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गौतम अभी महज 11-12 वर्ष का है, देखिएगा मैं इसे कहां से कहां तक पहुंचाता हूं. बड़ा होने पर देश का नामी पार्श्वगायक नहीं बना तो मेरा नाम बदल दीजिएगा,’’ मास्टरजी ने जब यह कहा तो अमीषा की खुशियों का ठिकाना ही न रहा. वह सोचने लगी, कल तक जो मास्टरजी सिखाने में आनाकानी कर रहे थे वे आज स्वयं गौतम को सिखाने को लालायित थे.

‘‘मास्टरजी ठीक कह रहे हैं, मां, अगर गौतम यह स्पर्धा जीत जाता है तो कुछ पैसा भी आएगा हमारे पास, फिर हम इस का इलाज दिल्ली, मुंबई यहां तक कि विदेश में भी करवा सकते हैं,’’ आतुर ने अंतिम दाव फेंका.

‘‘मेरा मन नहीं मान रहा, बेटा,’’ मां का मन भर आया था, ‘‘हमारे पास जमीनजायदाद है, हम उसे बेच कर भी गौतम का इलाज करवा सकते हैं.’’

‘‘गौतम मुंबई जा रहा है, यह फैसला लिया जा चुका है,’’ अमीषा ने गुस्से से भर कर कहा.

मुंबई पहुंच कर अमीषा चैनल के दफ्तर में गई. फौर्म भरा और गौतम के गानों की एक सीडी दफ्तर को सौंपी. एक हफ्ते के इंतजार के बाद गौतम को बुलवाया गया. यह उस की संगीत यात्रा के दूसरे पड़ाव के प्रथम चरण की ओर पहला कदम था. गौतम को 3 गाने दिए गए. तीनों ही उस ने बिना किसी परेशानी या असहजता से गा दिए. उस के मन पर स्पर्धा में आगे आने का कोई दबाव नहीं था और न ही उस का ध्येय था कि वह चुना जाए. सचाई तो यह थी कि वह वापस अपने शहर लौट जाने की इच्छा लिए गा रहा था.

2 महीने के बड़े गैप के बाद आयोजकों का पत्र आया और गौतम के चुने जाने की खबर चारों ओर फैल गई. अगले ही दिन लगभग 3 महीने के लंबे समय के लिए गौतम और अमीषा मुंबई की ओर चल पड़े. अमीषा और आतुर अश्वस्त थे कि गौतम पहली पंक्ति के 10 गायकों तक तो पहुंच ही जाएगा. शिव सरगम का अंतिम पड़ाव आ चुका था और एक कांटे की स्पर्धा के बाद जो हुआ वह अमीषा और आतुर के मन में कमल के फूल की तरह खिल गया. गौतम स्पर्धा में विजयी हुआ था और शिव सरगम के ताज से नवाजा गया था.

समूचे भारत और विश्व के कई देशों के समाचारपत्रों में उस की तसवीर और उस पर लेख छापे गए. उस की तसवीर के साथ अमीषा और आतुर की तसवीरें भी समाचारपत्रों के मुख्यपृष्ठों पर छपीं. रातोंरात गौतम प्रसिद्धि के क्षितिज का धु्रव तारा बन गया और उस के साथ अमीषा और आतुर भी चमकते हुए तारे बन कर आकाश पर छा गए. चैनल से हुए करार के मुताबिक पूरे एक साल के लिए गौतम को जगहजगह चैनल के लिए कार्यक्रम प्रस्तुत करने थे. जीती गई पुरस्कार राशि हर माह एक किस्त के रूप में उन्हें मिलनी थी.

गौतम भाग कर अपने शहर वापस जाना चाहता था ताकि वहां वह अपनी दादी मां से मिल सके, अपने दोस्तों को अपने नए उपहार दिखा सके, ढेर सारी बातें कर सके. चैनल वालों से काफी अनुनयविनय के बाद उसे सिर्फ 2 दिनों की छुट्टी मिली. अपने शहर में उस का भव्य स्वागत हुआ. स्कूल में उस का कार्यक्रम हुआ. हर गलीनुक्कड़ में बड़ेबड़े पोस्टर लगाए गए. उसे मालाओं से लाद दिया गया. उस पर फूलों की बरसात हुई.

