लेखक- अमित अरविंद जोहरापुरकर
“यहां रोकिए, मुझे इन से बात करनी है,” महाराज बोले. “उस की इजाजत नहीं है,” इंस्पेक्टर जड़ेजा तुरंत बोले. तभी इंद्रपुरी महाराज ने एक जींस और टीशर्ट पहनी हुई एक गौरवर्णी युवती को देखा. “यह देवीजी कौन हैं? बावरा तो लग नहीं रहीं,” उन्होंने पूछा.
“यह तो बड़ा सिरदर्द है. मुंबई से लोग यहां सोशल सर्विस करने आते हैं और ख्वाहमख्वाह हमारी परेशानी बढ़ती है…” उन्होंने बड़ी ही तुच्छता से जवाब दिया. जीप आगे चल कर दीवार पार कर के वापस रास्ते पर खड़ी कर दी.
“देखिए, कुछ ज्यादा चलना नहीं पड़ेगा आप लोगों को यहां. इतना सा घूम कर तो बाहर आ सकते हैं. लेकिन इस दीवार की वजह से अब यह इलाका कितना साफसुथरा दिख रहा है, वह सोचिए.” जीप रुक गई तो सारे लोग नीचे उतर गए. वे लोग जहां खड़े थे, वह जगह दीवार के मध्य थी.
“आप लोग इन लोगों को उन के हाल पर जीने दें, उन्हें पढ़ाईलिखाई की सुविधा दें और शराब के धंधे ना करवाएं तो वैसे ही गंदगी कम हो जाएगी,” महाराज छद्महास्य कर के बोले. इंस्पेक्टर जड़ेजा उस पर कुछ बोलने के लिए सोच कर झाला की ओर देख रहे थे, लेकिन तभी एकदम से खट कर के आवाज आई और अपने दाहिने हाथ से सिर पकड़ कर इंस्पेक्टर जड़ेजा नीचे गिर गए.
झाला दौड़ते हुए उन के पास गया और उन्हें सीधा किया. तब तक नीचे जमीन पर काफी खून उतर गया था. उन के दाहिने कान पर गोली लगी थी, ऐसा प्रतीत हुआ. झाला ने नब्ज देख कर कहा, “शायद, ये तो चल बसे हैं.”अचानक झाला उठ कर खड़ा हुआ और महाराज के सामने बंदूक तान कर बोला, “पीछे हटो.. दीवार से सट कर खड़े हो जाओ, और हाथ ऊपर करो.”
“मैं ने उन्हें नहीं मारा. मैं तो उन से ही बात कर रहा था. और मेरे पास पिस्तौल कहां है,” महाराज बोले. लेकिन झाला की घिनौनी खूंख्वार नजरें देख कर उस ने जो कहा वही करना मुनासिब समझा और वे पीछे हट कर दीवार के पास खड़े हो गए. तब तक झाला ने फोन कर के पुलिस एम्बुलेंस मंगवा ली.
स्टेडियम की तरफ खड़े कुछ लोग वहां तब तक आ पहुंचे थे. “अभी हम ने बंदूक की आवाज सुनी. अब तो यहां पुलिस भी सलामत नहीं है. यह बस्ती तो हटवानी ही पड़ेगी,” उन में से एक आदमी बोला. लोगों की भीड़ जमा होने के पहले ही पुलिस की कार और एम्बुलेंस वहां आ पहुंची.
उन्होंने झाला से बात की और इंस्पेक्टर जड़ेजा का शव जहां पड़ा था, वहां बैरिकेड लगा कर बंद की, और एम्बुलेंस से उतरे हुए स्टाफ ने उन का जिम्मा ले लिया. 2 पुलिस वाले इंद्रपुरी महाराज को और दूर ले गए. आधे घंटे बाद झाला एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को ले कर महाराज के पास पहुंचा, तब तक पुलिस ने पंचनामा कर बौडी अस्पताल भिजवा दी थी.
एक अधिकारी ने कहा, “देखिए, औकात दिखा दी आप लोगों ने.” उन का नाम एसपी नागर है, ऐसा महाराज ने उन की छाती पर लगा हुआ देखा. वे काफी वरिष्ठ लग रहे थे. “साहब, मुंह संभाल कर बात कीजिए. मैं केंद्र सरकार के एक आयोग का प्रतिनिधि हूं, और इंस्पेक्टर जड़ेजा तो मुझे यह दीवार दिखा रहे थे, तब उन की हत्या हुई.”
“मुझे भी यह सब क्या हुआ, कैसे हुआ, समझ नहीं आ रहा है. गोली तो आप की बस्ती से ही आई है. आप ही उन को अंदर ले गए थे. तब तक सारी तैयारी कर ली होगी आप लोगों ने,” एसपी नागर मुसकरा कर बोले. “यह तो गलत बात है साहब. गोली कहां से आई, यह तो किसी ने नहीं देखा.” “ठीक है, आप को हमारे साथ पुलिस स्टेशन आना पड़ेगा,” वहां बढ़ती हुई भीड़ और उस में दिखाई दिए कुछ रिपोर्टर्स को देख कर वह बोले.
असिस्टेंट कमिश्नर औफिस में बाहर ही एक लकड़ी की बेंच पर इंद्रपुरी महाराज 2 घंटे तक बैठे रहे. आखिर शाम को 5 बजे उन्हें अंदर बुलाया गया. “हमारे पास रिपोर्ट आ गई है. गोली काफी दूर से दागी गई थी. शायद दूरबीन लगी हुई बंदूक इस्तेमाल हुई है. “यह काफी गंभीर मसला है. अगर आप लोगों में से जो खूनी है, वह खुद सामने आ कर आत्मसमर्पण नहीं करता है, तो हम परसों सुबह यह बावरा बस्ती खाली कर देंगे.
“शायद मिलिटरी की भी मदद लेनी पड़े. दिनदहाड़े एक पुलिस अफसर की हत्या होने लगे तो पब्लिक हमें क्या कहेगी?” असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर एसपी नागर ने कहा. “आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?” महाराज चौंक कर बोले. “हमें क्या करना है, यह आप हमें मत सिखाइए. पुलिस जान जोखिम में डाल कर काम करती है. वह ऐसे चोरों से गोलियां खाने के लिए नहीं.
“यह काफी गंभीर गुनाह है. वैसे भी यह बस्ती गैरकानूनी है. ऐसी जगह को पनपने देना, मतलब हमारे इस खूबसूरत शहर को जानबूझ कर गंदा करना है.””मुझे आयोग के कुछ लोगों से और दिल्ली के भी कुछ अधिकारियों से बात करनी पड़ेगी,” महाराज बोले. “जरूर बोलिए, आप के पास चौबीस घंटे हैं. उतने समय में आप खूनी को हाजिर कीजिए,” एसपी नागर हंस कर बोले.
वहां से एक रिकशा पकड़ कर महाराज कलवाड पुलिस स्टेशन पर आए और अपनी कार ले कर वह बावरा बस्ती की ओर चल पड़े. वहां पहुंच कर लंबी दीवार देख उन के पेट में भी बल पड़ गए. वह बचपन से ही अहमदाबाद आ रहे थे. पहले पिताजी के साथ और बाद में खुद अकेले ही. पहले शहर के तालाब से सट कर जो बस्ती थी, वहां बावरा लोग रहते थे. अब यहां की जगह पर उन्हें 35 साल से ज्यादा का समय हो गया था.