प्रणब चंद्र बोस कोलकता में एक कैमिकल कंपनी के सीईओ थे. उन की उम्र तकरीबन 48 साल रही होगी. प्रणब के मातापिता एक मध्यम वर्ग के लोग थे और राजगीर नगर महल्ले में रहते थे. पिताजी, जिन्हें वह “बाबूजी” कह कर पुकारता था, एक सरकारी दफ्तर में काम करते थे और मां घर के पास के एक प्राइमेरी स्कूल में दूसरी जमात के बच्चों को पढ़ाती थीं.
प्रणब उन की अकेली संतान थी और अपने मातापिता के साथ और पड़ोसियों व दोस्तों के बीच एक संस्कारी और शांतिभरे माहौल में फलफूल कर बड़ा हुआ था.
प्रणब बचपन से ही मेधावी था. उस ने 12वीं जमात की परीक्षा बड़े ही अच्छे अंकों से पास की और प्रदेश में उस का तीसरा रैंक था, इसलिए कोलकाता यूनिवर्सिटी में दाखिले में कोई दिक्कत न हुई. उसे स्कौलरशिप के साथ एडिमशन मिल गया. वहां से कैमिस्ट्री के विषय में स्नातक बना.
प्रणब और उस के मातापिता की बड़ी इच्छा थी कि वह आगे की पढ़ाई विदेश में जा कर करे और बड़ा नाम कमाए. चाहे उस को बड़ी उम्र में, अपने एकलौते बेटे से दूर रह कर अकेले ही क्यों न रहना पड़े. उस के एक चहेते प्रोफैसर डाक्टर घोष, जो खुद भी विदेश से लौट कर आए थे, ने बाबूजी से यह आग्रह किया कि वे उसे आगे की पढ़ाई अमेरिका में करवाएं, जिस से उस की प्रतिभा और कड़ी मेहनत और कुछ कर पाने की इच्छा विकसित हो सके.
प्रणब के मातापिता और प्रोफैसर को पूरा विश्वास था कि प्रणब अपनी पढ़ाई कर के भारत लौटेगा, जैसे कि प्रोफैसर ने खुद ही किया था.
अमेरिका में प्रणब ने अपने प्रोफैसर की अनुशंसा पर शिकागो विश्वविद्यालय में एडिमशन ले लिया. उस ने 5 सालों में ही कैमिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी के साथ एमबीए भी कर लिया. साथ ही साथ उस को स्कौलरशिप भी मिलती थी. इस के अलावा वह शाम को हफ्ते में 3 बार पढ़ा कर थोड़े से पैसे बना लेता था.
प्रणब को अपने मातापिता की बहुत याद आती थी, इसलिए अपने पैसे बचा कर वह साल में एक बार 2-3 हफ्ते के लिए भारत जरूर आता. अपने मातापिता के साथ वह 1 या 2 तीर्थस्थानों और देखने वाली जगहों पर जा कर वापस चला जाता था. उस को तो मातापिता के साथ बिताए समय में बड़ा ही मजा आता था. वह फिर भारत लौट कर आने की प्रतीक्षा करता था.
5 साल बाद जब प्रणब घर आया, तो उस को बंगाल एग्रोकैमिकल्स कंपनी में एक अच्छी नौकरी मिल गई. अपनी काबिलीयत और कड़ी मेहनत से उस ने काफी तरक्की की. इस बीच उस की शादी सुलेखा से हो गई. जल्दी ही वह एक बेटी का बाप बन गया. अपने परिवार के साथ वह एक बड़े से घर में रहने लगा. वहां मातापिता के आराम की सारी सुविधाएं थीं.
प्रणब की तरक्की में तब चारचांद लगे, जब 46 साल की उम्र में वह कंपनी का सीईओ चुना गया.
अब तक बाबूजी रिटायर हो चुके थे. बुढ़ापे की वजह से उन की सेहत थोड़ी ढीली चल रही थी. अब वे पहले की तरह चल नहीं पाते थे. इस बीच कोलकाता में हैजा फैल गया और अचानक ही उस की मां का देहांत हो गया. यह इतना अचानक हुआ कि एक दिन उस ने डाक्टर को बुलाया और उस ने दवा दी और दूसरे दिन ही उन्होंने प्राण त्याग दिए.
