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आशी बुआ को कविता की समस्या समझने में सिर्फ 1 दिन लगा. सभी संबंधित व्यक्तियों से बात कर के उन्हें अच्छाखासा अंदाजा हो गया कि कविता क्यों नाराज हो कर पिछले डेढ़ महीने से ससुराल छोड़ मायके में रह रही थी. अपने भैयाभाभी की शादी की 30वीं सालगिरह पर बधाई देने आशाी अपने छोटे बेटे राहुल के साथ कानपुर से दिल्ली आई थी. इस गश्त में सभी करीबी और खास रिश्तेदार थे. उन्होंने इस मौके का फायदा उठाया और समस्या की जड़ खोज निकाली.

‘‘कविता घर से अलग रहना चाहती है, पर राजेश वैसा करने को तैयार नहीं. घर का 2 कमरे का अपना मकान होते हुए किराए में बेकार एक कमरे में ₹ 3-4 हजार फूंकने की क्या जरूरत है?’’ कविता के ससुर दीगरवालजी की नाराजगी को आशी ने साफ महसूस किया था.

‘‘मेरे सीधेसादे बेटे को बहुत ज्यादा तेज लङकी मिल गई, बहनजी,’’ कविता की सास उर्मिला ने दुखी स्वर में उन्हें बताया, "कविता को घूमनेफिरने, बाहर खाने, खरीदारी करने, फिल्म देखने में बहुत दिलचस्पी है. बस, घरगृहस्थी की जिम्मेवारियों का जिक्र करा नहीं कि उस का मुंह सूज जाता है. अब मायके में जम कर मेरे बेटे पर जबरदस्ती दबाव बना रही है. मेरी बात का बुरा मत मानना बहनजी, आप के भैयाभाभी ने अपनी छोटी बेटी में चमकदमक व नखरे तो खूब पैदा करवा दिए पर समझदारी ज्यादा नहीं दी.’’

‘‘जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा,’’ आशी चौधरी ने उन दोनों को ऐसी तसल्ली बारबार दी, पर उन की आंखों में बेटेबहू के अलगाव को ले कर संशय के भाव बने ही रहे. जब पैसे कम हों तो बचत की कीमत कविता समझ ही नहीं रही थी.

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