तेज सीटी के साथ ट्रेन धीरेधीरे सरकने लगी, तो धीरेधीरे हिलते हाथों ने गति पकड़ ली और फिर पीछे छूटते जा रहे प्लेटफार्म को निहारते हाथ स्वतः ही थम गए. लेकिन यादों का बवंडर था कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. अभी कुछ महीनों पूर्व की ही तो बात है, जब वह दिल में कुछ उत्सुकता, कुछ बेचैनी, कुछ उमंग लिए इसी स्टेशन पर उतरी थी. पहलीपहली नौकरी जैसे ससुराल में पहला पहला कदम रख रही हो. दिल में उठ रहे मिलेजुले भावों ने उसे उलझन में डाल दिया था. वह तो भला हो उस की सहेली निकिता का, जिस ने फोन पर ही उसे सीधे घर आने की हिदायत दे डाली थी.

निकिता श्वेता के कालेज की सहेली थी. किसी कारणवश श्वेता उस की शादी में सम्मिलित नहीं हो पाई थी. अब सब शिकायतें दूर कर दूंगी, सोच कर श्वेता ने कमरा मिलने तक निकिता के यहां रहने का निश्चय किया था.

निकिता उसे देख कर खुशी से लिपट गई थी. उस का उभरता पेट, भराभरा बदन देख कर श्वेता हैरान रह गई थी. "व्हाट ए प्लेंजेंट सरप्राइज... मैं तो तुम्हें एक से दो हुआ देखने आई थी. तुम तो दो से तीन होने जा रही हो."

"अभी एक सरप्राइज तुम्हें और मिलने वाला है. पर पहले तुम फ्रैश हो लो. मैं चाय बनाती हूं. ये भी आने वाले हैं."

नहा कर श्वेता बिलकुल तरोताजा महसूस कर रही थी. निकिता ने टेबल पर चायनाश्ता लगा दिया था. कार की आवाज सुनते ही वह दरवाजा खोलने लपकी.

"इन से मिलो, महीप मेरे पति."

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