मां रमा रोतीपीटती ही रह गई थी. पहले मंदबुद्धि बड़े लड़के के बाद 2 लड़कियां, फिर जगत, 5वीं फिर एक लड़की. जगत के जन्म पर तो बड़ा जश्न मना. बड़ी उम्मीद थी उस से. पर जैसेजैसे बड़ा होता गया, कांटे की झाडि़यों सा सब को और दुखी करता गया.’’ अखिलेश अंकल बताए जा रहे थे. अखिलेश अंकल की बातें सुन कर कंचन बोल उठी, ‘‘आज मैं भी जरूर कुछ कहूंगी. अम्मा जब तक जिंदा थीं, आएदिन के अपने झगड़े से उन्हें परेशान कर रखा था उस ने. सब से लड़ताझगड़ता और मां बेचारी झगड़े सुलटाती माफी ही मांगती रहतीं. बाबूजी के दफ्तर में अम्मा को क्लर्क की नौकरी मिल गई थी. कम तनख्वाह से सारे बच्चों की परवरिश के साथ जगत की नितनई फरमाइशें करतीं लेकिन जब पूरी कर पाना संभव न हो पाता तो जगत उन की अचार की बरनी में थूक आता, आटे के कनस्तर में पानी, तो कभी प्रैस किए कपड़े फर्श पर और उन का चश्मा कड़ेदान में पड़े मिलते. ऊंची पढ़ीलिखी नम्रता से धोखे से शादी कर ली, बच्चे पढ़ाई में अच्छे निकल गए. वैसे वह तो सभी को अंगूठाछाप, दोटके का कह कर पंगे लेता रहता. उस के बच्चों पर दया आती,’’ अपनी बात कह कर कंचन ने माइक शील को दे दिया.
‘‘कुछ शब्द ऐसे रिश्तेदार को क्या कहूं. मेरे घर में तो घर, मेरी बहनों की ससुराल में भी पैसे मांगमांग कर डकार गया. कुछ पूछो तो कहता, ‘कैसे भूखेनंगे लोग हैं जराजरा से पैसों के लिए मरे जा रहे हैं. भिखारी कहीं के. चोरी का धंधा करते हो, सब को सीबीआई, क्राइम ब्रांच में पकड़वा दूंगा. बचोगे नहीं,’ उसी के अंदाज में कहने की कोशिश करते हुए शील ने कहा. उस के बाद कई लोगों ने मन का गुस्सा निकाला. सीधेसादे सुधीर साहब बोल उठे, ‘‘मुझ से पहले मेरा न्यूजपेपर उठा ले जाता. उस दिन पकड़ लिया, ‘क्या ताकझांक करता रहता है घर में?’ तो कहने लगा, ‘अपनी बीवी का थोबड़ा तुझ से तो देखा जाता नहीं, मैं क्या देखूंगा.’ ‘‘मैं पेपर उस के हाथों से छीनते हुए बोला, ‘अपना पेपर खरीद कर पढ़ा कर.’ तो कहता ‘मेरे पेपर में कोई दूसरी खबर छपेगी?’ मैं उसे देखता रह जाता.’’ कह कर वे हंस पड़े. अपनी भड़ास निकाल कर उन का दर्द कुछ कम हो चला था. ‘‘अजीब झक्की था जगत. मेरी बेटी की शादी में आया तो सड़क से भिखारियों की टोली को भी साथ ले आया. बरात आने को थी, प्लेटें सजासजा कर भिखारियों को देने लगा. मना किया तो हम पर ही चिल्लाने लगा, ‘8-10 प्लेटों में क्या भिखारी हो जाओगे.
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