अगर किसी महिला को भावनात्मक रूप से तोड़ना हो तो पुरुषों को सिर्फ़ एक ही रास्ता समझ आता है. महिलाओं को हद दर्जे की नीची-ओछी बातें बोलकर अपने ईगो को ‘फ़ील गुड’ करवाकर उन्हें नीचा दिखाना. महिलाओं के शरीर पर भद्दे टिप्पणी करना.

एक ओर जहां इंटरनेट सभी को सामान रूप से मुखरता प्रदान करने वाला एक साधन है, वहीं दूसरी ओर हमारे आस-पास प्रभावी पितृसत्तात्मक संस्कृति में महिलाओं का ज़्यादा बोलना निषेध है. पितृसत्ता के बनाए खांचे के अनुसार एक आदर्श महिला केवल पुरुष का कहा सुनती है और ज्यादा नहीं बोलती. इसी द्वंद्व के बीच जब एक महिला इन खांचों को तोड़ना चुनती है और ऑनलाइन माध्यमों पर मुखरता से अपनी बात रखती है तो पुरुष का अहंकार आहत होने लगता है. जिसका नतीजा होता है कि वो सोशल मीडिया पर लोगों को ट्रोल करना शुरू कर देते है.

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ट्रोलर कौन होते है?

सोशल मीडिया पर मौजूद ट्रोलर्स, ठीक वैसे ही होते हैं जैसे गली-मुहल्ले में खड़े होने वाले जबरदस्ती के भाई. ये सोशल मीडिया पर कुछ भी अपने मुताबिक न देखने पर ठीक वैसे ही गाली गलौज करने लग जाते हैं जैसे चौक-चौराहों पर खड़े रहने वाले लफंदर किस्म के लड़के जो सबको मुफ्त की सलाह बांटते हैं. इन्हें कपड़ो पर भी आपत्ति हो सकती है, और आपका मजूबती के साथ किसी मुद्दे पर बात रखना भी. जैसे कुछ समय पहले महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज को स्लीवलैस टॉप के लिए ट्रोल किया गया तो इरफान पठान की पत्नी को नेल पॉलिश लगाने के लिए. ये लोग ऐसे लोग है जिनकी भावनाएं संस्कृति, संस्कार और देशप्रेम के नाम पर हिलोरें मारने लगती हैं और फिर बकबक, गालियां और धमकियां शुरू.

आज सोशल मीडिया के दौर पर ये बात आम हो गई है कि कोई भी महिला जो किसी मुद्दे पर अपने विचार वयक्त कर रही हो और वो बात अगर किसी पुरूष को ना पसंद आए तो वो उस पर अभद्र टिप्पणी कर उसका मनोबल तोड़ने की कोशिश करता है.

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देखा जाए तो सच यहीं है कि जो समाज में है, उसी की प्रतिच्छवि सोशल मीडिया पर हमें दिखती है.  इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है. उदाहरण के लिए, घर और घर से बाहर महिलाओं को जिस तरह लांछित होना पड़ता है, सोशल मीडिया में भी उन्हें ठीक वैसी ही उपेक्षा मिलती है. सोशल मीडिया में अधिकतर पुरुष अपनी नारी विद्वेषी भावना बेहिचक प्रकट करते हैं.

सच तो यह है कि लड़कियों को समाज में जितनी बेइज्जती सहनी पड़ती है, ऑनलाइन उससे कई गुना ज्यादा बेइज्जती से उसे दो-चार होना पड़ता है. समाज में तो कुछ ही लोग उन्हें गलत नजरों से देखते हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर उन्हें गलत नजरों से देखने वालो की संख्या कुछ से सैकड़ों हो जाती है. कई बार ऐसे कारणों की वजह से कई लड़कियां पढ़ाई मे अपना ध्यान नहीं लगा पाती और कई बार तो हालात इतने बुरे हो जाते है कि वो आत्महत्या करने को मजबूर हो जाती है. अभद्र टिप्पणी की वजह से वो कई बार बेहद हताश हो जाती है. चूंकि सोशल मीडिया आज की सच्चाई है, इसलिए इसका बहिष्कार भी किया जाना आज के समय में बेहद मुश्किल है.