यह सदमा बाबूजी सह न सके. अपने 51 साल के साथी को खो देने का गम वे सह नहीं पाए और उन्हें लकवा मार गया. उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया.
मां के जाने का गम प्रणब को भी था, तभी ऐसी दर्दनाक और अप्रत्याशित घटना घटी कि बाबूजी के स्ट्रोक ने तो उसे जैसे मूर्छित ही कर दिया. वह अपना दिमागी संतुलन खो बैठा. अपनी पत्नी और डाक्टरों की सलाह से यह निश्चय किया कि उसे आराम की सख्त जरूरत है. उस ने महीनेभर के लिए आराम करने का निश्चय किया.
कंपनी के बोर्ड ने मामले की गंभीरता को समझा और उसे आराम करने की अनुमति दे दी. प्रणब की जगह सुदर्शन शर्मा को अंतरिम सीईअच बना दिया.
प्रणब जब अपने परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों की सहायता से संभला, तो उस ने निश्चय किया कि वह अब बाबूजी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएगा. उन की सेवा के लिए उस ने 2 नौकरों को रखा. एक 45 साल के शेरू को, जो रातभर बाबूजी के साथ रहता था. दिन में सेवा के लिए एक महिला नर्स रखी.
थोड़े दिनों के अनुभव के बाद पता चला कि वे दोनों अच्छी तरह से बाबूजी की सेवा किया करते थे. वह कुछ आश्वस्त हुआ कि उस ने अच्छा फैसला लिया था और बाबूजी भी खुश लगते थे.
अब प्रणब जैसे ही घर आता, सब से पहले बाबूजी को नमस्कार करता, गले लगाता और उन के साथ तकरीबन घंटेभर बैठ कर उन की सेवा करता, बातें करता और पैर दबा कर उन्हें आराम कराता. बाबूजी को बहुत ही अच्छा लगता और वे आशीर्वाद और दुआओं से उस की शाम सुहानी बना देते.
प्रणब को शाम की इन क्रियाओं से जो सुकून, शांति और खुशी मिलती, उस की व्याख्या करना तो असंभव है. वैसे भी प्रणब इन चीजों को महत्व नहीं देता कि और लोग उस की तारीफ कर रहे हैं या निंदा. वह तो अपने मन की शांति के लिए ये सब कर रहा था.
अब बाबूजी की सेवा करना तो एक दिनचर्या बन गई थी, जिस को एक दिन भी चूकना प्रणब के लिए असहनीय बन गया था.
एक दिन प्रणब ने साफ तौर पर देखा कि जब वह बाबूजी के पास पहुंचता था और गले लगाता था, तो बाबूजी बड़े ही भावुक हो जाते और उन की आंखों से आंसू निकल आते थे. कभीकभी तो ये आंसू झरझर कर बहने लगते. स्वाभाविक है कि प्रणब की आंखें भी भर आतीं और वह बड़े प्यार से उन्हें आश्वासन देता कि सब ठीक हो जाएगा.
एक दिन दोपहर को आधा दिन काम करने के बाद जब प्रणब घर पहुंचा और सीधा बाबूजी के कमरे में गया, तो उस ने देखा कि बाबूजी की आंखों से अब भी आंसू बह रहे थे. उस ने उन की नर्स से बात की, तो पता लगा कि यह तो रोज की बात है. चिंता करने की जरूरत नहीं है. ये आंसू तकलीफ के आंसू हैं, जो उन को दवाई मिलने से पहले वे कष्ट में रहते हैं, उन को जोड़ों और सिर में दर्द होता है, लेकिन दवाई मिलने के बाद ये दर्द कम हो जाते हैं और उन्हें आराम मिल जाता है. और वे सो जाते हैं. प्रणब ने डाक्टर से भी पूछा, तो वे भी नर्स के विचार से पूरी तरह सहमत थे.
प्रणब और उस के परिवार का जीवन ढर्रे पर चल रहा था. प्रणब चैन की नींद सोता था. वह अपने पिता और परिवार के भविष्य के बारे में थोड़ाबहुत चिंतित तो रहता ही था, जो कि स्वाभाविक था.
