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‘‘आई एम सौरी, सीमा. अपने सब गिलेशिकवे भुला कर मेरे साथ वापिस चलो, प्लीज,’’ बहुत धीमी कमजोर आवाज में राकेश ने अपने दिल की इच्छा जाहिर कर दी.

सीमा ने कोई जवाब नहीं दिया और सिर झुका कर अपनी उंगलियां तोड़नेमरोड़ने लगी. बीमार और कमजोर नजर आ रहे राकेश से उसे वो सब कठोर, कड़वी बातें कहने की सुविधा नहीं रही थी. जो कहने का फैसला उस का मन पहले से कर चुका था.

सीमा की जगह बुआ ने कोमल स्वर में राकेश से कहा, ‘‘तुम फिक्र मत करो बेटा, सीमा तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जा रही है. गुस्से में उस ने तो तलाक की बात कही है, उसे मन से निकाल  दो.’’

‘‘मामला इतना सीधा नहीं है, बुआ,’’ सीमा ने राकेश को गलत आश्वासन दिए जाने के विरोध में मुंह खोला, “जो अतीत के जख्म मेरे दिल पर लगे हैं, उन का भरना आसान नहीं है. इन के मन में मेरे चरित्र को ले कर जो शक पैदा हुआ है, वो ये कैसे भुला पाएंगे? सफाई देने और माफी मांगने से अतीत को भूला नहीं जा सकता.’’

‘‘मैं अतीत को भूलनेभुलाने की नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत करने की सलाह तुम दोनों को दूंगी सीमा. किसी भावी राहत, सुख, इच्छापूर्ति या स्वतंत्रता की चाहत के लिए अपनी बसीबसाई गृहस्थी को तोड़ना समझदारी व हित की बात नहीं है,’’ बुआ का स्वर भावुक हो उठा.

‘‘बुआ, आपसी मनमुटाव व दिलों की खटास जब बहुत बढ़ जाए तो किसी भी संबंध को जबरदस्ती ढोर जाना भी गलत होगा,’’ सीमा ने दलील दी.

‘‘बेटी, बिना तुलना किए हमें कोई भी संबंध बोझ नहीं लग सकता. क्या तुम इस बात से इंकार करोगी कि तुम अपने इस सहयोग अजय से अपने सुखदुख की बातें करती हो?’’

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