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थोड़ी देर बाद धरा चली गई. रश्मि अनमनी सी पलंग पर पड़ गई. रश्मि की आंख खुली, तो संध्या का सुरमई रंग रात्रि की कालिमा में बदल रहा था. आज सूर्य पश्चिम से कैसे निकल आया. रश्मि को आश्चर्य हुआ. सृजन आज 7 बजे ही घर आ गया था. बड़ी भाभी वृंदा l ने सृजन को औफिस से तुरंत घर आने के लिए फोन किया था. वृंदा सहित घर के सब सदस्य बरामदे में बैठे थे. सृजन भी सीधा वहीं पर आया. अम्मां वृंदा को दिलासा दे रही थीं.

सृजन को देखते ही भतीजी पल्लवी सुबकते हुए बोली, ‘‘चाचू हमें अभी की अभी नानू के पास कानपुर ले चलिए. अजस्र मामा का फोन आया था कि नानू सब को बुला रहे हैं. हैलेट  अस्पताल की इमर्जेंसी में नानू एडमिट हैं. मैं ने अपना और मम्मा का सूटकेस लगा लिया है.’’

बड़े भैया कंपनी की मीटिंग में यूएसए गए हुए थे. रश्मि से सूटकेस लगाने को कह सृजन फ्रैश होने के लिए बाथरूम में घुस गया. ड्राइवर ने कार निकाल ली थी. स्टेशन पहुंचते ही सृजन ने देखा कि लेट होने की वजह से कानपुर की ट्रेन छूटने में 10 मिनट थे. तत्काल में सीट मिल गई. उन के ट्रेन में बैठते ही गाड़ी ने प्लेटफार्म छोड़ दिया. एकदो स्टेशन निकलने पर अपने औफिस को सूचित करने के लिए सृृजन ने अपना मोबाइल तलाशा, पर मोबाइल कहीं नहीं मिला. उस ने वृंदा से कहा, ‘‘भाभी जरा अपना मोबाइल दीजिए. मेरा मोबाइल या तो औफिस में छूट गया या घर पर हड़बड़ी में रह गया.’’

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