एक रात की बात है. प्रणब बिस्तर में लेटा हुआ था, तभी उसे अचानक एक विचार आया. उस ने सोचा कि वह जब भी बाबूजी से मिलेगा, तो उन के आंसुओं को एकत्रित करेगा. उस ने बाजार से कुछ टैस्ट ट्यूब खरीदे. शाम को जब वह बाबूजी से मिलने गया, तो बाबूजी उसे देख कर हमेशा की तरह मुसकरा दिए. प्रणब उन के गले लगा और बातचीत कर रहे थे कि उन की आंखें भीग गईं और उन से आंसू निकलने लगे.
प्रणब ने तभी इन टैस्ट ट्यूब में आंसुओं को एकत्रित कर लिया. उस ने बाबूजी से पूछा कि उन को आंसू क्यों आ गए? क्या वे दर्द में हैं?
बाबूजी ने बहुत कोशिश के बाद धीमी आवाज में बोल और इशारों से प्रगट किया कि वे इतने प्रफुल्लित हो जाते हैं कि उन की आंखों से स्वाभाविक ही आंसू निकल आते हैं और वो उन्हें रोक नहीं सकते.
प्रणब ने डाक्टर से पूछा, तो उन्होंने बताया कि शायद ये आंसू आभार, कृतज्ञता, आशीर्वाद और खुशी के हैं. डाक्टर ने यह भी कहा कि मुझे पूरा यकीन है कि इन आंसुओं के बहाने के बाद बाबूजी बहुत खुश नजर आते होंगे और वे सुखदायक विचार प्रगट करते होंगे. प्रणब ने पूरी तरह से इस का समर्थन किया.
प्रणब अब हमेशा बाबूजी के आंसू टैस्ट ट्यूब में एकत्रित करता. इस के अलावा उस ने देखा कि शनिवार और रविवार को जब वह उन से मिलता है और बाबूजी जब दर्द में होते हैं, तो उन के आंसू निकल आते हैं.
उस ने एक और टैस्ट ट्यूब में उन को भी एकत्रित करना शुरू कर दिया. नर्स को भी उस ने दिखाया कि वह कैसे बाबूजी को बिना किसी कष्ट दिए उन के आंसुओं को एकत्र करे.
कुछ समय बाद प्रणब के पास 2 तरह के आंसुओं से भरे कई टैस्ट ट्यूब एकत्रित हो गए. वह आंसू के टैस्ट ट्यूब को संभाल कर अपने शयनकक्ष में कबर्ड में रखता. पहले तो इस का पता प्रणब की पत्नी सुलेखा को भी नहीं था, लेकिन थोड़े दिनों के बाद जब भेद खुला, तो उस ने सच बता दिया. इसे सुन कर तो वह भी बड़ी खुश हुई और बिना एक शब्द बोले उस ने अपनी भावनाएं बता दीं, और उसे गले से लगा लिया.
प्रणब जब से शिकागो यूनिवर्सिटी से भारत आया था, तभी से वह अपने पुराने प्रोफैसरों के संपर्क में था. कभी पत्रों से, तो कभी फोन या ईमेल से. उन के प्रोफैसर के भारत आने पर वह उन से अपने बिजनैस के बारे में भी सलाह और सुझाव लेता था. सारे प्रोफैसरों में डाक्टर श्रीनिवासन उस के सब से अधिक पसंदीदा प्रोफैसर थे. वह उन से भी सलाह लिया करता था. वे बड़े ही मेधावी और विश्वविख्यात वैज्ञानिक थे, लेकिन उन में घमंड और अहंकार बिलकुल नहीं थे, उन के इन गुणों के कारण ही वह बहुत प्रभावित था. आखिर वह भी तो ऐसा ही था.
एक दिन प्रणब जब औफिस में बैठा अपने पत्रों को पढ़ रहा था, तभी उस की नजर एक पत्र पर पड़ी, जो शिकागो यूनिवर्सिटी से कैमिकल इंजीनियरिंग विभाग से आया था.
प्रणब ने जब उस पत्र को खोला तो पता लगा कि उस पत्र में उसे शिकागो यूनिवर्सिटी द्वारा अरैंज किए हुए एक इंटरनैशनल कैमिकल कौंफै्रंस में उसे एक पेपर देने के लिए आमंत्रित किया गया है. उस पेपर का विषय होगा, “भारत में 1947 से वर्तमान तक, कैमिकल इंजीनियरिंग के विकास और भविष्य में भारत का सहयोग”.
