“आप सभी का इस पावन भूमि पर स्वागत है. आप अपने प्यारेप्यारे भगवान के दर्शन करें, उस के पहले कुछ बातों का ध्यान रखना होगा. जो पुराने भक्त हैं उन्हें सब मालूम है. जो नए हैं, उन्हें समझना होगा. आप में से जो पहली बार आए हैं, वे अपनेअपने हाथ उठा दें.”
आधे से अधिक लोगों ने हाथ खड़े कर दिए. उस ने भी हाथ खड़ा कर दिया. उस ने पत्नी को देखा. वह भी हाथ खड़ा कर चुकी थी.
“ठीक है, आधे से अधिक पहली बार आए हैं. आप समझ लीजिए कि आप सही स्थान पर आ चुके हैं. आप की हर प्रार्थना का उत्तर यहां मिलेगा. यहां इस पवित्रस्थल पर आप के सारे दुखपीड़ाएं समाप्त होने को हैं. आप जिस भी माध्यम से यहां आए हैं, जिस ने भी इस चमत्कारिक भूमि का पता आप को बताया है, मन ही मन उन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कीजिए,” सेविका ने मुसकराते हुए कहा.
उस ने आंखे बंद कर, मन ही मन अपने मित्र शंकरलाल के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की.
“कुछ समय बाद दूसरे सभागार में, जिसे दर्शन मंडप कहा जाता है, वहां आप को अनंत ब्रह्मांड स्वामी, कलयुग में अवतार लिए, सभी के दुख हरने वाले, करूणा के सागर, भगवान श्रीअनंत देव के दर्शन होंगे. सर्वप्रथम उन की आरती होगी. उस समय आप खड़े हो कर करतल ध्वनि कर सकते हैं.
“आरती की समाप्ति के पश्चात आप सभी को जब बैठने का कहा जाए, तब आप अपने स्थान पर बैठ जाएंगे. उन के दर्शन होना ही दुखों का अंत है. जब वे आशीर्वाद मुद्रा में हों, तब आप अपने सारे दुख, अपनी सारी प्रार्थनाएं उन्हें कहें. उन से आशीर्वाद लें. आशीर्वाद लेते समय आप के हाथ भिक्षामुद्रा में होना चाहिए. दर्शन का समय होने पर वहां पहुंचने का निर्देश दिया जाएगा. तब तक आप यहां प्रार्थना में रहें. शांत भाव से उन प्रार्थनाओं को भीतर ही भीतर करते रहें, जो आज आप उन से कहने वाले हैं,” यह कह कर सेविका ने विदा ली.
वह स्वयं को एकाग्र कर, अपने दुखों को मस्तिष्क पटल पर उतारने लगा. उस के सामने ढेर सारे दुख खड़े होने लगे. मनोकामनाएं अंगड़ाइयां लेने लगीं.
विवाह को 5 साल हो गए. संतान नहीं हुई. गांव में उस के खेत की जमीन बंजर हो चुकी है. दूसरों के खेत पर काम कर जिंदगी चल रही है. 2 बार चूल्हा जल जाता है, वही बहुत है. इस के आगे वह सोच नहीं पाता.
विवाह के बाद बसंती को गांव से शहर भी नहीं ले गया. किसी तरह शहर जाने का जुगाड़ हो भी जाए तो उस से क्या? बसंती को वहां क्या मौज कराएगा? क्या कहूं भगवान से? बसंती को संतान? बंजर जमीन को हरीभरी हो जाने का आशीर्वाद? एक छोटा सा प्यारा सा पक्का मकान? कितनी प्रार्थनाएं हैं. फिर, बसंती भी तो यही सब मांग रही होगी. वह न जाने कितने उपवास करती है. सुबहशाम मंदिर जाती है. सब ठीक हो जाने के लिए प्रार्थना करती रहती है. उस ने गांव के वटवृक्षों पर मन्नतों के अनगिनत धागे बांध रखे हैं कि कभी तो भगवान सुनेंगे.
उस ने अपने आसपास देखा. उसे लगा कि सभी के चेहरे पर सपने तैर रहे हैं, बंद आंखों में प्रार्थनाएं ऊपरनीचे घूम रही हैं. वह फिर से शंकर के प्रति कृतज्ञता से भर उठा.
उस ने प्रार्थनाओं के फलीभूत होने का कितना सहज तरीका बताया है. उस ने कहा था कि यहां बड़ेबड़े लोग आते हैं. यहां डाक्टर, इंजीनियर, वकील, मंत्री, नेता, उद्योगपति, भगवान श्रीअनंत देव से आशीर्वाद लेते हैं. बसंती ने जब यह सब सुना तो उस ने पेटी में छिपाए सारे पैसे यात्रा के लिए निकाल कर दे दिए जो मां बनने के सपने को ले कर उस ने इकट्ठे किए थे. उस ने यह सोच, आश्वस्ति की गहरी सांसें लीं कि घर जा कर तो सपनों को साकार होना ही है. 2 दिन की यात्रा की थकान पर आस्था की शीतल बयार थपकियां देने लगी थीं.
कुछ देर बाद दर्शन मंडप में जाने का निर्देश मिला.
कुछ ही क्षणों में वह और बसंती दर्शन मंडप की ओर जाती सीढ़ियां चढ़ रहे थे. उन्होंने सीढ़ियां चढ़तेचढ़ते नीचे की ओर झांका. कुछ पल के लिए उन के कदम थम गए. मंदिर का परिसर कई एकड़ जमीन में फैला हुआ था. परिसर में अशोक, केला, आम, नीम, गुलमोहर के पेड़ हवा के धीमेधीमे झोंकों से लहरा रहे थे. क्यारियों में सफेद, नीले, लाल,नारंगी पुष्प मुसकरा रहे थे.
वे मुग्धभाव से सीढ़ियां चढ़ते रहे.
दर्शन मंडप का प्रवेशद्वार आ चुका था. महिलाओंपुरूषों की अलगअलग कतार बना दी गई.
अंदर प्रवेश करते ही आश्चर्य से उस की आंखें फैल गईं. वह पिछले सभागार से भी विशाल सभागार में खड़ा था. भगवान श्रीअनंत देव की मुसकराती, आशीर्वाद देती मुद्रा की विशाल तसवीर वहां भी लगी हुई थी.