समीर के साथ चलते हुए, उस के साथ बातें करते हुए, उस के साथ कुछ ही कदमों के सफर में जैसे मैं ने कितना लंबा सफर करने की इच्छा कर ली, मुझे खुद ही नहीं पता चला. जब तक मैं अस्पताल से रक्तदान कर लौटी पूरी तरह समीर के प्रभावी व्यक्तित्व में रंग चुकी थी. वह सारी रात मैं ने जाग कर गुजारी थी. समीर की गंभीर आवाज मेरे कानों में रात भर गूंजती रही थी. सुबह फोन की घंटी बजी तो पता नहीं किस उम्मीद से मैं ने ही फोन लपक कर उठाया. उधर से आवाज आई, ‘मैं, समीर.’
आवाज सुन कर मैं खड़ी रह गई, मेरी हथेलियां पसीने से भीग उठीं. दिल धड़क उठा. मेरी खामोशी को महसूस कर के समीर फिर बोला, ‘सुनंदा, क्या तुम्हें रात को नींद आई? मैं तो शायद जीवन में पहली बार पूरी रात जागता रहा.’ इस का मतलब उस से मिलने के बाद जो हालत मेरी थी वही उस की भी थी. मैं ने अपनी चुप्पी तोड़ी और बोली, ‘हां, मैं भी नहीं सो पाई, समीर.’
‘तो क्या हम दोनों की हालत एक सी है? हम आज फिर मिल सकते हैं?’ मैं ने कहा, ‘समीर, थोड़ी देर में मैं अस्पताल के गेट पर आती हूं.’
मैं ने फोन रख दिया. हम दोनों एक ही दिन में एकदूसरे को अपने दिल के करीब महसूस कर रहे थे, एकदूसरे को देख कर दिल को जैसे कुछ चैन मिला. फिर समीर कई बार समय निकाल कर मिलने का कार्यक्रम भी बना लेता. मम्मीपापा की आपसी नीरसता से उपजे घर के अजीब से माहौल के कारण मैं सालों तक अपने जिस खोल में बंद थी, समीर के सान्निध्य में मैं ने उस से बाहर निकल कर जैसे खुली हवा में सांस ली.
समीर पूरी तरह से एक समर्पित डाक्टर था. यही वजह थी कि पापा उसे बहुत पसंद करते थे. हर मरीज की इतनी लगन और मेहनत से देखरेख करता जैसे वह उस के ही घर के सदस्य हों. अचानक मेरा रुझान सोशल वेल्यूज की तरफ बढ़ने लगा. मैं ने इस विषय पर किताबें पढ़नी शुरू कर दीं. कुछ ही दिनों में मेरी सोच में सकारात्मक परिवर्तन आने लगा. अब मुझे मम्मी का टोकना बेकार लगता, बुरा नहीं. दुनिया को देखने का मेरा दृष्टिकोण बदल गया था.
पापा से मेरा समीर से मिलना छिप नहीं पाया. पापा समीर और मेरी एकदूसरे में रुचि समझ गए. उन्होंने मम्मी से बिना सलाह किए समीर के मांबाबूजी से बात भी कर ली और इस रिश्ते के लिए अपनी स्वीकृति भी दे दी. समीर अपने भाईबहनों में सब से बड़ा था. उस से छोटा एक भाई और एक बहन थी. सब से बाद में पापा ने घर पर मम्मी को बताया तो जैसे घर में तूफान आ गया. मम्मी ने हंगामा खड़ा कर दिया, ‘मैं अपनी बेटी की शादी किसी डाक्टर से नहीं करूंगी. जिस नर्क में मैं ने अपना जीवन बिताया है, अब मैं उस नर्क में अपनी बेटी को नहीं धकेल सकती.’ समीर को मम्मी की प्रतिक्रिया पता चली तो वह घबरा गया. मुझ से कहने लगा, ‘मैं न तो मेडिकल फील्ड छोड़ सकता हूं न तुम्हें, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है, अब तुम ही कोई रास्ता सोचो.’
मुझे भी समीर का साथ चाहिए था, उस के प्यार ने मुझ में बहुत हिम्मत भर दी थी. मैं घर पहुंची तो मम्मी से बात करने से पहले ही आंखों में आंसू आ गए. मैं अपने हाल पर चिल्ला उठी, ‘मम्मी, लोग तो कहते हैं कि मां औलाद के दिल की बात उस के कहे बिना जान लेती है लेकिन मेरे साथ कभी ऐसा नहीं हुआ.’
मम्मी के लिए मेरी बातें और आंसू दोनों ही हैरान करने वाले थे. मैं कहती रही, ‘मेरा दिल भी चाहता है कि मैं इस घर को छोड़ कर दूर चली जाऊं, क्योंकि जब इस घर में खामोशी होती है तो चारों तरफ सन्नाटा होता है और जब शोर होता है तो वह सिर्फ आप की और पापा की लड़ाई के रूप में होता है, जो इन दीवारों से टपकती वीरानियों से भी ज्यादा डरावना होता है. आप खुद तो एक प्यार करने वाली मां बन नहीं सकीं मगर आप के इस अनबैलेंस्ड व्यवहार ने मुझ से पापा को भी दूर किया है.’ ‘मम्मी, आप ने कह दिया कि समीर से शादी कर के आप अपनी बेटी को नर्क में नहीं धकेलना चाहतीं. आप ने यह भी नहीं सोचा कि जिसे आप नर्क कह रही हैं, वह आप की नजर में ही नर्क हो. आप को पता ही नहीं आप की बेटी का दृष्टिकोण आप से कितना अलग है. मुझे लगता है डाक्टरों के पास भी अपनी पत्नी और बच्चों के लिए समय हो सकता है क्योंकि वह समय निकालना चाहते हैं, लेकिन पापा ऐसा कोई प्रयत्न ही नहीं करते क्योंकि आप के व्यवहार की वजह से उन का घर आने का मन ही नहीं करता होगा. आप को जीवन में पापा की मजबूरियों से संतुलन बिठाना नहीं आया.’
मुझे खुद नहीं पता था मैं सबकुछ कैसे कह गई. ये वे बातें थीं जो मैं काफी समय से उन से कहना चाहती थी मगर कभी साहस नहीं कर पाई थी और आज शब्द जैसे खुद ही फिसलते चले गए थे. फिर मैं अचानक मुंह हाथों में छिपा कर फूटफूट कर रो पड़ी. रोतेरोते पापा पर नजर पड़ी, इस का मतलब वह सारी बातें सुन चुके थे. मम्मीपापा दोनों बुत बने खड़े थे. मैं सिर झुकाए चुपचाप अपने कमरे में चली गई.
सुबह उठने पर मैं समझ नहीं पाई कि मम्मी मुझ से नाराज हैं या उन्होंने मेरी बातों को कोई महत्त्व ही नहीं दिया. मगर यह सिर्फ मेरी गलतफहमी थी. मेरी बातों ने उन के फैसले बदल दिए थे और इस बात का पता मुझे तब चला जब 2 दिन बाद ही समीर के घर वाले मुझे अंगूठी पहना गए और शादी की तारीख भी बहुत जल्दी तय हो गई.