यह निमंत्रण प्रणब के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण था. उसे देख कर प्रणब को बड़ी प्रसन्नता हुई, यह कौंफ्रैंस, जिस को प्रोफैसर श्रीनिवासन के द्वारा विस्थापित किया गया था, लगभग 6 महीने बाद जुलाई की 14-19 तारीख तक था.
प्रणब की इस कौंफ्रैंस में जाने की बहुत इच्छा थी. केवल इसलिए नहीं कि इस से उस की इज्जत बढ़ेगी, बल्कि तकनीकी विकास होगा, शोहरत बढ़ेगी, लेकिन इस से भारत का नाम भी होगा और साथ में उस की कंपनी का भी नाम होगा.
लेकिन कुछ सोचने के बाद उसे थोड़ी चिंता हुई कि वह बाबूजी को 10 दिन छोड़ कर कैसे जा पाएगा. उन की देखभाल कौन करेगा, उस की दिनचर्या में “बसी” हुई बाबूजी की सेवा, उन से बात करना, टैस्ट ट्यूब में आंसू एकत्रित करना कौन करेगा ?
प्रणब ने जब अपने मन का दुख अपनी पत्नी सुलेखा को बताया, तो उस ने कुछ सोचने के बाद कहा कि अगर वे इजाजत दें, तो उन की गैरमौजूदगी में बाबूजी की सेवा करेगी. उन की खुशी और दुख के आंसू एकत्र करेगी.
प्रणब ने जब यह सुना, तो उसे बड़ी प्रसन्नता हुई, लेकिन वह तो सोचता था कि वह इस कौंफ्रैंस में अपनी पत्नी को भी साथ ले जाएगा. उस का न जाना तो उस की पत्नी के साथ अन्याय होगा.
सुलेखा समझ गई थी कि प्रणब अभी भी कुछ चिंतित हैं. सुलेखा ने आश्वासन दिया कि वह अगर उस के साथ जाने के बारे में चिंतित है, तो उसे चिंता की कोई जरूरत नहीं है. सुलेखा ऐसा इसलिए कर रही है, क्योंकि बाबूजी की सेवा करना उस का भी धर्म है. उसे ऐसा कर के बड़ी खुशी होगी. वह जैसे अपने पिता की मौत से पहले उन की सेवा कर चुकी है, उसे आप के पिता की सेवा करने का मौका दीजिए, क्योंकि इस से उसे बड़ा ही संतोष मिलेगा और जहां तक विदेश घूमने जाने का सवाल है, तो वह कभी आगे भी पूरा हो जाएगा. वैसे भी कौंफ्रैंस में प्रणब इतना बिजी होगा कि कुछ और करने का समय भी तो नहीं मिलेगा.
प्रणब को सुलेख की बातों में सचाई की सुखद महक आई. थोड़ा सोचने के बाद प्रणब ने सुलेखा का आभार जताया और उस की बात मानने का निश्चय किया. उस ने अपने सीनियर कर्मचारियों और सुदर्शन को बताया कि वह जून में 10 दिन के लिए शिकागो जाएगा.
शिकागो जाने से पहले ही उस ने अपने पेपर लिखने की जोरशोर से तैयारी शुरू कर दी, क्योंकि वहां जाने में केवल 3 महीने ही बचे थे.
आखिर वह दिन आ ही गया. प्रणब शिकागो पहुंच गया. शिकागो जाने से पहले उस ने सारी तैयारी कर दी थी. उस ने बाबूजी को बता दिया था कि वह जून में 10 दिन के लिए विदेश जा रहा है और उन दिनों सुलेखा ही बाबूजी की सेवा करेगी और उन के आंसू भी टैस्ट ट्यूब में जमा करेगी. वह हर रोज बाबूजी से जूम पर बात करेगा.
बाबूजी ने उसे खुशीखुशी अनुमति दे दी. इस मौके पर भी वह इन आंसुओं को एकत्र करना न भूला.
जब प्रणब अपने बैग तैयार कर रहा था, तो उस ने एक बैग में बाबूजी के आंसुओं के 2 टैस्ट ट्यूब (एक खुशी के आंसू और एक दर्द के) रखना नहीं भूला.
शिकागो पहुंच कर वह प्रोफैसर श्रीनिवासन से मिला और पुरानी यादों, उस के पेपर और कौंफ्रैंस के बारे में और परिवार के बारे में बात करतेकरते कितने घंटे बीत गए, लेकिन किसी को खबर ही नहीं लगी.
