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मेरी बात सुनने के बाद विधायक ने ‘ऐडमिशन नहीं हो रहा है?’ ऐसे कहा जैसे किसी बच्चे से कोई कहता है, ‘टौफी का कागज नहीं खुल रहा है?’ उस ने फोन उठाया और वीसी से बात की, ‘बिहार में रहना है कि नहीं, वीसी महोदय? हमारा एक ठो ऐडमिशन है. नाम नोट कीजिए...’ और मु झ से बोला, ‘जाइए, डाक्टर साहब, आप का काम हो गया.’

पिंटू का ऐडमिशन हो गया था. पिंटू बहुत खुश था. और उसे खुश देख कर मैं भी बहुत खुश थी.

पिंटू धीरेधीरे बड़ा हो गया. सारा महल्ला, सारे परिचित उसे मेरा बेटा सम झते.

उस की खूबसूरती, उस की तेजस्विता, उस का भोलापन मेरे परिचितों, सहेलियों, रिश्तेदारों में चर्चा का विषय बन गया था. सभी कहते, ‘इतने सुंदर लड़के की जोड़ी मिलनी मुश्किल है.’ मैं धीरे से कहती, ‘बिहार में नहीं मिली तो पंजाब से ले आऊंगी अपने वीरे की दुलहन. पर जोड़ी तो मैं मिला कर ही रहूंगी. मां और बाबूजी का एकलौता सपना है यह. उसे तो हर हाल में पूरा करना है.’

उन दिनों मैं काफी उल झन से गुजर रही थी. गांव से सासससुर आ गए थे. दोनों ही बूढ़े थे. बीमार रहते थे. इलाज से एक ठीक होता, तब तक दूसरा बिस्तर पकड़ लेता. बेटे की बोर्डिंग की फीस एकाएक 36 हजार रुपए से  48 हजार रुपए सालाना हो गई. बेटियों की स्कूल ड्रैस हर 6 माह बाद छोटी हो जाती. फल, सब्जियों, दवाइयों की परिधि ढूंढ़ने की कोशिश कर रही थी.

अचानक एक सुबह ससुरजी ने चाय की प्याली हाथ में लेते हुए कहा था, ‘दुलहन, अब हम नहीं बचेंगे. बेटी, मेरी आखिरी ख्वाहिश है कि तुम लोगों का अपना मकान हो. उस में थोड़े से पेड़पौधे हों.’

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