औफिस जाते समय सृजन रश्मि को मां के घर छोड़ता गया. बड़े सूटकेस के साथ रश्मि को देख कर छोटी भाभी ने तंज कसा, ‘‘जीजाजी बड़ी खुशी हुई कि इस बार आप भी दीदी के साथ यहां रहेंगे, वरना दीदी के कपड़े तो ब्रीफकेस में ही आ जाते थे. आप दीदी से शादी वाले गठजोड़ अभी तक बांधे हुए हैं," सुन कर सृजन हंसता हुआ नीचे उतर गया.
कभी रश्मि औफिस में सृजन को फोन कर के आने को कहती, तो सृजन औफिस से लौटते में बस 10-15 मिनट को आ जाता. भूल कर भी रश्मि से घर चलने को नहीं कहता.
एक बार रश्मि ने ही पूछा, ‘‘अम्मांजी भी क्या सोचेंगी? मैं जैसे यहां आ कर जामवंत के पैर सी जम ही गई.’’
सृजन ने रश्मि की दलील को हथेली पर जमी धूल सा उड़ा दिया, ‘‘तुम्हें डाक्टर ने रेस्ट बताया है. वहां गृहस्थी की चकल्लस में सांस लेने तक की फुरसत नहीं मिलती तुम्हें. यहां सब तुम्हारी सेवा में लगे रहते हैं. तुम्हें यहां छोड़ कर मैं बेफिक्र हूं.’’
सृजन के इस अपनेपन से रश्मि भीतर तक भीग गई.
एक दिन रश्मि की सहेली अपाला की छोटी बहन उर्वशी अपनी सहेली सोनल के साथ रश्मि से मिलने आई. दोनों ने खाना वहीं खाया. रश्मि के पड़ोस में उर्वशी की ननद रिक्ति रहती थी. उर्वशी उस से मिलने चली गई. रश्मि सोनल को अम्मां के कमरे में आराम से बातचीत करने के लिए ले गई. वहां सृजन की फोटो देख कर सोनल ठिठकी. कुछ देर बाद उस ने रश्मि से पूछा, ‘‘ये महाशय कौन हैं दीदी? मैं इन्हें पिछले 3 सालों से जानती हूं. नई तितलियों पर मंडराने वाले भ्रमर हैं जनाब.’’
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