प्रणब ने प्रोफैसर श्रीनिवासन को अपना पेपर पढ़ने को दिया. पढ़ने के बाद प्रोफैसर श्रीनिवासन ने उसे शाबाशी दी और कहा कि उन्हें पूरा विश्वास था कि प्रणब बड़ा ही उच्च स्तर का पेपर लिखेगा. प्रणब ने उन्हें निराश नहीं किया. उन्होंने कहा कि इस में कोई संदेह नहीं कि उस के पेपर की बड़ी प्रशंसा होगी और कौंफैं्रस में उस का और भारत का नाम होगा. और वैसा ही हुआ भी.
उस के प्रिजेंटेशन के बाद लोगों ने बड़ी तालियां बजाईं, जो एक मिनट तक रुकी ही नहीं. उस के बाद भी कई लोगों ने अलग से बड़ी आत्मीयता से उस से हाथ मिलाए और तारीफ के पुल बांध दिए.
प्रणब ने अपने परिवार, खासकर बाबूजी को जूम पर बताया, तो वे भी आनंदित हुए और उन के खुशी के आंसू थमते ही नहीं थे.
पेपर प्रस्तुत करने के एक दिन बाद प्रणब ने प्रोफैसर श्रीनिवासन और उन की पत्नी को अपने होटल में डिनर के लिए दावत दी. पतिपत्नी थोड़ा जल्दी पहुंच गए. प्रणब ने उन्हें अपने कमरे में बुलाया और थोड़ी देर इधरउधर की बातों में लग गए.
प्रोफैसर श्रीनिवासन ने नोटिस किया कि प्रणब की टेबल पर 2 टैस्ट ट्यूब पड़ी थीं. वे थोड़ा हैरानी में पड़ गए, लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं. थोड़ी देर बातचीत के बाद वे तीनों डिनर के लिए रैस्टोरेंट में पहुंचे और एक बहुत ही स्वादिष्ठ, पौष्टिक और संतुष्टि देने वाले खाने का लुत्फ उठाया. खाना मिलाजुला था, भारतीय और अमेरिकी शैली का और उस में दोनों पाकशैलियों के लक्षणों के स्वाद थे.
थोड़ी देर आराम करने के बाद सब लोग अपने घर चले गए. कार में चलते समय और सोने तक प्रोफैसर श्रीनिवासन सोचते रहे कि उन ट्यूबों में क्या था, जिसे प्रणब अपने कमरे में संभाल कर रखे हुए था. लेकिन कुछ समझ में नहीं आया. उन्होंने निश्चय किया कि कल जब प्रणब उन से मिलने आएगा, तो वे उस से जरूर पूछेंगे.
दूसरे दिन जब प्रणब उन से मिलने गया, तो उन्होंने कहा कि प्रणब, अगर मैं तुम से एक बड़ी निजी बात पूछूं, तो कोई एतराज तो न होगा? अगर थोड़ी भी हिचकिचाहट हां, तो माफ करना. हम यह बात यहीं पर समाप्त कर देंगे.
प्रणब ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे बेफिक्र हो कर जवाब देगा. आखिर आप मुझ से बड़े हैं. मुझे पूरा विश्वास है कि आप के सवाल बड़े ही अच्छे ही होंगे.
प्रोफैसर श्रीनिवासन को यह सुन कर बड़ी खुशी हुई और उन्होंने उस से वहां टेबल पर रखे 2 टैस्ट ट्यूब के बारे में पूछा.
प्रणब ने कहा कि यह तो बड़े संयोग की बात है और उसे खुशी है कि उन्होंने इस बारे में पूछा, क्योंकि वह इस के बारे में उन से बात करना चाहता था, लेकिन मौका न मिला था और न हिम्मत.
प्रणब ने सारी बात उन्हें कह सुनाई कि कैसे उसे यह विचार आया और कैसे वह बड़े दिनों से इन आंसुओं को एकत्र कर रहा है. उस की वजह इन टैस्ट ट्यूबों को यहां लाने की यह थी कि वह उन से इस बारे में बात कर के पूछना चाहता था कि इन आंसुओं की जांच करवाने में वे इस की मदद कैसे कर सकते हैं?
