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सुरुचि कालेज की पढ़ाई और नौकरी साथसाथ करने लगी. उस की कड़ी मेहनत रंग लाई और 3 साल बाद उस ने स्नातक की डिग्री प्राप्त कर ली, वह भी पहेली श्रेणी से. इतना ही नहीं, उस ने अपनी कक्षा में टौप भी किया. वह बहुत खुश थी क्योंकि वह अपने लक्ष्य की ओर एक कदम बढ़ा चुकी थी. अब उस ने ‘बैंकिंग एंड फाइनैंस कोर्से’ में एडमिशन ले लिया. ऋण अधिकारी बनने के लिए यह कोर्स करना जरूरी था. इस कोर्स को करते समय उस ने फिर से वही भेदभाव महसूस किया जो उसे डिपार्टमैंटल स्टोर और कालेज में देखने को मिला था. लेकिन सुरुचि ने अपने जीवन की लड़ाई को जारी रखा.

कोर्स पूरा होने के 3 महीने बाद सुरुचि को दिल्ली के ही एक प्रतिष्ठित बैंक में ऋण अधिकारी की नौकरी मिल गई. दिल्ली आने के 8-10 सालों में उसे बहुत से कटु अनुभव हुए पर उस ने अपना लक्ष्य नहीं छोड़ा.

4-5 साल बाद सुरुचि का लोन मैनेजर के रूप में पहला दिन था. वह बहुत खुश थी क्योंकि उस का सपना पूरा हो गया था. वह आज उस जगह थी जहां का सपना उस ने देखा था. सुबह से 5 लोग लोन की प्रक्रिया में उस से मिल चुके थे. कुछ देर बाद बैंक में एक दंपती दाखिल हुआ. सुरुचि को वह दपती जानापहचाना लगा. लेकिन फिर भी वह उन्हें पहचानने में असफल रही. कुछ देर सोचने के बाद उसे याद आया कि ये तो रेखा और मनोज शर्मा हैं जिन के घर में वह नौकरानी का काम किया करती थी. सुरुचि को एक अधिकारी से पता चला कि वे पिछले 2 हफ्ते से बैंक के चक्कर काट रहे है. वे बैंक से कार लोन लेना चाहते है लेकिन किसी वजह से उन का कार लोन पास न हो सका. ऋण अधिकारी के पद पर बैठी एक महिला को देखते ही वे दोनों उस ओर आए. “मैडम, हम आप के बैंक से कार लोन लेना चाहते हैं. हमारे पास सभी जरूरी कागज हैं. आप इन्हें देख ले और हमारी मदद करें.’’

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