वैसे, जीजी मेरी सगी बहन तो नहीं, लेकिन अम्मां और आपा ने उन्हें हमेशा अपनी बेटी के समान ही माना. इसलिए जब मेरे पति ने मुंबई की नौकरी छोड़ कर हैदराबाद में काम करने का निश्चय किया, तब आपा ने नागपुर से चिट्ठी में लिखा, ‘अच्छा है, हमारे कुछ पास आओगे तुम लोग. और हां… जीजी के हैदराबाद में होते हुए फिर हमें चिंता कैसी.’
जीजी बड़ी सीधीसादी, मीठे स्वभाव की हैं. दूसरों के बारे में सोचतेसोचते अपने बारे में सबकुछ भूल जाने वाले लोगों में वह सब से आगे गिनी जा सकती हैं. अपने मातापिता, भाईबहन, कोई न होने पर भी केवल निस्वार्थ प्रेम के बल पर उन्होंने सैकड़ों ‘अपने’ जोड़े हैं.
‘लेकिन, तुम्हारे जीजाजी को वह जीत नहीं पाई हैं,’ मुकुंद मेरे पति ने 2-3 बार टिप्पणी की थी.
‘जीजाजी कितना प्यार करते हैं जीजी से,’ मैं ने विरोध करते हुए कहा था, ‘घर उन के नाम पर, गाड़ी उन के लिए, साड़ियां, गहने… सबकुछ…’
मुकुंद ने हर बार मेरी तरफ ऐसे देखा था जैसे कह रहे हों, ‘बच्ची हो, तुम क्या समझोगी.’
हैदराबाद आने के बाद मेरा जीजाजी के घर आनाजाना शुरू हुआ. घरों में फासला था, पर मैं या जीजी समय निकाल कर सप्ताह में एक बार तो मिल ही लेतीं.
अब तक मैं ने जीजी को मायके में ही देखा था. अब ससुराल में जिम्मदारियों के बोझ से दबी, लोगों की अकारण उठती उंगलियों से अपने भावनाशील मन को बचाने की कोशिश करती जीजी मुझे दिखाई दीं, कुछ असुरक्षित सी, कुछ घबराई सी. और मैं केवल उन्हें देख ही सकती थी.
जीजी की बेटी शिवानी कंप्यूटर इंजीनियर थी. वह मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद अब एक प्रतिष्ठित फर्म में अच्छे पद पर काम कर रही थी. जीजाजी उस के लिए योग्य वर की तलाश में थे. मैं ने कुछ अच्छे रिश्ते सुझाए भी, पर जीजाजी ने मुंह बनाते हुए कहा था, ‘क्या तुम भी रश्मि, शिवानी की योग्यता का कोई लड़का बताओ तो जानें…’
‘लेकिन जीजाजी, उमेश बहुत अच्छा लड़का है. होशियार, सुदर्शन, स्वस्थ, अच्छा कमाता है. कोई बुरी आदत नहीं है.’
‘पर, उस पर अपनी 2 छोटी बहनों के विवाह की जिम्मेदारी है. और उस का अपना कोई मकान भी नहीं…’ जीजाजी ने एकएक उंगली मोड़ कर गिनाना चाहा.
‘यह तो दोनों मिल कर आराम से कर सकते हैं. शिवानी भी तो कमाती है,’ मैं ने उन की बातों को काटते हुए कहा.