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#मीटू मुहिम

‘मी टू’ यह शब्द 2006 में सबसे पहले सामने आया. और 2017 में इसने (#MeToo) सोशल मीडिया पर एक आंदोलन की शक्ल ली. अमेरिका की सामाजिक कार्यकर्ता टराना बुर्के ने महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न के खिलाफ 2006 में आवाज उठाई थी. उस वक्त बुर्के ने दुनिया भर की महिलाओं से अपील की कि अगर वो भी इसकी शिकार हैं, तो मी-टू शब्द के साथ इस पर खुल कर बात करें. इसके बाद 2017 में एक बार फिर ये कैंपेन चर्चा में तब आया जब हॉलीवुड अभिनेत्री एलीसा मिलानो ने दिग्गज प्रोड्यूसर हार्वे वीन्सटीन पर योन शोषण का आरोप लगाते हुए कहा कि हार्वे वीन्सटीन ने उनका और तमाम अन्य अभिनेत्रियों का यौन उत्पीड़न किया. एलिसा मिलानो ने 16 अक्टूबर 2017 को ट्विटर पर सभी से अपील की अगर आप भी यौन उत्पीड़न का शिकार हुयी हैं तो #MeToo के साथ खुलकर बोलें. और उसके बाद यह अभियान एक आंदोलन की शक्ल में सामने आया और कई जानी मानी महिलाओं ने खुलासा किया की उनके साथ भी यह अपराध हुआ है. और यहीं से मी-टू कैम्पैन जिंदा हो गया.

समझिए क्या है मी टू कैंपेन?

यौन उत्पीड़न का शिकार होने वालों की चुप्पी टूटने, और शिकारियों के चेहरे से नकाब हटाने की मुहीम का नाम है मी टू कैंपेन. सोशल मीडिया पर #MeToo इस हैश टैग के साथ लोग अपने साथ हुए बुरे अनुभवों को साझा करते हैं और एक हिम्मत और बहादुरी का परिचय देते हुए उन लोगों का नाम उजागर करते हैं जिन्होंने यौन उत्पीड़न किया होता है. यह पूरी प्रकिया है मी टू कैंपेन.

महिलाओं ने सोशल मीडिया पर अपने साथ हुए उत्पीड़न के मामलों पर आपबीती बताते हुए उन पुरुषों के नाम भी खुलकर लिखे जिनके कारण उनको शारीरिक और मानसिक पीड़ा से गुज़रना पड़ा और कई बार तो नौकरी भी छोड़नी पड़ी. इसके तहत हमें कई बड़े नामों के बारे में भी पता लगा और उस पर बहुत सी प्रतिक्रियाएं भी आईं. बहुत से आरोपियों ने इस पर चुप्पी साधना ठीक समझा और बहुतों ने इस पर ‘विक्टिम ब्लेमिंग’ और ‘विक्टिम शेमिंग’ यानी इसके लिए पीड़िता को ही ज़िम्मेदार ठहराया और उसे शर्मसार करने का प्रयास किया.

जिसका इस मूवमेंट मे सबसे बड़ा सबूत तनुश्री दत्ता है. भारत में #मीटू मुहिम की शुरूआत तनुश्री ने की. जब उन्होंने सितंबर में नाना पाटेकर पर वर्ष 2008 में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान उनसे बदसलूकी करने का आरोप लगाया था. इसके बाद कई लोगों ने तनुश्री को ही ताना मारा की वो तब क्यों नहीं बोली जब उनके साथ ये सब हुआ. इसका सबसे बड़ा कारण नाना पाटेकर का बॉलीवुड में बड़ा नाम होना था.

ये बात हमारे समाज में आम है कि जब कभी भी बलात्कार, यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ की घटनाएं सामने आती हैं तो समाज अक्सर महिला को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराता है. इस सिलसिले में कई बार महिलाओं से ऐसे सवाल भी किए जाते हैं जिनके कारण वो उस केस से या तो दूर हो जाती है या तो आत्महत्या कर लेती है.

जिसका मतलब साफ है कि समाज में विश्वास तोड़ने और उत्पीड़न करने वाले नहीं बल्कि पीड़िता ही ज़िम्मेदार होती है. #मीटू आंदोलन अपने आप में कई मायनों में विशेष था. उसकी सबसे बड़ी विशेषता थी कि महिलाएं एक दूसरे के साथ मज़बूती से खड़ी नज़र आईं.

