी और फ्रैश होने चली गई. बाहर निकली तो नाश्ता आया हुआ. मैं ने प्रकृति को हाथ जोड़े और नाश्ता किया.
इंस्पैक्टर संगीता ने पूछा, ‘‘अगर कहीं घूमना पसंद करें तो हमें फोन करें, हम हाजिर हो
जाएंगे. कृपया हमें सूचित किए बिना आप कहीं न जाएं. आप की सुरक्षा हमारे लिए सर्वोपरि है.’’
मैं ने स्वीकृति में सिर हिलाया और कहा, ‘‘अभी तो मैं रैस्ट करूंगी. शाम को मुझे कुछ पर्सनल
सामान खरीदने के लिए सुपरमार्केट जाना होगा. मैं आप को बता दूंगी.’’
‘‘मैम, आप को कभी चाय की जरूरत पड़े तो आप इंटरकौम से मंगवा सकती हैं.”
मैं ने थैक्स कहा. दोनों ने सैल्यूट किया और चली गईं. मैं पलंग पर लेट गई और अपने जीवन
संघर्ष के प्रति सोचने लगी, ‘मैं 6ठी में थी जब मुझे पहली बार पीरियड हुआ था. मुझे इस के प्रति पता नहीं था. मां ने संभालते हुए कहा था, ‘मैं भी 6ठी में थी जब पीरियड हुई थी.’ मैं ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी. तुम भी छोड़ देना. तुम से मैनेज नहीं हो पाएगा.’’
मैं ने मां की बात का जवाब तो नहीं दिया था लेकिन मेरे नन्हें मन में प्रश्न जरूर था कि पीरियड का पढ़ाई से क्या संबंध है? इस का उत्तर मेरे पास नहीं था.