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‘‘उन सब से पहले रास्ते में आप मुझे समझाना सारा चक्कर,’’ ऐसा कह उलझन का शिकार बनी कविता घर में ताला लगाने के काम में लग गई. आनंद की घर की तरफ बढ़ते हुए आशी बुआ ने कविता का हाथ पकड़ा और संजीदा लहजे में बोलीं, ‘‘बेटी, तू ने देख लिया था कि आज हर व्यक्ति को अपने जीवनसाथी की, अपनी संतान अपने मातापिता या रिश्तेदार की तुलना में फिक्र ज्यादा थी. सिर्फ तेरी मां इस का अपवाद रहीं और उन के अनोखे व्यवहार के बारे में मैं अपने विचार तुझे बाद में बताऊंगी.’’

‘‘बुआ, मेरी समझ से हर किसी को अपने जीवनसाथी की ज्यादा जुङाव होना स्वाभाविक है. पतिपत्नी किस उम्र के हैं, इस का ज्यादा प्रभाव इस बात पर नहीं पड़ता है,’’ कविता ने अपना मत प्रकट किया.

‘‘तुम ठीक कह रही हो। एकलौता बेटा प्यारा है, पर उस से पहले तेरी सास उर्मिला अपने पति दीगरवालजी को देखने गईं. मनोज की तुम से बहुत अच्छी पटती है, पर वह सुनंदा को देखने भागा चला गया. राजेश से तुम आजकल नाराज चल रही हो, पर अगर मौका पड़ता तो तुम उसे पहले देखने जाती या अपने जीजा को? या अपने पिता को?’’

‘‘अभी फैसला बताना कठिन है, पर बदहवासी की हालत में शायद राजेश को ही देखने भागती. औरों से भिन्न नहीं हूं मैं, बुआ,’’ कविता ने सोचपूर्ण लहजे में जवाब दिया.

‘‘अब मेरी बात ध्यान से सुनो, कविता. शादीशुदा जिंदगी की फिल्म में हीरोहीरोइन की भूमिका पतिपत्नी ही निभाते हैं. उन के आपसी संबंधों में कितने भी उतारचढ़ाव आएं, पर जरूरत के समय वे दोनों ही एकदूसरे के सच्चे साथी, शुभचिंतक और मददगार साबित होता है. मेरे नाटक के क्या आज इस बात को सिद्ध नहीं किया है?’’

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