गौतम पूरी तरह से उस सम्मान के महत्त्व को समझ ही नहीं पाया जबकि आतुर और अमीषा गौतम को मिली इस सफलता का पूरा आनंद ले रहे थे. उन की आंखों में एक अजीब सी चमक  थी और मन में ढेर सारा उल्लास. बड़ी मुश्किल से समय निकाल कर गौतम घर पहुंच पाया, जहां उस की दादी बड़ी बेसब्री से उस की राह देख रही थीं. पहुंचते ही वह दादी के गले से लिपट गया, ‘‘मैं आज यहीं सोऊंगा, दादी के पास,’’ गौतम इठलाता हुआ बोला. 2 दिन कब गुजर गए, पता ही नहीं चला. मगर सामने था एक साल का वह लंबा समय जो अनुबंध के मुताबिक चैनल का था. आतुर और अमीषा दिल थाम कर उस दिन का इंतजार कर रहे थे जिस दिन चैनल की गुलामी से आजाद हो कर वे चैन की सांस ले सकें.

‘‘यूरोप के 7 देशों में हमारा ट्रिप जाएगा और हर जगह हम गौतम का कार्यक्रम रखेंगे. कौंट्रैक्ट में पैसों के बारे में पूरा खुलासा है,’’ ट्रिप के मालिक मंजीत ने कागजों का एक पुलिंदा अमीषा को सौंपते हुए कहा, ‘‘वह तो ठीक है मंजीतजी, मगर गौतम अभी बहुत छोटा है, अकेले इतनी दूर…’’

‘‘अकेले कहां अमीषाजी, आप दोनों भी पूरे यूरोप ट्रिप में गौतम के साथ रहेंगे और यात्रा, खानापीना, घूमनाफिरना, तमाम खर्चा हमारी कंपनी उठाएगी.’’

अमीषा और आतुर को मानो मनमांगी मुराद मिल गई थी. जल्द ही सारे यूरोप की ओर निकल पड़े. ट्रिप कामयाब रहा और इस कामयाबी ने अगले कार्यक्रमों के लिए रास्ता खोल दिया. गौतम की डायरी और अमीषा की तिजोरी दोनों धीरेधीरे भरने लगीं.

दादीमां की बीमारी की खबर तो अमीषा और आतुर ने गौतम से छिपा ली, मगर उन की मौत की खबर वे चाह कर भी न छिपा पाए. शायद, इंसानियत का थोड़ा सा अंश शेष रह गया था. ‘‘मैं घर जाऊंगा, आज प्रोग्राम नहीं करूंगा मम्मी, प्लीज, मुझे दादी को देखना है, एक बार.’’

‘‘देखो बेटा, हम ने आज के कार्यक्रम का एडवांस पैसा लिया हुआ है. इतना बड़ा आयोजन हो चुका है. विदेशी मेहमान आ चुके हैं. ऐसे में कार्यक्रम कैंसिल करना ठीक नहीं लगता. साख खराब हो जाती है और फिर सोचो, दादी मां तो अब रही नहीं. तुम चले भी जाओगे तो उन्हें वापस नहीं ला सकते.’’

उस रात गौतम ने जो गाया अपनी दादी के लिए दिल से गाया, आंखों में आंसू दादी मां के लिए थे और कार्यक्रम से मिले पैसे आतुर और अमीषा के लिए थे. गौतम धीरेधीरे एक टकसाल, पैसा कमाने की मशीन में तबदील हो गया था. अमीषा और आतुर ने मुंबई के एक नामीगिरामी इलाके में बड़ा सा फ्लैट बुक करवा लिया था और जल्द ही उस में रहने का ख्वाब संजोए बैठे थे. पैसा जुटाने के लिए वे दिनरात संयोजकों से मिलते और देशविदेश में कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करते. साथ ही, गौतम को चुस्तदुरुस्त रखना भी उन का एक अहम काम था. घूमनेफिरने से ले कर खानेपीने तक की हजार पाबंदियों के बीच गौतम का बचपन कहीं खो सा गया था. जब भी किसी बच्चे को वह आइसक्रीम या गोलगप्पे खाते या समंदर की लहरों से खेलते हुए देखता तो मायूसी उस के चेहरे से ले कर अंतर्मन तक को भेद जाती.

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