भवानी वैसे भी कालेज की प्राचार्या रह चुकी थीं. पति के न रहने पर जीवन में बहुत उतारचढाव देख चुकी थी. सो एक दिन निशा की मां से बोली, “उषाजी, क्यों न हम अपनेअपने काम की पारी बांध लें. एक दिन यदि आप नाश्ता बनाएंगी तो अगले दिन मैं. आप सुबह का खाना बनाएंगीbतो शाम का मैं.
"इस तरह हम अपनीअपनी पसंद का खाना बना सकते हैं. हमारे ही तो बच्चे हैं तीनों, उन्हें भी उत्तर और दक्षिण भारतीय दोनों तरह का खाना और साथ ही मां के हाथ का स्वाद भी मिलेगा."
निशा की मां उषा भी बात को समझते हुए बोलीं, "हांजी, आप ठीक ही कहती हैं, इस से घर की व्यवस्था सुचारु रूप से चलेगी. जब आप पकाएंगी, मैं समझूंगी आज मैं चेन्नई में हूं और जब मैं पकाऊंगी आप को दालबाटीचूरमा खिलाते हुए बातोंबातों में पूरा राजस्थान दर्शन का टूर करवा दूंगी.”
दोनों के ठहाकों से घर का डायनिंग एरिया गूंज उठा.
ऋत्विक पास ही बैठा उन दोनों के साथ पत्ता सब्जी साफ करते हुए ये सब सुन रहा था. वह चहक कर बोला और मैं कभी साउथ इंडियन ज्वाइंट के शेफ के हाथ का खाना खाऊंगा और कभी राजस्थानी चोखीढाणी के मजे लूंगा. एक बार जब नानी के यहां गया था, तो पापा मुझे जयपुर घुमाने ले गए थे, तब मैं चोखीढाणी गया था, बहुत मजा आया था.
करीब एक वर्ष बीत गया था. सेकंड वेब अपने जोरों पर थी, निशा के पिता की बरसी करीब आ रही थी.
निशा की मां ने जब यह बात भवानी को बताई, तो भवानी बोली, “अब बदलते समय के साथ हमें भी तो बदलना होगा न बहनजी, इस समय सब से बड़ा धर्म है मानवता का धर्म. यों करिए, अपनी ही सोसायटी के स्टाफ को दालचावल के पैकेट वितरित करवा दीजिए. इस समय रिश्तेदारों को जमा करना तो उचित नहीं और संभव भी नहीं.”