कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लेखक-अरुण अलबेला

तभी संतू कुढ़ जाता, ‘मां, तुम्हारा और बाबूजी का प्यार पा कर ही मोना आलसी बनी रहती है. बाबूजी तो हरदम उस का पक्ष ले कर हमें धिक्कारतेडांटते रहते हैं. उसे अपना स्नेह दिखा कर सिद्ध करना चाहते हैं कि एक ससुर अपनी बहू को बहुत मानता है. मोना तो कभी इन का सिर भी नहीं दबाती, बेशक ये कराहते रहें. वह ऊंचा नहीं बोलती, इसी पर बाबूजी खुश रहते हैं.’

इस पर मैं कहता, ‘इस जिंदगी में किसी को क्या डांटना… क्या बोलना… घर में सोनू को ले कर हम 5 ही तो हैं. प्यार से मिल कर रहना है.’ मगर एक दिन संतू आवेश में बोला, ‘मेरे ससुरजी आप के सीधेपन का ही फायदा उठाने लगे हैं. फोन पर अब बढ़चढ़ कर बोल रहे हैं. उन के यहां फोन होता तो न जाने रोज क्याक्या बोलते. एसटीडी बूथ  पर रुपए लगेंगे, सो हमें ही फोन  करना पड़ता है. यही हाल रहा तो एक दिन वे लोग मु झे ही अलग रहने को कह देंगे.

संतू की इस बात पर ममता बिगड़ उठी, ‘तुम अलग होने की नहीं सोचोगे संतू, तुम क्या किसी के भड़काने से भड़कोगे? बीवीबच्चे को ले कर तुम और लड़कों की तरह मांबाप से अलग रह सकते हो क्या? बेटा, तुम ही तो हमारे एक हो… तुम क्या सह सकोगे कि सोनू बड़ा हो कर तुम से अलग रहे? तुम्हारे लिए हम ने लाखों जमा कर रखे हैं. जीप, बस खरीद दी है. तुम्हें एक तरह से मालिक बनाया है पूंजी निवेश कर के. किसी का नौकर नहीं बनने दिया है.’

‘मां,’ संतु बिफरा था, ‘मैं जयदेव चाचा के लड़के की तरह अलग रहने की नहीं सोच सकता. तुम्हें बेहोशी का दौरा जल्दी आता है. दिल की मरीज हो, मैं तुम्हें मारना नहीं चाहता, पर मैं ऐसा कुछ होने देना भी नहीं चाहता कि मेरे ससुराल पक्ष से तुम्हें या बाबूजी को दुख पहुंचे. हां, मैं मोना को खोना भी नहीं चाहता और न सोनू को.’

एक दिन हम बालकनी में बैठ कर चाय की चुसकियां ले रहे थे. तभी संतू ने आशंका जताई, ‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि मोना के मातापिता उसे अब सोनू सहित हमारे यहां भेजना नहीं चाहते? कहीं मेरे ससुरजी अपने ‘बड़े भाई’ की कहानी तो नहीं दोहराना चाहते?’’

यह सुन कर मैं चौंक पड़ा था. मु झे याद आया कि राजन बाबू के बड़े भैया किसी विवाद के कारण अपनी विवाहिता बेटी को उस की ससुराल नहीं जाने देते. दामाद ले जाना चाहता है, पर उन की बेटी उन्हीं की बातों में आ कर मायके में पड़ी रहती है. उस का भी 5 साल का बेटा है. तभी मैं ने लरजते कहा, ‘‘नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए उन्हें.’’

‘‘बाबूजी, उन पर अपने मित्र ‘स्वामीजी’ और ‘बड़े भाई’ का प्रभाव भी तो पड़ सकता है,’’ संतू गुर्राया.ममता के चेहरे पर भी भय व्याप्त हो गया. हम ने महसूस किया कि संतू के अंदर भी एक भय व्याप्त हो रहा है कि कहीं मोना सोनू को ले कर मायके में ही रहने की न सोचे.

दूसरी ही दिन संध्या को मोना का आवेशभरा फोन आया. वह संतू से बोली, ‘‘क्या आप को पापा से बात करते वक्त रिसीवर पटकना चाहिए था? आप ने क्या सम झ कर पटका? पापा का अपमान नहीं हुआ क्या? मैं इसे नहीं सह सकती.’’

संतू नरम लहजे में बोला, ‘‘मोना, तुम्हारे पापा को भी वैसा नहीं बोलना चाहिए था.’’ ‘‘मेरे पापा कुछ गलत नहीं बोल सकते.’’ ‘‘देखो, तुम्हें हमारे साथ रहने की बात सोचनी चाहिए. तुम्हें हम ने कभी दुख नहीं दिया है. तुम इसे  झुठला भी नहीं सकतीं. हम पर कोई आरोप थोपना गलत होगा.’’

‘‘आप 24 को आइए.’’‘‘क्या अकेला?’’ ‘‘नहीं तो क्या?’’ संतू को गुस्सा आ गया कि कहां हम सब जीप से उन के यहां जाना चाहते थे, कहां वह अकेले बुला रही है. फोन करने से बात साफ नहीं हो सकी. इत्तफाक से बारिश हो गई. टैलीफोन खराब होने से फोन खराब हो गया. आज ठीक होगा, कल ठीक होगा, यही लगा रहा. टैलीफोन एक्सचेंज में शिकायतें होती रहीं.

