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और एक दिन हम ने मां में बदलाव पाया. मैं और नन्ही स्कूल से घर पहुंचे तो मां शृंगारमेज के सामने बैठी होंठों पर लिपस्टिक लगा रही थीं. उन्होंने गुलाबी साड़ी पहन रखी थी, सिर पर एक खूबसूरत जूड़ा बनाया था, जिस पर उन्होंने घुंघरू वाले कांटे लगाए थे. कानों में गुलाबी साड़ी से मैच करते सफेद और गुलाबी स्टोन वाले कर्णफूल थे और हाथों में गुलाबी चूडि़यां. हम दोनों खुशी से रोमांचित होती हुई मां के इस बदले हुए रूप को देख रही थीं. मैं सोचने लगी कि काश, मेरी सहेलियां यहां होतीं तो वे देख पातीं कि मेरी मां कितनी खूबसूरत हैं. शृंगार पूरा होते ही मां उठ खड़ी हुईं. आईने के सामने थोड़ी सी टेढ़ी होती हुई वे अपनी पीठ के भाग को देखने का प्रयास कर ही रही थीं कि उन की निगाह हम दोनों पर पड़ गई.

‘‘अरे, तुम दोनों कब आईं,’’ कहती हुई वे तेजी से हमारे पास आईं. पर उन्होंने हमें अपने आगोश में नहीं लिया, सिर्फ गालों को प्यार से थपथपाते हुए हमेशा की तरह मुसकरा कर बोलीं, ‘‘बेटी, मैं क्लब जा रही हूं, आज से तुम दोनों की देखभाल के लिए मैं ने एक आया रख ली है. मैं कोशिश करूंगी कि जल्दी लौट आऊं, पर यदि देरी हो गई तो तुम्हें खाना खिला कर, कहानी सुना कर आया सुला देगी. ठीक है न?’’

मां ने हम से यह नहीं पूछा कि हमें आया के साथ रहना अच्छा लगेगा या नहीं. पर मुझे उन से शिकायत नहीं थीं. मैं तो खुश थी कि आज मां ने मेरी इच्छा के अनुरूप शृंगार किया है. सच, वे बेहद सुंदर लग रही थीं. ‘‘सुगंधा,’’ मां ने जोर से आवाज दे कर आया को पुकारा, ‘‘देखो, बच्चे आ गए हैं, इन के आने का समय 5 बजे है. कल से इस बात का ध्यान रखना कि 5 बजे तक तुम्हारा काम पूरा हो जाए. इन्हें आते ही नाश्ता और दूध देना. रात का खाना भी 5 बजे के पहले तैयार कर के हौटकेस में रख

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