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उस रात मेकअप रूम में गौतम खुद को संभाल नहीं पा रहा था. उस का सिर भन्ना रहा था. उसे लग रहा था मानो वह स्टेज पर नहीं जा पाएगा. ‘‘क्या हुआ गौतम, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है...?’’ एक साथी गायक आरिफ ने उस की हालत देख कर कहा. गौतम कुछ जवाब नहीं दे पाया. ‘‘मैं दवाई दूं, देते ही ठीक हो जाएगा,’’ आरिफ ने गौतम को एक पुडि़या थमाते हुए कहा.

गौतम ने दवा की पुडि़या गले के नीचे उतार ली. असर तत्काल हुआ और गौतम स्टेज तक न सिर्फ पहुंचा बल्कि घंटों तक लगातार प्रदर्शन किया. मासूम समझ नहीं पाया कि वह पुडि़या दवा की नहीं, मौत की है. धीरेधीरे दवा की पुडि़या उस की जरूरत बन गई और हर कार्यक्रम से पहले उसे गले से उतारना उस के लिए आवश्यक हो गया.

आतुर और अमीषा गौतम की इस ऊर्जा और जोश से भरी गायकी को ले कर मन ही मन फूले नहीं समा रहे थे. उन्हें लग रहा था कि फ्लैट से बंगले तक का सफर बहुत लंबा नहीं है. कई साल तक गौतम का हर कार्यक्रम जबरदस्त कामयाब रहा और हर सफलता के बाद आने वाले पैसे के ब्रीफकेस का आकार बढ़ता गया. पैसा जितना ज्यादा बढ़ता, चाहत उस से कई गुना ज्यादा बढ़ जाती. शायद, इसी का नाम इंसानी फितरत है.

सफलता के शिखर तक पहुंचने के बाद अमीषा और आतुर को बढ़त की अपनी कोशिशों में एक अवरोध सा महसूस हो रहा था. उन्हें लगने लगा कि गौतम को न्योता देने वाले लोगों से खचाखच भरा ड्राइंगरूम कुछ खालीखाली सा लग रहा है. कार्यक्रमों में तालियों की गूंज कुछ कम है और चैक पर भरी जा रही रकम में शून्य कम हो रहे हैं. दोनों परेशान थे कि यह उतार क्यों और कैसे आ रहा है और ऐसा क्या किया जाए कि गौतम ने जो मुकाम हासिल किया है वहां से वह कभी भी न फिसले, अपने पहले पायदान पर सदा के लिए मजबूती से टिका रहे.

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