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विवाह के बाद कुछ समय तक गौरव शुभांगी के घर पर रहा. फिर नोएडा की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी से बढि़या औफर मिला तो वहीं किराए का मकान ले लिया. शुभांगी ने भी तब नोएडा के जानेमाने स्कूल में अपनी सीवी भेज दी. उस के अनुभव व योग्यता को देख वहां उस का सिलैक्शन हो गया. विदित भी तब तक ढाई वर्ष का हो गया था. शुभांगी ने उस का ऐडमिशन अपने स्कूल में करवा दिया. कुछ वर्ष किराए के में बिताने के बाद गौरव ने नोएडा में अपना फ्लैट खरीद लिया.

गौरव चाहता था कि अरुण के सेवानिवृत्ति होने पर मम्मीपापा उस की साथ ही रहें. यही सोच कर उस ने बड़ा फ्लैट खरीदा था, लेकिन अरुण मेरठ में बसने का इच्छुक था. गौरव उस समय थोड़ेथोड़े समय अंतराल पर ही मातापिता से मिलने चला जाता था. तब विदित चौथी कक्षा में था. बाद में उस की पढ़ाई का बोझ और बढ़ते ट्यूशन तथा गौरव की प्रमोशन के कारण दफ्तर का काम बढ़ जाने से उन का मेरठ जाना कम हो गया. परिस्थिति को समझे बिना अपने को उपेक्षित मान ममता व अरुण मन ही मन खिन्न रहने लगे.

इन दिनों भी वे बारबार फोन कर गौरव को आने के लिए कह रहे थे. कुछ दिन पहले ही विदेश में रहने वाले अरुण के एक मित्र का निधन हो गया था. उस दोस्त से फोन पर अरुण अकसर बातचीत कर लिया करता था. मित्र की मृत्यु के कारण अरुण अवसाद से घिर गया था. ममता भी इस समाचार से दुखी थी.

अपने मम्मीपापा की उदासी से चिंतित हो गौरव ने 2 दिन के लिए मेरठ जाने का कार्यक्रम बना लिया. शुभांगी और विदित ने स्कूल से छुट्टी ले ली. गौरव के औफिस में यद्यपि शनिवार की छुट्टी रहती थी, किंतु काम की अधिकता के कारण उस दिन औफिस जा कर या घर पर ही काम निबटाना पड़ता था. ‘काम वहीं जा कर पूरा कर लूंगा’ सोच कर उस ने लैपटौप साथ रख लिया.

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