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मनीषा और आतुर के लिए उन का बेटा गौतम पैसा उगाहने की मशीन बन गया था. उन्होंने अपने लालच और चाहतों के आगे गौतम का बचपन उस से छीन लिया था. काश, उन्हें वक्त रहते एहसास हो जाता कि गौतम की मासूमियत छीन कर वे उसे गर्त में धकेल रहे हैं...

सुबह अलार्म बजते ही अमीषा  हड़बड़ा कर उठी. वह गौतम के कमरे की ओर भागी, जो गहरी नींद में बेफिक्री से सो रहा था.‘‘उठो बेटा, मास्टरजी आते ही होंगे,’’ अमीषा लाड़ जताती हुई बोली, ‘‘राजा बेटा, जल्दी से नहा कर तैयार होगा, फिर मास्टरजी से संगीत सीखेगा, और फिर स्कूल जाएगा.’’

‘‘सोने दो न, मम्मी, मुझे नींद आ रही है,’’ गौतम अलसाई आवाज से बोला.

‘‘नहीं मेरे बच्चे, मास्टरजी आते ही होंगे, कितनी मुश्किल से वे राजी हुए हैं तुम्हें सिखाने को. कितनी बड़ी सिफारिश लगवाई है तुम्हारे पापा ने.’’ अमीषा गौतम को बाथरूम की तरफ लगभग धकेलते हुए ले गई थी.

थोड़ी ही देर में गौतम मास्टरजी के सामने था. उस की आंखों में नींद भरी थी और चेहरे  पर थकान साफ दिख रही थी. मास्टरजी हारमोनियम ले कर बैठ गए और आवाज साफ करते हुए बोले, ‘‘आज मैं तुम्हें रागदरबारी के बारे में बताऊंगा. इस राग पर आधारित कई फिल्मी गाने हैं, जैसे स्वर सम्राट मोहम्मद रफी का गाया फिल्म ‘बैजू बावरा’ का भजन.’’

मास्टरजी तन्मयता से पढ़ा रहे थे, तभी उन का ध्यान गौतम पर पड़ा जो बैठेबैठे ऊंघने लगा था. ‘‘कहां है तुम्हारा ध्यान? ऐसे संगीत नहीं सीखा जाता. संगीत एक साधना है. तुम इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हो.’’

ऊंची आवाज सुन कर अमीषा और आतुर दोनों भागे आए. दोनों को एकसाथ आते देख गौतम सहम गया. मास्टरजी का संताप जारी था, ‘‘क्या हो गया है बच्चों को और इन के मांबापों को. संगीत सीखना है, मगर त्याग नहीं करना है. शिखर तक पहुंचना है मगर बिना सीढि़यां चढ़े.’’

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