क्रिकेट भारत का सबसे लोकप्रिय खेल है. हर आयु वर्ग का यह पसंदीदा खेल बन चुका है. पुरुष और महिला क्रिकेट के अतिरिक्त दृष्टिबाधित लोग भी क्रिकेट खेलते हैं. दृष्टिबाधित लोगों को क्रिकेट खेलते देखना अपने आप में रोमांचक अनुभव होता है. बिना देखे ये खिलाड़ी जिस तरह से क्रिकेट खेलते हैं, वो लोगों को हैरान करने पर मजबूर कर देता है.

ब्लाइंड क्रिकेट है तो सामान्य क्रिकेट की तरह लेकिन इसके नियम आम क्रिकेट से अलग और अनोखे होते हैं. जिन्हें सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे.

टीम में तीन तरह के खिलाड़ी

ब्लाइंड क्रिकेट में भी सामान्य टीम की तरह 11 खिलाड़ी होते हैं. हालांकि, ये खिलाड़ी तीन अलग-अलग श्रेणी के होते हैं. इन्हें बी 1, बी 2 और बी 3 में विभाजित किया जाता है. बी 1 वह खिलाड़ी वे होते हैं जिनको लगभग नहीं के बराबर दिखाई देता है. बी 2 खिलाड़ियों को कम दिखाई देता है. बी 3 खिलाड़ी को बी 1 और बी 2 खिलाड़ियों से ज्यादा दिखाई देता है.

तीनों खिलाड़ियों की अलग पहचान

क्रिकेट के नियम के हिसाब से एक टीम में कम से कम चार बी 1 खिलाड़ी होने चाहिए. टीम में तीन बी 2 और ज्यादा से ज्यादा चार बी 3 खिलाड़ी होने चाहिए. अपनी पहचान के लिए यह तीन वर्ग के खिलाड़ी अलग-अलग बैंड पहनते हैं. बी 1 खिलाड़ी दाहिने हाथ में सफेद बैंड पहनते हैं तो वहीं बी 2खिलाड़ी लाल जबकि बी 3नीला बैंड पहनते हैं.

छक्का लगाने पर मिलते हैं 12 रन

ब्लाइंड क्रिकेट में बी 1 बल्लेबाज के द्वारा स्कोर किए गए रन दोगुने हो जाते हैं. अगर बी 1 बल्लेबाज एक रन लेता है तो उसके और टीम के खाते में दो रन जुड़ जाते हैं. दो रन लेने पर चार और तीन रन लेने पर छह रन मिलते हैं. अगर बी 1 बल्लेबाज चौका लगाता है तो उसे आठ रन मिलते हैं, अगर छक्का लगता है तो उसे 12 रन मिलते हैं. लेकिन बी 2 और बी 3 खिलाड़ियों के लिए यह सुविधा लागू नहीं है.

गेंद भी होती है अलग

दृष्टिबाधित खिलाड़ियों के लिए खेल के मैदान बिलकुल साधारण ग्राउंड की तरह होते हैं. पिच की लम्बाई भी 22 गज होती है और अंपायर भी सभी फैसले साधारण क्रिकेट के नियमों की तरह लेता है. लेकिन ब्लाइंड क्रिकेट में उपयोग की जाने वाली गेंद प्लास्टिक की बनी होती है और उसमें स्टील के घुंगरू डाले जाते हैं.

गेंदबाजी के मजेदार नियम

ब्लाइंड क्रिकेट के नियम के अनुसार एक गेंदबाज मैच के सिर्फ 20 प्रतिशत ओवर में गेंदबाजी कर सकता है. यानी अगर टी 20 मैच है तो एक गेंदबाज ज्यादा से ज्यादा चार ओवर गेंदबाजी कर सकता है. नियम के हिसाब से बी 1 खिलाड़ियों को मैच के 40 प्रतिशत ओवर में गेंदबाजी करना जरूरी है. यानी अगर टी 20 मैच है तो चार बी 1 खिलाड़ियों को कुल मिलाकर आठ ओवर गेंदबाजी करना जरूरी है, लेकिन एक खिलाड़ी चार ओवर से ज्यादा गेंदबाजी नहीं कर सकता है.

नो बॉल के हैं ज्यादा खतरे

अंडरआर्म गेंदबाजी नहीं करने पर नो बॉल होगी. आधे पिच से पहले गेंद का बाउंस होना जरूरी है नहीं तो नो बॉल होगी. इसके लिए पिच के बीच में एक हाफ मार्क बना रहता है. गेंदबाज गेंद फेंकने से पहले बल्लेबाज से पूछता है क्या वह तैयार है और बल्लेबाज के हां में जवाब देने पर ही गेंद की जाएगी, वरना नो बॉल होगी.

गेंद करने के बाद गेंदबाज को बल्लेबाज से प्ले यानी खेलो कहना जरूरी है, नहीं तो नो बॉल होगी. अगर प्ले कहने से पहले या प्ले कहने के बाद गेंद फेंकने में देर हुई तो भी नो बॉल होगी. गेंदबाजी के दौरान कोई भी फील्डर बिना मतलब डाइव मारता है या लेट जाता है तो भी नो बॉल होती है.

फील्डिंग के भी नियम अलग

मैदान के अंदर चार बी 1 खिलाड़ियों का फील्डिंग करना जरूरी है. जब कोई बी1 खिलाड़ी फील्ड से बाहर जाता है तो उसकी जगह पर स्थानापन्न के तौर पर बी 1 खिलाड़ी ही मैदान के अंदर आता है. बी 2 खिलाड़ी की जगह पर बी 1 या बी 2 खिलाड़ी ही आते हैं. बी 3 खिलाड़ी की जगह पर बी 1, बी 2 या बी 3 कोई भी खिलाड़ी फील्डिंग कर सकता है.

रनर रखने के नियम

बी 1 खिलाड़ी के बल्लेबाजी करने के दौरान एक रनर रखा जाता है. बी 2 खिलाड़ी भी चाहे तो अपने लिए रनर रख सकता है. रनर और बल्लेबाज के बीच 10 फीट की दूरी होनि चाहिए.

इस तरह के कड़े नियम और दिव्यांगता के बाद भी दृष्टिबाधित क्रिकेटर अपनी मेहनत और लगन से अच्छा प्रदर्शन करके सभी को प्रभावित करते हैं.

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