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अब जब भी शिव शाम को सैर के लिए निकलते, जया को साथ लेना न भूलते. जया भी तैयार हो कर उन की बाट जोहती. बोलतेबतियाते, एकदूजे के सुखदुख बांटते वे बहुत दूर निकल जाते. रास्तेभर शिव जया का खयाल रखते और जया भी उन के अपनेपन की ठंडी फुहार में भीगती रहती. कभी गगनचुंबी पेड़ों के नीचे बैठ कर वे अपनी थकान मिटाते तो कभी  झील के किनारे बैठ पानी में तैरने वाले पक्षियों से बच्चों की तरह खेलते.

न जाने कितनी बार शिव ने जया के दिवंगत को जानने के लिए उसे कुरेदा होगा पर उस की पलकों पर उतर आए खामोशियों के साथ को ही समेट कर इतना ही जान सके कि 30 साल पहले उस के पति की मृत्यु कार दुर्घटना में हुई थी. अपने बेटे यश को उन्होंने अपने बलबूते पर इतना काबिल बनाया है. जहां पर शिव अपनी पत्नी पद्मा को याद कर विह्वल हो जाते थे वहीं पर जया

अपने पति की स्मृति से उदासीन थी. उस की असहजता को देखते हुए उन्होंने उस के अतीत की चर्चा फिर कभी नहीं की. कुछ ही दिनों में जया और शिव के बीच की औपचारिकताएं न के बराबर रह गईं. घर के सदस्यों को अपने गंतव्य की ओर जाते ही या तो शिव जया के पास आ जाते या जया उन के घर चली जाती. दिनभर का लंबा साथ उन दोनों को ताजगी से भर देता. फिर देश भी ऐसा कि जहां किसी को किसी और को देखने की फुरसत नहीं होती है. बहुत हुआ, तो हायहैलो कहकह कर आगे बढ़ गए.

ऊंचेनीचे कटे चट्टानों पर उगे जंगलों के बीच बने आलीशान महलों को निहारते समय शिव हमेशा जया की कलाई को थामे रहते. जया को थोड़ा सा भी लड़खड़ाना शिव को बेचैन कर देता. जिस तत्परता से शिव उसे अपनी बांहों में समेटते, उतनी सहजता से जया उन की बांहों में सिमट आती, फिर सकपका कर अलग हो जाती. वहां पर किसी को किसी से मतलब ही कहां कि ऐसी छोटीछोटी बातों को तूल दे. ऐसे ही मधुयामिनी बने उन दोनों के दिन गुजरते रहे.

बारिश और धूप की आंखमिचौली शिव और जया के बीच की दूरियां समाप्त करती रही. एकदूसरे में वे ऐसे खोए कि विगत की सारी खट्टीमीठी यादें विस्मृत हो गई थीं. जया के सघन घने बाल शिव के कंधे पर कब लहराने लगे, कब शिव जया को अपनी भुजाओं में समेटने लगे, यह सोचने के लिए उन दोनों को होश ही कहां था.

एकदूसरे में समाहित होने की व्यग्रता को उन का मर्यादित विकल मन अथक प्रयास को  झेलता रहा. स्वयं के परिवर्तित रूप पर दोनों आश्चर्यचकित थे. 5 दिनों के साथ के बाद सप्ताहांत के अंतिम 5 दिनों में जब दोनों के परिवार घर में रहते थे, तो इस उम्र में भी वे एकदूजे के सान्निध्य को तड़प उठते थे.

हमेशा अकेलेपन का रोना रोने वाली उदासी की प्रतिमूर्त बनी जया के चेहरे पर छाई खुशियों की लालिमा उन के बेटे यश और बहू अणिमा से छूटी नहीं रही. जया को खुश देख कर यश की प्रसन्नता का कोई ओरछोर नहीं था. यश ने जब से होश संभाला, उस ने जया को हमेशा ही उदास और सहमा हुआ पाया. अपने पापा की गरजती आवाज से डर कर हमेशा वह जया की गोद में छिप जाया करता था. दूसरों के समक्ष अकारण ही मम्मी को तिरस्कृत करना, उन के कामों में नुक्स निकालना, उन के मायके वालों को अनुचित बातें कहना, सभी अपनों के साथ अप्रिय आचरण करना आदि पापा की बेशुमार असहनीय आदतें थीं.