प्रोफैसर श्रीनिवासन ने जब यह सब सुना, तो वे प्रणब से बहुत प्रभावित हुए कि वह अपने पिता को कितना प्यार करता है. उन्होंने आंसू एकत्र करने वाली ऐसी भक्ति के बारे में कभी नहीं सुना था और उन की आंखें नाम हो गईं. जब वे संभले तो उन्होंने प्रणब से कहा कि उस ने एक बहुत ही रोचक बात उठाई है. यह प्रकृति का संयोग है या कोई जादू, यह उन्हें नहीं पता, लेकिन वे एक ऐसे वैज्ञानिक डा. एरिक रामसे को जानते हैं, जो उन के बहुत अच्छे दोस्त है. वे जानेमाने न्यूरोलौजिस्ट हैं. वे आंसुओं के बारे में बहुत माहिर हैं. वे और उन के विद्यार्थी इस विषय पर रिसर्च भी कर रहे हैं.
प्रोफैसर श्रीनिवासन ने कहा कि वे उन के घर के पास ही रहते हैं. आज ही वे उन से बात करेंगे कि अगर वे कल अपना थोड़ा समय दोनों को दे सकें, तो उन के बड़े आभारी होंगे, क्योंकि प्रणब परसों भारत लौट जाने वाला है.
प्रोफैसर श्रीनिवासन ने डाक्टर एरिक रामसे से बात की, तो वे भी प्रणब के आंसू एकत्र करने के बारे में सुनने के बाद बड़े ही प्रभावित हुए. उन्होंने कहा कि वे शाम को उन से अपने औफिस में मिलेंगे और बातचीत करेंगे.
दूसरे दिन प्रणब और प्रोफैसर श्रीनिवासन डाक्टर एरिक रामसे के औफिस पहुंचे. उन्होंने दोनों का स्वागत किया और बातचीत करने लगे. डाक्टर एरिक रामसे ने उन्हें अवगत कराया कि “आँसू” की रिसर्च पुरानी भी है और नई भी, क्योंकि अभी तक जो वैज्ञानिकों को पता है, उस से अधिक उन्हें भी नहीं पता है. यह रिसर्च अभी भी चल रही है और चलती रहेगी.
बातचीत के दौरान डाक्टर एरिक रामसे ने बताया कि समय की कमी के कारण मैं आप को पूरी तरह से तो नहीं बता सकता, केवल संक्षिप्त में बता रहा हूं कि आंसू आप की आंखों के लिए बहुत ही जरूरी हैं, क्योंकि वे आप को लुब्रिकेट करते है और आप के इम्यून सिस्टम यानी निरापद प्रणाली की मदद करते हैं, और इर्रीटेंट्स साफ करते हैं. आंसू में 3 परतें होती हैं. वे जल, नमक, एंटीबौडीज, एंटीबैक्टीरियल एंजाइम और कई कैमिकल्स के बने होते हैं. आंसू आप की आंखों को तरल रखते हैं और यह कई कैमिकल्स जिस में लाइसोजाइम जैसे कैमिकल्स हैं. दूसरे तरह के आँसू वे हैं, जो आंख की दूषित वातावरण के इर्रीटेंट्स जैसे कि प्याज काटने पर उस का रस, गंध, गैसें, ,अत्यधिक रोशनी से, पीपर स्प्रे, मंुह को तीखा यानी उग्र करने वाले पदार्थ, खांसी इत्यादि की वजह से निकलते हैं और आंखों को साफ करते हैं. तीसरी प्रकार के आंसू होते हैं भावनात्मक या संवेदना के या फिर रोने वाले. यह तब निकलते हैं, जब भावनात्मक तनाव बढ़ जाता है, जैसे बहुत प्रसन्नता या खुशी, दिमाग का और शरीर का असहनीय दर्द, क्रोध, पीड़ा, अतिआनंद या हंसी के माहौल में, संवेदना के आंसू. दूसरे 2 तरह के आंसुओं से कैमिकल कंपोजीशन में बहुत ही विभिन्न होते हैं. इन में कई प्रोटीन वाले हार्मोंस होते हैं, जो कई तरीकों के कैमिकल्स हैं, जो दर्द को कम करने, आंख की हिफाजत करने और भावनात्मक शांति में मदद करते हैं और व्यक्ति को आराम देते हैं.
डाक्टर एरिक रामसे ने प्रणब के बाबूजी के आंसू एकत्र करने को एक बड़ी ही हैरानी वाली बात कही कि उन के शारीरिक दर्द के आंसू और खासतौर पर संवेदना के आंसू, जो उस के बाबूजी से प्रेम, श्रद्धा और लगाव का प्रतीक है.
