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वह काफी हंसमुख और चुलबुला लड़का था. अपने इसी स्वभाव के चलते वह जल्दी ही लोगों में घुलमिल जाता था. उस में यही ऐसी खासीयत थी जो उसे सब से अलग करती और ऊपर से उस का सिख होना.

उस के विपरीत मैं एकदम शांत, शर्मीले स्वभाव की थी. जब भी वह मुझे देख कर मुसकराता, मैं एकतरफ हो जाती. यों कहना चाहिए कि मैं उस से कन्नी काट लेती. सुबह जब भी वह क्लास में आता, एक खुशनुमा माहौल सा पैदा हो जाता. उस की हंसी में भी संगीत की झंकार थी.

मेरा परिवार लखनऊ में रहता था. पापा बैंक में थे और बड़े भैया एक मल्टीनैशनल कंपनी में चेन्नई में तैनात थे. एक दिन मेरा भाई किसी काम के सिलसिले में दिल्ली आया और मुझ से मिलने चला आया. मैं ने अपने कालेज के गैस्टहाउस में ही उस का रहने का इंतजाम करवा दिया था. उस को सुबह शताब्दी से पापा से मिलने के लिए लखनऊ जाना था. अचानक किसी वीआईपी के आ जाने से गैस्टहाउस में उस का रहना कैंसिल हो गया. मैं परेशान हो गई. बाहर कैफे में बैठ कर हम दोनों भाईबहन इसी उधेड़बुन में लगे रहे कि अब क्या करें.

तभी नरेन अपने एक मित्र के साथ पास से गुजरा और मेरी तरफ हाथ हिलाया. वह शायद अपने घर जाने की जल्दी में था. जवाब में मेरी तरफ से रिस्पौंस न पा कर वह अपने स्वभाव के मुताबिक मेरे पास आया. ‘हैलोजी, कोई परेशानी है क्या?’ जैसे उस ने मेरे मन के भाव पढ़ लिए हों. ‘हां, है तो,’ मैं ने बिना कोई समय गंवाए कहा, ‘ये मेरे भैया हैं, आज रात मैं ने इन का गैस्टहाउस में रहने का इंतजाम करवा दिया था पर अब वहां से मना कर दिया गया है. कोई आसपास होटल भी तो नहीं है और जो हैं वो...’

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