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लेखक- अमित अरविंद जोहरापुरकर

"आप महंत हैं... मतलब, साधु हो ना?" इंस्पेक्टर जड़ेजा ने कड़ी आवाज में इंद्रपुरी महाराज से पूछा. अहमदाबाद शहर के उत्तरी छोर पर एयरपोर्ट से 10 किलोमीटर दूर कलवाड पुलिस स्टेशन में महंत इंद्रपुरी महाराज इंस्पेक्टर जड़ेजा के सामने बैठे हुए थे.

खानाबदोश जाति आयोग ने उन्हें यह काम नहीं सौंपा होता तो वह अहमदबाद से अब तक कच्छ में अपने मठ में वापस पहुंच गए होते. इंस्पेक्टर जड़ेजा की आवाज में दिख रही तुच्छता को अनदेखा कर महाराज बोले, "बापू, मै महंत हूं... मेरे बावरा लोगों के लिए. आप के लिए तो मैं एक आम आदमी हूं. यहां अहमदाबाद में मैं एक अनुष्ठान के लिए आया था."

इंस्पेक्टर जड़ेजा अब और बेरहमी से बोले, "इन बावरा लोगों का काम क्या होगा, चोरी या लूटमार. मैं कहे देता हूं, यहां मेरे इलाके में मैं कुछ भी तमाशा नहीं चलने दूंगा.""बापू, मैं क्या तमाशा करूंगा? मैं तो यहां अपने काम से आया था. लेकिन दिल्ली से आयोग ने मुझे कहलवा भेजा कि यह जो दीवार का इंस्पेक्शन कर के उन को रिपोर्ट दूं. सरकार एयरपोर्ट के रास्ते पर जो बावरा बस्ती है, उस के सामने जो लंबीचौड़ी दीवार नई बनी है, वो गलत है, ऐसा हमारा कहना है. उसी की बात करने तो मैं यहां आया हूं."

"आप जिसे दीवार कह रहे हैं, वह तो कंपाउंड वाल है. ऐसी कंपाउंड वाल तो जगहजगह बनाई जाती है. आप ही के लोग रास्ते पर आ कर गंदगी करते हैं, आसपास की बस्तियों में चोरियां करते हैं."अब देखिए, इस रास्ते पर इतनी अच्छी बंगलोज सोसाइटी है. इतना बड़ा स्टेडियम बन रहा है. अब ये सब लोग इतनी मेहनत से देश की तरक्की कर रहे हैं. वो सिर्फ यह गंदगी देखते रहे?" अब तक इंस्पेक्टर जड़ेजा के साथ शांति से बैठ कर बातें सुनते हुए शाह साहब बोले.

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