एक दिन संतू ने ही कहा, ‘‘बाबूजी, मैं तो जाने से रहा. आप ही जाइए और मामला सुल झाइए, कहीं बात गंभीर मोड़ न लेले.’’ इस पर मैं बोला, ‘‘मेरा जाना ठीक नहीं रहेगा. तुम उन के दामाद हो, तुम ही जाओ तो ठीक…’’ ‘‘तो क्या आप उन के समधी नहीं हैं? जाइए, मोना को लेते आइए. न आएगी या उन्होंने नहीं भेजा तो मामला गंभीर ही सम िझए. हमें सम झना होगा कि वे आवेश में बात क्यों करने लगे हैं?’’

ममता और संतू के दबाव के आगे मु झे  झुकना पड़ा. बस से धनबाद पहुंचा. बाजार के निकट ही राजन बाबू मिल गए. उन्हें पूरी आशा थी कि दामाद आएगा, सो दामाद के लिए मिठाई ले रहे थे. मैं ने ही पुकारा. वे निकट आए. हाथ जोड़ कर नमस्कार कहा, पर टैंपो में मेरे साथ अपने दामाद अर्थात संतू को न देख कर स्तब्ध हुए.

उन का चेहरा उतर गया. वे पूछ बैठे, ‘‘संतू बाबू नहीं आए क्या?’’यह सुन मु झे लगा कि मेरे आने से उन्हें खुशी कम हुई, पर संतू के न आने से गहरा दुख हुआ. मु झे  झुं झलाहट हुई कि संतू को जरूर आना चाहिए था, मु झे व्यर्थ भेज दिया है. मैं बोला, ‘‘आप सब्जी ले कर आइए, मैं घर पहुंचता हूं.’’

मैं जब घर पहुंचा तो संतू के बदले मु झे देख अपनी माताजी के साथ मोना भी उदास हो गई. मेरे पैर छुए, फिर सहज भाव से मुसकराते हुए स्वागत कर सोफे पर बैठने का आग्रह किया. सोनू निकट ही खेल रहा था. उस का उछलनाकूदना अच्छा लग रहा था. वह मु झे पहचान नहीं पा रहा था और पहचाने भी कैसे, आखिर 14 माह के बच्चे में सम झ होती ही कितनी है. मैं ने उसे गोद में लेना चाहा, पर नहीं आया, मोना के निकट भाग गया.

तभी मोना की मम्मी अभिवादन करते पूछ बैठीं, ‘‘आप ने क्यों कष्ट किया, संतू बाबू क्यों नहीं आए?’’ मैं बोला, ‘‘आप लोग जानिए.’’ ‘‘हम से तो ऐसी कोई गलती नहीं हुई.’’ ‘‘गलती हुई है, तभी तो वह नहीं आया.’’ ‘‘उन्हें आना चाहिए था, हम ने रोका नहीं, बुलाया ही था.’’

‘‘हां, पर वह नहीं आ सका. मु झे ही भेज दिया.’’ फिर मैं ने माहौल हलका करने को कहा, ‘‘मान लीजिए, वह नहीं आया, तो क्या मोना नहीं जाएगी?’’

इस प्रश्न का जवाब मोना की मम्मी नहीं दे सकीं. तभी सोनू हंसा और प्लास्टिक का बैट उठा कर फर्श पर दे मारा तो मोना बोल उठी, ‘‘बाबूजी देखिए, यह कितना नटखट हो गया है.’’ इस के पापा कहते हैं, ‘‘ननिहाल में यह ‘मौनीबाबा’ बन जाएगा. यहां सब कामभर ही बोलते हैं.’’

यह सुन कर मैं हंस पड़ा. बोला, ‘‘क्या हम बकरबकर करते रहते हैं? हां, संतू की माताजी अवश्य बच्चे के साथ बच्चा बन जाती हैं, जोर से हंसतीबोलती हैं. संतू भी खूब बोलता है, मैं भी कम नहीं.’’

वह हंसने लगी. माहौल बदला तो  मैं ने पूछा, ‘‘बहू, मान लो, संतू को समय नहीं मिला तो क्या मेरे साथ चल सकोगी?’’ यह सुन कर वह छत को ताकने लगी और बात बदल कर बोली, ‘‘बाबूजी, आप सब किसी शादी समारोह में जाने वाले थे न?’’

‘‘हां, इधर से किसी ने हमें बुलाया नहीं, न उत्साह दिखाया. हम चाहते थे जीप से आएं और तुम सब को भी  लेते चलें.’’इस पर मोना सफाई देने लगी, ‘‘सोनू के पापा ने ऐसा नहीं बताया. सिर्फ यही कहा कि 10 तारीख को लेने आ रहे हैं. इस पर मेरे पापा ने विरोध किया कि हर बार 10-15 दिन में उठा ले जाते हैं. आना हो तो 24 के बाद आइए, तब उन्होंने चोंगा पटक दिया.’’

‘‘नहीं, तुम्हारे पापा ने आपत्तिजनक 2-3 वाक्य और कहे, जो नहीं कहने चाहिए थे.’’तब तक मोना की माताजी किचन में चली गई थीं. तभी राजन बाबू मार्केटिंग कर के आ गए और प्यार से मिले. स्वागतसत्कार किया, जलपान की व्यवस्था की.

हम सब इतमीनान से बैठे तो राजन बाबू ने संतू के न आने का कारण जानना चाहा, ‘‘संतोष बाबू क्यों नहीं आए?’’‘‘आप जानें,’’ मैं ने कहा, ‘‘आप ने शायद फोन पर कुछ कड़े वाक्य कह दिए थे.’’

‘‘नहीं, हो सकता है संतोष बाबू मेरी बातों को सही रूप से नहीं ले सके. बाहर से उखड़े मूड में तो नहीं आए थे?’’

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...