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प्रशांत की मां के दकियानूसी विचारों से शची सहम जाती. यदि इस फिल्म इंडस्ट्री में उस के आचरण या चरित्र की ओर कोई उंगली उठाए तो आपत्ति दर्ज की जा सकती है पर पटकथा की मांग पर किए गए दृश्यों पर इतना एतराज क्यों? काजल की इस कोठरी में बेदाग रह जाना ही उस के पक्ष में कितना बड़ा चरित्र प्रमाणपत्र है. लेकिन कौन समाझाए उन्हें.

समय तेजी से गुजरता जा रहा था. शची की नृत्यप्रवीणता काम आई. हर फिल्म में उस का नृत्य फिल्म की सफलता का पर्याय बन गया. उस ने अभिनय की नईनई मंजिलें तय कीं. अपना सौंदर्य अत्यंत घातक बना कर प्रस्तुत करना वह सीख गई. आंखों का मासूम नौसिखियापन अब दिलकश मादकता में बदल गया. उस की मनमोहिनी मुसकान में लाखों लोगों को वश में करने का जादू आ गया. पहले से ही बला की खूबसूरती, उस पर आत्मविश्वास का तेज चढ़ गया. शची फिल्मी आकाश का सब से चमकता हुआ सितारा बन गई.

कैमरे की चकाचौंध बढ़ती गई. इस रोशनी और कोलाहलभरे वातावरण में प्रशांत का हाथ कब छूट गया, पता ही न चला. छिटपुट फिल्में प्रशांत की भी आती रहीं. थोड़ाबहुत व्यवसाय करती रहीं परंतु उल्लेखनीय कुछ भी नहीं.

प्रशांत उस की हर सफलता का जश्न मनाता. उस दिन भी शची की ‘प्यार बिना चैन कहां...’ हिट होने की खुशी में प्रशांत ने उसे अपने घर में दावत दी थी.

मनभावन एकांत में शची और प्रशांत मानो एकदूसरे में खो गए थे. इस संवादहीन स्थिति में भी एक आनंद था. तभी प्रशांत की मम्मी ने उन्हें अंदर बुलाया.

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