टीम इंडिया को जीत का रास्ता दिखाने वाले यूं तो टीम इंडिया में कई कप्तान हुए हैं. कई लोगों को कपिल देव याद आएंगे तो कुछ लोगों को सौरव गांगुली. जिन्होंने कुछ समय पहले ही क्रिकेट फौलो करना शुरू किया है, उन्हें धोनी और कोहली के नाम याद आएंगे.
लेकिन हम बता रहे हैं उस क्रिकेट कप्तान की कहानी, जो 21 की उम्र में ही टीम इंडिया का कप्तान बन गया. उसी कप्तान को ये श्रेय दिया जाता है, जिसने पहली बार टीम इंडिया को आक्रामक बनकर जीतना सिखाया.
हम बात कर रहे हैं मंसूर अली खान पटौदी की. उन्हें टीम इंडिया में टाइगर के नाम से भी जाना गया. उनसे पहले उनके पिता भी टीम इंडिया के कप्तान रह चुके थे. मंसूर अली का जन्म 5 जनवरी 1941 को भोपाल में नवाब इफ्तिखार अली खान के घर हुआ था.
उन्होंने भारत के लिए 46 टेस्ट खेले. इनमें से 40 में उन्होंने कप्तानी की. 21 साल की उम्र में उन्हें टीम की कमान सौंप दी गई. वह उस समय इतनी कम उम्र में टीम की कमान संभालने वाले पहले खिलाड़ी थे. उनके नाम ये रिकौर्ड 40 साल तक रहा.
अपने टेस्ट करियर में पटौदी ने 2793 रन बनाए. इसमें 6 शतक भी शामिल हैं. उनके नेतृत्व में टीम इंडिया को पहली बार विदेश में जीत मिली. 1968 में न्यूजीलैंड के दौरे पर गई टीम को उन्होंने जीत दिलाई. इसी लिए उनके बारे में कहा जाता था कि उनकी सबसे बड़ी ताकत रणनीति बनाने में थी. उनका सर्वोच्च स्कोर 203 रहा.
भले उनकी कप्तानी में टीम इंडिया ने 40 में से 9 टेस्ट में ही जीत हासिल की, लेकिन ये पटौदी ही थे, जिन्होंने टीम को ये भरोसा दिलाया कि टीम इंडिया दुनिया में किसी भी पिच पर कैसे भी हालात में जीत सकती है.
एक्सीडेंट में गंवाई आंख, लगा सब कुछ खत्म
1961 में ब्रिटेन में एक कार हादसा हुआ. कांच का एक टुकड़ा मंसूर अली की आंख में लगा. इस हादसे में उनकी एक आंख की रोशनी चली गई. सभी को लगा कि उनका क्रिकेट करियर अब खत्म. लेकिन वे दूसरी ही मिट्टी के बने थे. उन्हें किसी भी कीमत पर क्रिकेट खेलना था और वह खेले भी. 1962 में उन्होंने वेस्ट इंडीज टूर के दौरान उन्हें टीम का उपकप्तान चुन लिया गया.
1975 में मंसूर अली ने क्रिकेट से संन्यास ले लिया. उनका निजी जीवन भी काफी सुर्खियों में रहा. 1993 से लेकर 1996 तक वह टीम के रेफरी भी रहे. 2011 में लंग इन्फेक्शन के कारण उनका निधन हो गया.