कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

जीजी बोलीं, ‘आजकल लोग लड़कालड़की की परवरिश में फर्क नहीं करते. उन्हें भी अपनी अपेक्षाएं बताने का हक है.’

‘अरे भई, शिक्षादीक्षा, खानापीना, लाड़प्यार सभी में लड़कालड़की बराबर होंगे तब भी फर्क तो रहेगा न.’ जीजाजी बोले, ‘बहू इस घर में आएगी, अविनाश उस घर को नहीं जाने वाला.’ बातों से लगा कि जीजाजी अब चिढ़ गए हैं.
‘लेकिन जीजाजी, आजकल दोनों की कमाई में फर्क नहीं है. समान अधिकार हैं स्त्रीपुरुष के.’

‘देखो रश्मि, हम लोगों को बहू चाहिए, नौकरी नहीं. इस घर को एक कुशल गृहिणी की जरूरत है, अफसर की नहीं. अगर लड़की होशियार है, कोई काम कर रही है तो इस घर से उसे पूरा सहयोग मिलेगा, लेकिन अगर वह घर से ज्यादा महत्त्व अपने कैरियर को देना चाहती है तो उसे शादी नहीं करनी चाहिए.’

‘जीजाजी, आप ने मेरे सामने यह अभिप्राय बता दिया तो ठीक है, लेकिन किसी आधुनिक विचारों वाली लड़की के सामने मत बोलिएगा. झगड़ा हो जाएगा.'

‘होने दो, लेकिन अपने अनुभव की बातें बताने से मुझे कोई नहीं रोक पाएगा,’ जीजाजी की आवाज कुछ ऊंची उठ गई, ‘उस दिन एक महाशय पत्नी के साथ आए थे. कहने लगे कि उन की बेटी को विदेश जाने का मौका मिलने वाला है. तो क्या अविनाश उस के साथ अपने खर्च से जा पाएगा?’

‘फिर...’

‘मैं ने कह दिया कि महाशय, मेरे बेटे को विदेश जाने का मौका मिलता तो पत्नी का खर्चा वह खुद देता और उसे साथ ले जाता. उन की बेटी भी तो मेरे बेटे का टिकट खरीद सकती है. दोनों की कमाई मेंं फर्क नहीं. अधिकार समान है, फिर यह दोहरा मानदंड क्यों?’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...