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दिल की भावनाओं को रिश्ते में परिभाषित करना जरूरी है क्या? क्यों उन्हें कोई नाम दिया जाए. दो दिल एकदूसरे को समझ रहे हैं, क्या यह काफी नहीं है?

‘फूल तुम्हें भेजा है खत में, फूल नहीं मेरा दिल है…’ गौरवी ने सुबह से ही ‘कारवां’ चला रखा था. 5,000 गाने हैं उस में. लौकडाउन के कारण आजकल इन्हीं गानों के सहारे तो उस का दिन कटता है, नहीं तो समझ नहीं आता कि करे तो क्या करे.

इतना पुराना यह गाना सुन कर गौरवी को फिर से करण की याद आ गई. खत कौन लिखता है भला अब. व्हाट्सऐप से झट से अपने दिल का हाल पहुंचा देते हैं अपनों को. यही तो जरिया है अपना दिल बहलाने का.

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लेकिन करण मैसेज भी कहां करता है. कहता है कि उस की आदत नहीं ज्यादा लिखनेपढ़ने की. वीडियो भेजा करूं उसे. अब भला अपने मन की बात कहने के लिए मैं वीडियो भेजूंगी.

अच्छा लौकडाउन हुआ है. पता नहीं अब कब मिलना होगा. 15 दिन में एक बार मिल लेते थे, तो दिल को चैन पड़ जाता था. अब लगता है 4-5 महीने तक मिलना नहीं हो पाएगा.

ओफ, करण कितना मिस कर रही हूं तुम्हें. एक साल ही तो हुआ है करण को उस की जिंदगी में आए. विकास के बाद कोई और उस की जिंदगी में आएगा, कल्पना भी नहीं की थी उस ने. विकास को कितना प्यार करती थी वह. वह भी दिलोजान से चाहता था उसे. बेशक अरेंज्ड मैरिज थी उन की लेकिन दोनों की चुहलबाजी, प्यार करने का अंदाज बौयफ्रैंडगर्लफैं्रड जैसा था. विकास अकसर कहता था उस से, ‘गौरवी, मैं ने अच्छा किया कि जल्दी शादी नहीं की वरना तुम मुझे कैसे मिलती.’

दोनों की पसंद भी एकजैसी थी. विकास शौकीनमिजाज था. पढ़ाई में अव्वल तो नहीं कहेंगे लेकिन स्कूलकालेज की बाकी सब ऐक्टिविटीज में सब से आगे रहता. पर्सनैलिटी ऐसी थी कि लड़कियां मरती थीं. लेकिन विकास अपनी ही धुन में रहता था. ऐसा नहीं था कि लड़कियों में उसे इंट्रैस्ट नहीं था, लेकिन पता नहीं क्यों तेजतर्रार, ज्यादा बोलने वाली लड़कियां उसे भाती नहीं थीं.

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गौरवी एक ही नजर में दिल में उतर गई थी. उस की बड़ीबड़ी आंखें, सलोना मुखड़ा, धीरेधीरे बोलना उसे इतना भाया कि झट शादी के लिए हां बोल दी. कहां तो शादी की बात भी करना नहीं चाहता था और अब हालत यह थी कि चाहता था महीने के अंदर ही शादी हो जाए. अपने लिए विकास का यह उतावलापन गौरवी को भी भा गया था. एक तरह से गुमान हुआ था अपनेआप पर कि जिस पर इतनी लड़कियां मरती हैं उस ने उसे पसंद किया है. फिर वही हुआ, जैसा विकास चाहता था. महीने के भीतर ही सगाई हुई और फिर शादी. हनीमून के लिए मनाली गए थे वे दोनों.

आज भी सोचती हूं तो वे दिन एक सपने से लगते हैं. कितने रंगीन दिन थे. घूमनाफिरना, खानापीना, एकदूसरे को रिझाना, लुभाना और प्यारभरी बातें, मदभरी रातें. अब भी कभी वे दिन याद आते हैं तो आंखें गीली हो जाती हैं. काश, पुराने दिन वापस आ पाते.

ओफ, क्यों याद आती है पुराने दिनों की. खुशियों से भरे दिन थे, तब ही तो मन में याद कर कसक सी उठती है. शादी के बाद बहुत जल्द ही वह 2 बच्चों की मां बन गई थी. खुद को डूबो दिया था उस ने उन की देखभाल में. वह तो नौकरी भी नहीं करना चाहती थी. उस की सोच हमेशा से यही रही थी कि बच्चों की जिम्मेदारी ली है तो उन्हें अच्छी परवरिश दो. लेकिन विकास को उस का घर में सिर्फ बच्चों के लिए नौकरी छोड़ कर बैठ जाना गवारा न था. वे बोलते, ‘गौरवी, मम्मी हैं न बच्चों की देखरेख के लिए. फिर फुलटाइम मेड भी रख ली है, क्या जरूरत है नौकरी छोड़ने की. घर में रहने से औरत की सारी स्मार्टनैस खत्म हो जाती है. मुझे घरेलू टाइप औरतें बिलकुल पसंद नहीं हैं.’

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