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सागर से मिलने मात्र की कल्पना से ही नैना की भूखप्यास जैसे पंख लगा कर कहीं दूर उड़ जाती थीमन में एक अजीब सी बेचैनी छाई रहती थीमन किसी काम में नहीं लगता थाऐसा लगता थाबससोचते रहोसागर के खयालों में डूबे रहो. और खयालों के भंवर से निकलो व फिर उसी में डूब जाओ. न जाने कैसी प्यास है जो बुझती ही नहीं.

नैनाओ नैनाअब उठो भीकहां  खोई  होखाना नहीं खाओगीचलोजल्दी से आ जाओडिनर टेबल पर सभी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं,” नैना की आंटी कहती हुई अपने काम में लग गईं.

नैना ने आंटी की आवाज सुनी तो खयालों के घेरे से बाहर निकली. घड़ी की तरफ नजर डाली तो रात के 8 बज रहे थे. इस का मतलब लगभग सारी दोपहर से रात 8 बजे तक वह सोचती रही. उसे सागर की आकर्षक गहरी आंखों  में इतना नहीं डूबना चाहिएसब कामधाम ही भूल जाओ. उसे तो आज नोट्स भी तैयार करना थे पर पूरा शनिवार यों ही बरबाद हो गयायही सब सोचतेसोचते ही डिनर की टेबल पर आई तो देखाखाना आंटीजी लगा चुकी हैंअंकलजी और भाभीभैया डिनर की टेबल पर जम चुके हैं. सभी ने खामोशी से खाना खाया. अंकलजी को खाने के दौरान किसी भी प्रकार की बातचीत करना पसंद नहीं था. उन्हें अनुशासन के खिलाफ किसी का भी जाना पसंद नहीं था. नैना उन के दिवंगत बड़े भाई की इकलौती बेटी थीइसलिए वे उस की पढ़ाईलिखाई का ध्यान रखते थे. नैना के मातापिता की मृत्यु के बाद आंटी ने ही  नैना की देखभाल की. जब नैना 12वीं में पढ़ती थी तभी एक हादसे में नैना के मातापिता दोनों की मृत्यु हो गई थी.

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