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‘मैं बताती हूं न कि चटनी कैसे बनाते हैं,’ बोलती हुई सुरुचि मुसकराई. इस के बाद सुरुचि वहीं रसोई के गेट से ही चटनी की रैसिपी बताती गई और शांता ताई बनाती गईं.

‘‘वाह, शांता ताई, क्या चटनी बनाई है,” रेखा के पति मनोज ने कहा.

‘‘साहब, इस चटनी की रैसिपी तो सुरुचि ने बताई है.’’

यह सुनते ही सब सुरुचि की ओर देखने लगे.

अगले दिन जब सुरुचि हौल में बैठी पढ़ रही थी तब प्रिया, जोकि रेखा की 8 वर्षीया बेटी थी, आई और बोली, ‘‘दीदी, मुझे गणित का यह सवाल समझ नहीं आ रहा, आप मुझे समझा देंगी?” ‘‘हां प्रिया, क्यों नहीं,’’ कहती हुई सुरुचि ने उस की गणित की किताब अपने हाथों में ली, ‘‘देखो, यह सवाल इस तरह हल होगा,’’ सुरुचि ने प्रिया को समझाते हुए कहा.

‘‘प्रिया, कहां हो तुम,’’ कहती हुई रेखा हौल में दाखिल हुई, ‘‘सुरुचि, क्या तुम्हें अपनी औकात नहीं पता, जो प्रिया के साथ यहां सोफे पर आराम फरमा रही हो?”

‘‘नहीं मैडम, मैं तो प्रिया को गणित का सवाल समझा रही थी,” सुरुचि ने धीमी आवाज में कहा. ‘‘तुम्हें जैसे बहुत गणित आती है और प्रिया, तुम किस गवार से पूछ रही हो. जाओ, जा कर अपने पापा की मदद लो,” यह कहती हुई रेखा ने प्रिया को फटकार लगाई.

प्रिया ने कहा, ‘‘मम्मी, पापा तो काम में बिजी हैं.’’

‘‘चलो, तुम यहां से उठो,’’ यह कहती हुई रेखा प्रिया का हाथ पकड़ कर उसे कमरे में ले गई. सुरुचि अपने समय को दोष दे कर रह गई.

रात को घर के सभी काम खत्म कर के सुरुचि पढऩे बैठ गई.

पढ़तेपढ़ते कब रात के एक बज गए, उसे पता ही नहीं चला. वह किताबें समेट कर स्टोररूम में ले गई और चटाई बिछा कर लेट गई. वही उस का बिस्तर था. दिनभर की थकान के चलते जल्द ही उसे नींद भी आ गई. सुबह 6 बजे सुरुचि उठ गई. वह अपने रोजमर्रा के कामों में लग गई. छत पर कपड़े सुखाते समय सुरुचि की बात पड़ोस में काम करने वाली निधि से हुई. उस ने बताया कि गली के कोने में पडऩे वाले डिपार्टमैंटल स्टोर में हैल्पर की जरूरत है. यह सुनते ही सुरुचि के मन में एक नई उमंग जागी. उस ने सोचा क्यों न वह वहां हैल्पर की नौकरी करे और साथसाथ अपनी पढ़ाई भी करती रहे.

उस ने जब इस बारे में रेखा से बात की तो उस ने गुस्सा करते हुए कहा, “तुम लोग कुछ नहीं कर पाओगे, तुम हमारे नीचे ही रहोगे और हमारे घरों में काम करतेकरते तुम्हारी पूरी जिंदगी निकल जाएगी.”

यह सब सुन कर सुरुचि को बहुत बुरा लगा. उस ने सोचा, ये ऊंची जाति वाले हमें कुछ नहीं समझते, इन्हें अपनी जाति का बहुत घमंड है और मुझे उन के इसी घमंड को तोडऩा है.

सुरुचि डिपार्टमैंटल स्टोर में गई और नौकरी की इच्छा जाहिर की.

डिपार्टमैंटल स्टोर का मालिक जातपांत को नहीं मानता, इसलिए उस ने सुरुचि को नौकरी दे दी. अब वह स्टोर के पास ही किराए का कमरा ले कर रहने लगी. डिपार्टमैंटल स्टोर में उसे ऐसे कई लोग मिले जो उस पर नीची जाति होने का ताना कसते थे. कुछ लोग तो ऐसे भी थे जो उस के हाथ से सामान भी नहीं लेते थे, वे कहते थे कि कैसेकैसे लोगों को लोग नौकरी दे देते हैं, हम इस से सामान नहीं लेंगे.

दुनिया का ऐसा रूप देख कर सुरुचि अपने को कोसती रहती कि उसे ऐसी दुनिया में भेजा ही क्यों गया जहां इंसान को इंसान नहीं समझा जाता. ऐसा भी कई बार हुआ जब उस ने अपनी हिम्मत खो दी लेकिन वह जानती थी कि अगर वह यहां रुक गई तो इस समाज की सोच कभी नहीं बदलेगी और ऐसे ही लोगों के साथ भेदभाव होता चला आएगा. कुछ समय बाद सुरुचि का 10वीं का रिजल्ट आ गया. सुरुचि अच्छे नंबरों से पास हुई. होशियार बच्चों के भविष्य के लिए काम करने वाली एक सरकारी संस्था ‘ज्योति’ ने उस से संपर्क किया और उस की पढ़ाई का खर्चा उठाने की बात कही. अब सुरुचि को अपना समय बदलने का सुनहरा अवसर मिल गया. यही सब सोच कर सुरुचि ने अपनी नौकरी को जारी रखा और देखते ही देखते उस ने 12वीं की पढ़ाई भी पूरी कर ली.

सुरुचि अब 12वीं की पढ़ाई पूरी चुकी थी और वह ‘ज्योति’ से जुडी थी, इसलिए उस के पास नौकरी के कई और विकल्प थे. उन्हीं में से एक विकल्प सेल्सगर्ल को उस ने चुना.

इस के बाद उस ने दिल्ली विश्वविद्यालय के ओपन लर्निंग स्कूल से बीए में एडमिशन लिया. अब वह नौकरी और कालेज की पढ़ाई साथसाथ करने लगी. सुरुचि जब कभी भी कालेज जाती वहां स्थित उच्च जाति का एक समूह उस पर हमेशा तंज कसता.

जब सुरुचि कैंटीन में खाना लेने जाती तो लड़कियों का एक समूह उसे ताना कसते हुए कहता, ‘‘इसे चटनीरोटी दो, यह और क्या खाएगी. ये लोग यही तो खाते है.’’ सुरुचि ने उन सब की बातों को अनसुना किया और अपना खाना और्डर किया. खाने के बाद सुरुचि वहां से चली गई. यह उस का साहस और अपने लक्ष्य की ओर बढऩे की दृढ़ इच्छा थी जो उसे रुकने नहीं दे रही थी.

रिद्धिमा, जोकि सुरुचि के साथ कालेज में पढ़ती थी, ने एक दिन सुरुचि से पूछा, ‘‘सुरुचि, तुम कालेज के बाद क्या करोगी?’’

“मैं कालेज के बाद बैंक में नौकरी करना चाहूंगी,” सुरुचि ने जवाब दिया.

“अच्छा, उस के लिए तो तुम्हें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी,” रिद्धिमा ने अपनी राय दी.

‘‘हां, अब यही मेरे जीवन का लक्ष्य है,’’ सुरुचि ने कहा.

लेखिका – प्रियंका यादव

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