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सीमा को मायके गए2 महीने बीत चुके थे. अकेलेपन की बेचैनी और परेशानी महसूस करने के साथसाथ राकेश को अपने 5साल केबेटे मोहित की याद भी बहुत सता रही थी.

कुछ रिश्तेदारों ने सीमा को वापिस बुलाया भी, पर वो लौटने को तैयार नहीं थी. राकेश और सीमा की कोविड के दिनों में कई बार जमकर झड़प हुई थी और जैसे ही छूट मिली सीमा मायके जा बैठी.

राकेश ने अब तक सीमा से सीधे बात नहीं की थी. दबाव बनाने के लिए अब उस ने टकराव का रास्ता अपनाने का फैसला कर लिया.

एक रविवार की सुबहसुबह वो सीमा की अनिता बुआ से मिल उन के घर पहुंच गया. राकेश बुआ की बुद्धिमता का कायल था. वो राकेश को काफी पसंद करती थी. सब से महत्वपूर्ण बात ये थी कि उन की अपने भाई के घर में खूब चलती थी. वह विधवा थी शायद इसलिए लोग लिहाज करते थे. उन की बात को नकारने का साहस किसी में न था.

राकेश ने सीमा से झगड़े का जो ब्यौरा दिया, उसे अनिता बुआ ने बड़े ध्यान से खामोश रह कर सुना. हुआ यह था कि एक रविवार की सुबह राकेश मां के घुटनों के दर्द का इलाज कराने उन्हें डाक्टर को दिखाने ले गया था.

रिपोर्ट और एक्सरे घर में छूट जाने के कारण उसे घंटे भर बाद ही अकेले घर लौटना पड़ा.

ड्राइंग रूम की खिड़की खुली हुई थी. इस के पास खड़े हो कर राकेश ने वो बातें सुन ली जिन्हें सीमा ने उस से छिपा रखा था.

ड्राइंगरूम में सीमा के साथ उस का सहयोगी अध्यापक अजय मौजूद था. अजय पहले भी उन के घर कई बार आया था, पर हमेशा राकेश की मौजूदगी में. उस की पत्नी का करीब 4 साल पूर्व अपने पहले बच्चे को जन्म देते हुए देहांत हो गया था. बाद में वो शिशु भी बचाया नहीं जा सका.

‘‘अरे, यहां बैठों, सीमा. चायनाश्ते के चक्कर में न पड़ के कुछ प्यारमोहब्बत की बात करो और अपने हाथों को काबू में रखो.’’ सीमा ने अजय को डांटा था, पर उस की आवाज में गुस्से व नाराजगी के भाव नाटकीय लगे राकेश को.

‘‘अरे, जब दिल काबू में नहीं रहा, तो हाथ कैसे काबू में रखूं?’’

‘‘बेकार की बात न करो और सीधी तरह अपनी जगह बैठे रहो. मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘भाई डियर, चाय की जगह अपने प्यारे हाथों से मीठी सी काफी मिला दो, तो मजा आ जाए.’’

‘‘रसोई में आने की जरूरत मत करना, नहीं तो बेलन पड़ेगा.’’

‘‘क्यों इतना दूर भागती हो? और कब तक भागोगी?’’

सीमा ने अजय के इन सवालों का कोई जवाब नहीं दिया था. अंदर से अखबार के पन्ने पलटने की आवाजें आने लगी, तो राकेश खिड़की के पास से हट कर बाहर सड़क पर आ गया.

उस का तनमन ईर्ष्या, गुस्से व नफरत की आग में सुलग रहा था. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सीमा ने अपने सहयोगी के साथ अवैध प्रेम संबंध बना रखे थे.

राकेश ने गुस्से भरे लहजे में आगे बुआ को कहा, ‘‘बुआजी, अपनी काली करतूत नहीं देख रही है आप की भतीजी और मैं ने जरा हाथ उठा दिया, तो भाग कर मायके जा बैठी है. अब मेरे सब्र का बांध टूटने को तैयार है. अगर वो फौरन नहीं लौटी, तो बैठी रहेगी मायके में जिंदगी भर.’’

‘‘राकेश बेटा, औरतों पर हाथ उठाना ठीक बात नहीं है,’’ बुआ सोचपूर्ण लहजे में बोली, ‘‘फिर सीमा का कहना है कि वो चरित्रहीन नहीं है. तुम मारपीट करने के लिए पछतावा जाहिर कर देते, तो सारा मामला कब का सुलझ गया होता.’’

‘‘बुआजी, मैं कभी नहीं झुकूंगा इस मामले में.’’

‘‘और सीमा भी झुकने को तैयार नहीं है. फिर बात कैसे बनेगी?’’

‘‘मैं ने कोर्ट का रास्ता पकड़ लिया, तो सारी अक्ल ठिकाने आ जाएगी उस की.’’

राकेश की इस धमकी को ले कर बुआ ने फौरन कोई प्रतिक्रिया प्रकट नहीं करी. वो सोच में डूबी खामोश रही.

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