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जब से सुभा की चचेरी बहन लेखा की मौत हुई, वह रातरातभर सो नहीं पाती है. 2 महीने से यह सिलसिला चल रहा है. सुशांत के सम झाने के बावजूद रात होते ही सुभा घबराने लगती और पति को जगा कर कहती, ‘अभीअभी लेखा यहां आई थी.’

पत्नी की इस मनोस्थिति से सुशांत परेशान थे. डाक्टरों का कहना था कि सुभा का अवचेतन मन जब इस सत्य को मान लेगा कि लेखा सचमुच अब इस दुनिया में नहीं है तो सब ठीक हो जाएगा. चूंकि लेखा का मृत शरीर सुभा ने अपनी आंखों से देखा नहीं, इसीलिए यह परेशानी है.

आज रात भी ऐसा ही हुआ. लगभग  2 बजे सुभा ने सुशांत को जगाया. बोली, ‘‘लेखा यहां आई थी, मैं ने उस से बातें की हैं.’’‘‘सुभा, यह तुम्हारा भ्रम है. सो जाओ और मु झे भी सोने दो. सुबह औफिस जाना है,’’ कह कर सुशांत करवट बदल कर सो गए.

किंतु सुभा फिर नहीं सो पाई. उस की बंद आंखों में लेखा के साथ अपने पहले के दिन सजीव हो उठे थे.लेखा और सुभा दोनों चाचाताऊ की बेटियां थीं. फिर भी उन में प्रेम सगी बहनों जैसा था. दोनों एकदूसरे की परछाईं बनी हमेशा साथसाथ रहती थीं. सुभा बड़ी थी और लेखा छोटी, इसीलिए वह सुभा को ‘जिज्जी’ कह कर पुकारती थी.

फिर परिवार में बिखराव आया तो लेखा के पिता ने अलग मकान ले लिया. छोटे भाई का इस तरह साथ छोड़ कर जाना बड़े भाई को बुरी तरह अखर रहा था. उस पर से सुभा रोज उन से कहती, ‘बाबूजी, मैं लेखा के घर खेलने जाऊं?’

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