समीर और मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. अस्पताल से फ्री होते ही समीर मुझे फोन करता और हम दोनों बाहर घूमते, शौपिंग करते और नए जीवन के सपने देखते. शादी से एक दिन पहले मैं उदास हो गई और चुपचाप लान में बैठी मम्मी से कही अपनी बातें सोच रही थी, उन को इतनी कड़वी बातें कहने का दुख भी था लेकिन अब तो भड़ास निकल ही चुकी थी. अब सब ठीक था. मम्मी शांत रहतीं, पापा शादी की तैयारियों में काफी समय निकाल रहे थे.
अचानक मम्मी मुझे ढूंढ़ती लान में आ गईं और मेरे पास ही बैठ गईं. थोड़ी देर मुझे देखती रहीं फिर बोलीं, ‘सुनंदा, तुम्हारी नानी कहा करती थीं कि हर इनसान जीवन को अपनी नजर से देखता है. मैं मानती हूं कि मैं ने तुम से हमेशा एक दूरी बनाए रखी. कभी मेरी बेटी, मेरी बेटी कह कर तुम्हें प्यार नहीं दिखाया लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि मुझे तुम से प्यार नहीं. मैं ने जिस नजर से दुनिया को देखा था और जिन हालात से गुजरी थी उन्हें देखने के बाद मुझे लगता था कि लड़कियों को हमेशा रौब में रखना चाहिए, क्योंकि मेरी मां ने मुझ पर कभी सख्ती नहीं की थी जिस वजह से जीवन में मुझ से बहुत गलतियां हुई हैं. ‘हर मां यही चाहती है कि जो परेशानी उस ने सही है उस की बेटी उस से दूर रहे. रही तुम्हारे पापा और मेरी बात तो इस उम्र में खुद को बदलना आसान तो नहीं है लेकिन मैं कोशिश करूंगी. तुम्हारे लिए मुझे दुख है कि मैं अपनी सख्ती में हद से बढ़ गई जैसे मेरी मां अपनी नरमी में हद से बढ़ गई थीं. हां, यह मेरी गलती है कि मुझे बैलेंस रखना नहीं आया.’