उस रात मनोज, सुनंदा और उन के दोनों बच्चे वापस अपने घर नहीं गए थे. आशी बुआ के जोर देने पर मनोज ने सुनंदा और बच्चों को 3 दिनों के लिए वहीं रहने की इजाजत दे दी.
अगले दिन शाम को आशी बुआ सुनंदा के दोनों बच्चों के साथ पास वाली मुख्य सङक पर टहलने निकलीं. उन्होंने नोट किया कि इस सङक पर पहुंचते ही जो 2 सब से बड़ी इमारतें नजर आती थीं, वे नर्सिंगहोम थे.
बाईं तरफ 50-60 मीटर दूर आलोक नर्सिंगहोम था. दाईं तरफ करीब इतनी ही दूरी पर ज्योति नर्सिंगहोम था. दोनों ही बहुत पुराने और आसपास के इलाके में खूब मशहूर थे. इन दोनों में शहरी भी आते थे और आसपास के कस्बों के लोग भी.
इन्हीं दोनों नर्सिंगहोम को आधार बना कर आशी बुआ ने कविता की आंखें खोलने व पतिपत्नी के रिश्ते का जरूरत समझाने का काम अगले दिन दोपहर में की. उस समय घर में सिर्फ कविता मौजूद थी. बुआ ने अपनी भाभी कमलेश को अपनी बचपन की सहली रंजना के घर बहाने से भेज दिया, जिस के पिता पुलिस में कांस्टेबल थे उन की ही प्रार्थना पर चाचेरे भाई की लङकी अनिता ने सुनंदा को बच्चों समेत अपने घर खाने पर बुला लिया था. उन के भैया आनंद सुबह काम पर चले ही गए थे.
अपने बेटे राहुल को उन्होंने पड़ोसी मेवालालजी के बेटे की मोटर साइकिल पर सुबह भिजवा कर सारा इंतजाम पूरा कर लिया था.
आशी बुआ का सारा नाटक दोपहर 12 बजे के आसपास शुरू हुआ. कविता ने सबकुछ कमरे की खिडक़ी पर पड़े परदे की ओट में छिप कर देखासुना था. कविता की ससुराल ज्यादा दूर नहीं 4-5 किलोमीटर पर थी. वहां से राहुल कविता की सास उर्मिला को मोटरसाइकिल पर पीछे बैठा कर सब से पहले ले आया.