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पिंटू को अपने बेटे की तरह पाला था मीरा ने. बहन होते हुए मां की तरह अपना कर्तव्यपालन किया था, जिस का फल मीरा को देर से मिला. पर क्या वह फल मीठा था?

डाकिए ने अपनी साइकिल की घंटी जोर से टनटनाई. उस की इस आदत से मु झे चिढ़ सी है. वह तब तक घंटी बजाता रहता है जब तक कि कोई गेट पर जा कर उस से चिट्ठियां न ले ले. मैं ने कितनी बार उसे सम झाया है कि तुम चिट्ठियां गेट के भीतर डाल दिया करो, लेकिन वह मानता ही नहीं.

एक दिन जब नाराज हो कर मैं ने उस से कहा था कि तुम्हारी यह आदत किसी दिन मेरी टांग तुड़वा कर रहेगी, भागती हुई आती हूं, तो उस ने हंस कर कहा था, ‘मैं आ कर सेवा करूंगा, मांजी. गेट के भीतर किसी लावारिस बच्चे की तरह चिट्ठियों को छोड़ जाना भला अच्छा लगता है? कोई उठा ले, हवा में उड़ जाएं या बारिश में भीग जाएं, तो? मैं कब से कहता हूं कि एक लेटरबौक्स टांग दीजिए.’

मैं ने उसे  झिड़कते हुए कहा था, ‘कभीकभार तो कोई चिट्ठी आती है, उस के लिए रुपए खर्च कर के लैटरबौक्स टांग दूं?’

‘‘मांजी, लीजिए, आज 3 न्यू ईयर ग्रीटिंग्स लाया हूं,’’ कह कर उस ने चिट्ठियां मेरे हाथ में रखीं और नमस्ते मांजी कहता हुए पड़ोसियों के गेट की ओर बढ़ गया था. मेरे मन के भीतर का चोर फुसफुसाया, लो, आ गई न भाईभावज की चिट्ठी. तुम कहती थीं अब तुम्हारा पिंटू से कोई रिश्ता ही नहीं रहा. अब क्या कहोगी? मैं सोचसोच कर मन ही मन खुश हुई जा रही थी, चलो, मेरे लाड़ले को अपनी भूल का एहसास तो हुआ. मैंने मुसकरा कर अपने मन के चोर को  झड़का, चुप रहो. अपनों से भला कोई कब तक रूठ सकता है? मैं ने तो गुस्से में कह दिया था कि पिंटू से मेरा कोई वास्ता नहीं. गुस्से में तो आदमी क्याक्या नहीं बोल जाता है. मैं ने तेजी से गेट बंद कर दिया और भीतर आ गई.

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