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2 साल तक यही सिलसिला चलता रहा. कभी लिखित धोखा दे जाता, कभी मौखिक गड़बड़ हो जाता. एकाध बार इन्होंने कहा, ‘हमेशा पैसों की बरबादी.’ मैं ने दर्द से कराहते हुए कहा, ‘मछुआरा हर बार जाल फेंकता है, लहरें हमेशा तो उस का साथ नहीं देतीं.’ चिढ़ कर इन्होंने कहा था, ‘जेब तो मेरी खाली होती है न? कर्ज ले कर घर बना रहा हूं, उस में से हर माह हजारदोहजार...’ मेरे आंसू निकल पड़े.

अचानक सबकुछ बदल गया. एक सरकारी टैलीग्राम ने घर में खुशियों की बौछार कर दी. मेरा भाई पदाधिकारी हो गया था. जमानत के तौर पर मेरे हस्ताक्षर एवं सरकार को 2 लाख रुपए किसी भी क्षण क्षतिपूर्ति के तौर पर लौटा सकने की क्षमता का प्रमाणपत्र उसे चाहिए था. मैं ने जमीन एवं मकान का कागज लिया, नगरनिगम कार्यालय, जिलाधिकारी कार्यालय का चक्कर लगाया तब कहीं जा कर चौथे दिन कागजात मिले. मैं ने एक माह का खर्च उस की जेब में रखा तो उस ने अश्रुपूरित नेत्रों से निहारते हुए मु झे अपनी बांहों में भर कर कहा, ‘दीदी, तुम जन्मजन्मों से मेरी मां हो.’

‘हां रे हां. चल हट. जातेजाते भी रुलाएगा क्या?’ कह कर मैं ने अपने आंसू पोंछ लिए.

6 महीने के अंदर ही सास और ससुर दोनों का देहांत हो गया. पिंटू के जाने के बाद घर यों ही खालीखाली सा लगता था. सासससुर के मरने के बाद तो घर जैसे वीरान हो गया. अब शुरू हुआ पिंटू के लिए रिश्तों का आना. रोज कहीं न कहीं से कोई रिश्ता ले कर आ जाता और लड़की की तसवीरें, कुंडली, बायोडाटा दे कर चला जाता.

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