लेखक- अमित अरविंद जोहरापुरकर
महाराज गाड़ी ले कर दीवार के पास पहुंचे, जहां इंस्पेक्टर जड़ेजा गिरे थे उस जगह बैरिकेड लगे हुए थे और बगल में एक कांस्टेबल कुरसी डाले बैठा हुआ था.इंद्रपुरी महाराज यहां जब आते थे, तब बावरिया देवी के मंदिर में शहर में कोई अनुष्ठानपूजा हो तो वहीं जा कर सीधा निकल जाते थे.
इस बस्ती में वह कब आए, उन्हें खुद भी याद नहीं आ रहा था. उन का जो मठ था, वहीं आते थे. इसीलिए ऐसी विचित्र परिस्थितियों में इस बस्ती में आते हुए उन के दिल पर एक बड़ा बोझ आ गया था. वह दीवार पार कर पगडंडी पर चलते हुए बस्ती में घुस गए. शुरू में एकदो मंजिल के मकान थे. बस्ती के बाकी मकानों की अपेक्षा यह थोड़ा ठीकठाक बनावट का लग रहा था.
घर के अंदर से गिटार बजाने की आवाज आ रही थी. बावरा लोग और गीतसंगीत, यह चोलीदामन का जोड़, फिर भी इन सुरों में अलग मजा था, उस से वह दो पल के लिए सब भूल गए. दरवाजे पर खटखटाहट सुन कर एक औरत चिल्लाते हुए बाहर आई, लेकिन महाराज को सामने खड़ा देख उस ने अपना पल्लू सिर पर ओढ़ लिया.
"बापू आप... आइए, अंदर आइए," वह बोली. महाराज अंदर गए. उस कमरे में एक बड़ा सा सीएफएल बल्ब लगा हुआ था. भड़कीले रंग का एक सोफा सेट और उस के बगल में एक बड़ी चारपाई. उस पर बैठ कर 2 लड़के गिटार और ड्रम बजा रहे थे. "मालिक तो काम पर गए हैं, बापू. वह कालूपुर में चोखा बाजार में काम करते हैं," उस औरत ने कहा.