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उस ने शची को पहली ही मुलाकात में साफसाफ बताया कि जन्म से अमेरिका में ही रहने के कारण वह हिंदी का एक शब्द भी नहीं जानता, परंतु भारतीय संस्कृति का वह सम्मान करता है. शची की उस ने एक भी फिल्म नहीं देखी, परंतु हिंदी फिल्म जगत में वह उस के विशिष्ट स्थान के बारे में जानता है और चाहता है परिश्रम से मिली यह सफलता वह गंवाए नहीं. भारत, अमेरिका की दूरी कम से कम रुपयों के संदर्भ में विशेष अर्थ नहीं रखती. यदि दोनों का विवाह हुआ तो वे दोनों अपनेअपने व्यवसाय के साथ ईमानदारी बरतते हुए भी हमसफर बने रह सकते हैं.

शची को भला और क्या चाहिए था. रीतिरिवाजों से विवाह हुआ. यह धमाकेदार खबर सभी अखबारों में प्रमुखता से छाई. सभी प्रमुख टीवी चैनलों में उस का इंटरव्यू लेने की होड़ सी लग गई.

उज्ज्वल चेहरे पर बारबार काली घटा सी मचलने वाली जुल्फों को बहुत ही अदा से संवारते हुए अपनी मोहक मुसकान के साथ वह खनकदार आवाज में इठला कर कह उठती, ‘जी हां, मैं बहुत खुश हूं. मुझे वैसा ही जीवनसाथी मिला है जिस की मैं ने कल्पना की थी.’

कभीकभी कोई पत्रकार प्रशांत के बारे में पूछने की कोशिश करता तो शची विनम्रता से इनकार कर देती, ‘नो पर्सनल क्वेश्चन, प्लीज.’

शची का एक पैर भारत में तो दूसरा अमेरिका में होता. दुनिया उस के कदमों तले बिछी हुई थी. हवाई जहाज से सफर के दौरान समुद्र की अलग गहराइयां और आकाश की अंतहीन सीमा उसे निरंतर अपना काम करने हेतु उकसाती रहती. वह व्यस्त होती गई. इन व्यस्तताओं के बीच प्रशांत के बारे में पता लगाने की न फुरसत मिली, न छुट्टी.

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