उन्होंने प्रणब को प्रस्ताव दिया कि अगर वह इन टैस्ट ट्यूब में एकत्रित खुशी और दर्द के आंसुओं को उन के पास छोड़ जाए, तो वे उसे रिजर्व करेंगे, रिसर्च करेंगे. उन को विश्वास था कि कुछ न कुछ नई जानकारी उभर कर आएगी, क्योंकि एक तो यह आंसू प्योर हैं, सच्चे है और गहरी भावना के दौरान एकत्र किए गए हैं.
प्रोफैसर श्रीनिवासन और प्रणब बड़े प्रसन्न हुए और दोनों ने डाक्टर एरिक रामसे को अपना आभार जताया और टैस्ट ट्यूब खुशीखुशी उन को दे दिए. डा. एरिक रामसे ने उन्हें 2 पेज की एक लिस्ट भी दी, जिस में आंसुओं के रिसर्च के महत्वपूर्ण पेपर थे, जिस से वे दोनों अपनी जानकारी को बढ़ा सकें.
प्रणब जब भारत पहुंचा, तो बड़ा खुश लग रहा था. वह बहुत हलकापन महसूस कर रहा था मानो उस को कोई बड़ी उपलब्धि मिल गई हो. उस ने यह प्रण लिया कि वह डाक्टर एरिक रामसे और प्रोफैसर श्रीनिवासन के संपर्क में रहेगा और उन से फोन पर बात करता रहेगा.
तकरीबन 3 साल बीत गए, जिस में प्रणब ने प्रोफैसर श्रीनिवासन और डाक्टर एरिक रामसे से कई बार संपर्क किया.
डाक्टर एरिक रामसे ने आंसुओं के और भी सैंपल मंगवाए और रिसर्च के बारे में तीनों बड़ी आत्मीयता से बात करते. डाक्टर एरिक रामसे ने प्रणब को बताया कि रिसर्च अच्छी चल रही है. उन्होंने आगे यह भी बताया कि एक साफ पेपर पर लिख कर यह रिसर्च एक प्रकाशक को भेजी है. इस काम को रोहित कुमार, जो उन का रिसर्च करने वाला छात्र है, प्रणब, प्रोफैसर श्रीनिवासन और डाक्टर एरिक रामसे लेखक हैं. इस पेपर में उन्होंने 3 महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले थे कि बाबूजी के इन भावनात्मक आंसुओं में 1. 2 नए प्रकार के हार्मोंस थे, जिन का आंसुओं के साहित्य में अभी तक विवरण नहीं हुआ था. (हो सकता है कि इसलिए कि वे प्योर यानी शुद्ध थे अर्थात उन में में मिलावट नहीं थी ) 2. इन आंसुओं में कुछ अलग ही एक सूक्ष्म सी सुगंध थी, जिस को पहचानना आसान नहीं था. 3. ये आंसू गालों की त्वचा पर देर तक ठहरते थे यानी जल्दी सूखते नहीं थे. ये नई खोज बहुत ही रोचक और आंसुओं की रिसर्च में उन का बहुत बड़ा योगदान होगा. उन्होंने यह भी कहा कि बाबूजी के दर्द के आंसुओं की रिसर्च अभी भी जारी है.
लेकिन, चाहे कितनी भी वैज्ञानिक रिसर्च हो, कैमिकल अध्ययन या न्यूरोलौजिकल या मैडिकल रिसर्च हो, उन आंसुओं के पीछे छिपी हुई जो भावनाएं हैं, जो अतःकरण के विचार, इनसानियत का मूक प्रदर्शन, अटूट श्रद्धा, अहंकाररहित त्याग, छत्रछाया का भाव और प्यार को अभिव्यक्त करना विज्ञान से परे है और उस के लिए जो जिन चक्षुओं और यंत्रों की जरूरत है, उन की तो अभी तक खोज ही नहीं हुई है. इन आंसुओं को शब्दों में क्या, पुस्तकों में भी नहीं मिलता है. वो तो केवल प्रणब द्वारा ही अपने मन में, जेहन में महसूस किए जा सकते हैं, और बेचारा प्रणब उस को किसी से कह भी नहीं सकता.