औफिस हो या घर, शायद ही कोई उन्हें पसंद करता था. उसे याद नहीं कि उन्होंने अपने इकलौते बेटे को गोद में उठा कर कभी प्यार किया हो. बाद में उस ने जाना कि मम्मी का अपार सौंदर्य की स्वामिनी के साथ अति प्रतिभाशालिनी होना अतिसाधारण रंगरूप और अतिसाधारण शैक्षणिक योग्यता रखने वाले पापा को कभी न सुहाया. उन में  झूठी गलतियां निकाल, उन्हें अकारण तिरस्कृत कर के जब तक जीवित रहे अपने अहं को संतुष्ट करते रहे. आएदिन शराब के नशे में मम्मी को शारीरिक रूप से प्रताडि़त कर के अपनी खी झ उतारते रहे.

समझ आने पर जब भी उस ने मम्मी को बचाने की कोशिश की, पापा ने उसे रुई की तरह धुन कर रख दिया. पापा की इन्हीं गतिविधियों के कारण उन से प्यार करना तो दूर, वह कभी उन का यशोचित सम्मान भी न कर सका. उस के लिए सारे रिश्तों की पर्याय उस की मां ही बनी रही. कार दुर्घटना में हुई पापा की मृत्यु ने दुख के बदले आए दिनों की जिल्लतों से उन्हें मुक्ति ही मिली थी. मैथ्स विजार्ड कही जाने वाली उस की मम्मी ने कोचिंग सैंटर क्या जौइन किया कि घर में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की कतार लग कर उन की सारी आर्थिक समस्याओं का समाधान कर गया. आज वह जो कुछ भी है, अपनी मम्मी की अटूट साधनाओं व तपस्याओं के कारण ही.

जीवन में हर स्त्री को सुयोग्य जीवनसाथी की कल्पना होती है. मम्मी को वह कभी नहीं मिला. पूरा जीवन अपनी आशाओं, आकांक्षाओं और कामनाओं के दहकते रेगिस्तान में नंगेपैरों वह दौड़ती रही. उस के राह की सारी बाधाओं को अपने पलकों से चुनती रही. क्या पता शिव अंकल के साथ ने इस उम्र में वर्षों की उन की मुराद पूरी कर दी हो. जयाजी के उच्चारण से शिव अंकल की जबान भी तो नहीं थकती. कितने खिल उठते हैं वे मम्मी को देख कर ही. उसे, अणिमा और अंश पर भी बड़े अधिकार से स्नेह बरसाते रहते हैं.

अपनी मां के जीवन में खुशियां लाने के लिए निम्न जाति से आने वाले शिव अंकल की याचना भी करनी पड़ी तो उसे रंचमात्र भी मलाल न होगा. उसे पूरा विश्वास है कि वे मम्मी को बहुत पसंद करते हैं. पिया भी उस की मम्मी को मानसम्मान देने के साथ उन्हें कितना चाहती है. उस की मम्मी है ही ऐसी कि उन के मोहपाश में सभी बंध जाएं. वह पिया से बात करेगा, ऐसा सोच कर यश खुशियों से भर उठा.

शिव के साथ जया के घिसटने वाले दिन पंख लगा कर उड़ते रहे. 5 महीने पहले उस रोज वक्त की शाख से जिंदगी के कुछ बरस उस ने तोड़े तो याद आया कि न जाने कितने बरस हुए उसे जिए हुए. अब तक के सफर में दौड़तेभागते जाने कितने बरस फिसलते रहे. लेकिन उसे इतना भी वक्त न मिला कि अपनी खुशियों के बारे में वह कभी सोच सके.

काले सघन बरसते बादलों के बीच मचलती हुई दामिनी के साथ शिव ने उस की कलाई को क्या थामा कि उस के भीतर मानो सालों सूखे पर सावन की कुछ बूंदें बरस उठीं. उस के मन की दुनिया का खाली और उदास कोना अचानक जैसे भर गया हो. शिव के अपनेपन से उस की आंखें ऐसे छलकीं कि कठिनाइयों और दुखों से भरे उस के अतीत के सारे बरस बह गए. माना कि प्यार के फूल उम्र की शाखाओं पर नहीं खिलते पर ऐसा भी तो होता है कि दुनिया की हर रीत, हर रस्म से बहुत दूर खिलता है प्यार का कोईर् फूल और महक उठती है पूरी धरती.

दुनिया के किसी भी कोने में, उम्र के किसी भी मोड़ पर प्यार आ कर थाम लेता है कलाई और टूट जाती है सारी रवायतें. शिव के बिना जया जीने की कल्पना से कांप उठी. अपार सौंदर्य और प्रतिभाशालिनी जया को यश के साथ ही अपनाने के लिए कितनों ने हाथ बढ़ाया था, कितनों ने प्रणय याचना की थी, पर पाषाण बनी जया सारे प्रस्तावों को बड़ी निर्ममता से ठुकराती रही.

 

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