कैरियर को बेहतर बनाने में कैसे वक्त निकल गया, नीलिमा को पता ही नहीं चला। वह 35 वर्ष की हो चुकी थी। हालांकि, इस भागमभाग में उस के मन में विवाह करने का कभी खयाल नहीं आया। अभी भी विवाह करने के प्रति बहुत ज्यादा गंभीर नहीं थी। उस का मानना था कि जब किसी से दिल मिलेगा तभी वह शादी करेगी। अरेंज्ड मैरिज के खिलाफ थी वह।
दिसंबर महीने में दशहरा मैदान में पुस्तक मेला लगा, जो 15 दिनों तक चलने वाला था। भोपाल में हर साल पुस्तक मेला लगता है। इस पुस्तक मेले में कवि सम्मेलन, मुशायरा, गायन, नाटक, विचारविमर्श, भाषण व वादविवाद प्रतियोगिता आदि कार्यक्रम रोज आयोजित किए जा रहे थे। इस साल कई कार्यक्रमों में मनीष को शिरकत करनी थी। एक दिन मुशायरा में वह बतौर शायर शामिल था। अपनी बारी आने पर मनीष ने गजल का मतला पढ़ना शुरू किया :
“हर बात पर सवाल करते हैं,
कुछ पूछो तो बवाल करते हैं..."
तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा वातावरण गुंजायमान था। इस शोर में भी मनीष को नीलिमा की आवाज साफसाफ सुनाई दे रही थी। अल्प समय में वह नीलिमा की आवाज को अच्छी तरह से पहचान गया था। काफी तेज आवाज में नीलिमा वाहवाह... कह रही थी।
कार्यक्रम खत्म होने के बाद मनीष घर जाने के लिए अपनी कार का दरवाजा खोल ही रहा था कि तभी नीलिमा आ गई। बोली,“सर, क्या थोड़ी देर रुक सकते हैं?"
“क्यों नहीं”, मनीष बोला।
नीलिमा ने फिर कहा,“सर, पास में ही एक कौफी हाउस है, बहुत अच्छी कौफी मिलती है वहां, क्या आप मेरे साथ 1 कप कौफी पीना पसंद करेंगे?"
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