हम भारतीयों का भी जवाब नहीं. अगर कल के मैच में महेंद्र सिंह धोनी ने भारत को हरवा दिया होता तो यकीनन वे ही इस सदी के सब से बड़े विलेन बनते. इस की एक बड़ी वजह यह है कि उन का पिछला साल कुछ खास नहीं गया था. अब उन्होंने 3 मैचों में लगातार 3 हाफ सैंचुरी लगा तो दी हैं पर उन्होंने अपना मैच फिनिशर का वह अलहदा रंग नहीं दिखाया है जो वे अकसर दिखाते रहे हैं. आज उन की वनडे इंटरनैशनल मैचों में 70वीं हाफ सैंचुरी का जो राग अलापा जा रहा है वह थोड़ा सा बेसुरा है. बेसुरा इसलिए कि इस वनडे सीरीज में उन का नाम आना खुद में चौंकाने वाली बात थी. उन पर वर्ल्ड कप से पहले एक दांव खेला गया था. वे 37 साल के हो चुके हैं और क्रिकेट में इतनी उम्र में खिलाड़ी रिटायरमैंट की दहलीज पर खड़े होते हैं.

लेकिन महेंद्र सिंह धोनी के लिए यह सीरीज डूबते को तिनके का सहारा साबित हुई है. इस सीरीज पर ही बात करें तो भारत और औस्ट्रेलिया के खिलाफ सिडनी में हुए पहले वनडे मैच में भारत को 34 रनों की हार मिली थी. इस की गाज उन्हीं पर गिरी थी. उन्होंने 96 गेंदों में सिर्फ 51 रन बनाए थे. उन्होंने अपने पहले 6 रन 37 गेंदों में बनाए थे. उन की फिफ्टी 93 गेंदों पर बन गई थी. बाद की 3 गेंदों में वे महज एक ही रन बटोर सके थे. इतने समय बाद लगी यह फिफ्टी हार के चलते फीकी पड़ गई थी.

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