“उफ्फ, पापा को कोविड हो गया और अस्पताल में एडमिट करना पड़ा. अब क्या करूं बाला?” निशा रोआंसे स्वर में अपने पति से कहा.
"तुम्हें किस ने बताया? क्या तुम्हारी मम्मी से बात हुई?"
"हां, मम्मी का फोन आया था, बता रही थीं कि 2-3 दिन से बुखार था और फिर खांसी भी शुरू हुई. वहीं पास में मामा रहते हैं न, उन्होंने कहा कि कोविड टेस्ट करवा लो. तब पापा ने टेस्ट करवाया और रिपोर्ट पोजिटिव आई."
"तुम फिक्र न करो, सब ठीक होगा."
"क्या ठीक होगा बाला? पापा को वेंटिलेटर पर रखा गया है, मुझे तो डर लग रहा है. मेरी मम्मी वहां अकेली हैं. मेरे सिवा कौन है उन का इस दुनिया में?"
"मैं समझ सकता हूं निशा, पर लौकडाउन चल रहा है, हम यहां रह कर चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते."
“हम्म, न जाने क्या होगा अब,” निशा की आंखों से आंसू बह निकले थे.
यों तो बालाकृष्णन और निशा का वर्क फ्रोम होम चल रहा है, पर निशा का मन अब काम में कहां लग रहा था, वह तो अपने पिता की फिक्र में घुली जा रही थी. आखिर एकलौती बेटी जो ठहरी और मातापिता ने तो उस की परवरिश बेटे के समान ही की है.
“तुम फिक्र न करो निशा. पापा ठीक हो जाएंगे और फिर लौकडाउन खुलते ही हम उन्हें यहां ले आएंगे,”
बाला की बात सुन कर निशा के चेहरे पर पलभर को मुसकान आ गई थी.
2 दिन बीते निशा फोन पर थी और वह फूटफूट कर रोने लगी. बाला को समझते देर न लगी कि जरूर निशा को अपने पिता के बारे में कोई अनहोनी सुनने को मिली है. वह दौड़ कर कमरे में आया, उस के हाथ से फोन लिया. दूसरी तरफ निशा के मामा थे, जो उसे हिम्मत बंधाने की कोशिश कर रहे थे.