मीटू आंदोलन के साथ बहुत सारे सवाल भी खड़े हुए. जहां कुछ लोगों को कहना था कि ये एलीट महिलाओं का आंदोलन है, तो वहीं कुछ लोगों ने इसे ‘नेम एंड शेम’ यानी नाम लेकर किसी को बदनाम करने की कोशिश कहकर इस आंदोलन का विरोध किया.

हालांकि देखा जाएं तो ये पहली बार था जब भारत में इस तरह का सोशल मीडिया पर यौन उत्पीड़न को लेकर महिलाओं का प्रतिरोध सामने आया.

एकता कपूर और ऋचा चड्ढा को सोशल मीडिया पर मिली रेप की धमकियां

एकता कपूर के ओटीटी प्लेटफॉर्म ऑल्ट बालाजी पर एक वेब सीरीज के प्रसारण के जरिये अश्लीलता फैलाने, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया गया. जिसके बाद सोशल मीडिया पर नाराज लोगों ने एकता कपूर के खिलाफ अभियान छेड़ दिया और रेप और जान से मारने की धमकी मिलने लगी. जिसके बाद एकता कपूर ने धमकियों का जवाब अपने ही अंदाज में दिया था. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, बलात्कार की धमकी, सच में ? यह 2020 है और हम महिला को जान से मारने और बलात्कार की धमकी दे रहे हैं, जो इशू अब है भी नहीं. सीरीज से आपत्तिजनक सीन्स को हटा दिया गया है. यह सीन्स नहीं बल्कि लोगों की मानसिकता में दिक्कत है.

ऐसे ही बॉलीवुड एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा को रेप और जान से मारने की धमकी मिली थी. दरअसल, ऋचा ने 5 मई को एक ट्वीट किया था जिसमें लिखा था,’हां है भारत में हिंदू धर्म को ख़तरा. हिंदू धर्म को ख़तरा है हिन्दुत्ववादियों से. धर्म बचाओ,हिन्दुत्ववादियों को भगाओ. जनहित में जारी. जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना होने लगी. एक यूजर ने लिखा,’फिल्मों में रोल की भीख मांगने के लिए दुष्कर्म के नाम पर हिन्दुओं के धर्मस्थलों को बदनाम करने वालों को भगाओ, हिंदू धर्म और देश को बचाओ’. इसपर जवाब देते हुए ऋचा ने लिखा, ‘हे ट्वीप्स, मैं टारगेट किए जाने या फिर गाली दिए जाने की परवाह नहीं करती, देश में इतनी बेरोजगारी है अगर कोई 10 रुपए लेकर एक ट्वीट कर रहा है तो इसके लिए मैं उन्हें जज नहीं करने जा रही लेकिन रेप और मर्डर की धमकी? कम ऑन ट्विटर इंडिया।’

‘बॉयज़ लॉकर रूम’

इंस्टाग्राम पर एक ‘ब्वॉयज लॉकर रूम’ नाम से कुछ स्कूल के लड़कों ने चैट ग्रुप बना रखा था. दो लड़के इस ग्रुप के एडमिन थे. नाबालिग होने के कारण आरोपियों की पहचान छिपाई जा रही है. इस ग्रुप के जरिए नाबालिग लड़कियों की तस्वीरें साझा की जा रही थीं और उन्हें ऑब्जेक्टिफाइड किया जा रहा था. 20-25 से ज्यादा लड़के लड़कियों की नग्न तस्वीरों की मांग कर रहे थे और दूसरे उन्हें शेयर कर रहे थे. इसके बाद उस लड़की के साथ कौन-कौन रेप करेगा इसकी साजिश की जा रही थी.

लड़के अपनी करीबी दोस्त, गर्लफ्रेंड तक की तस्वीरें शेयर करने लगे और उनके शरीर को लेकर भद्दी टिप्पणियां की जाने लगीं. जैसे बड़ा फेमिनिस्ट बनना है न सबको. अब उन्हें पता चलेगा. कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगी. ये बातें ‘बॉयज़ लॉकर रूम’ में लड़कों की चैट का एक छोटा सा हिस्सा है, लेकिन ये बातें हमारे समाज में पल रही पितृसत्तामक सोच को दिखाने के लिए काफी है. इस तरह की बातें सुनना तो सोशल मीडिया पर महिलाओं के लिए आम बात है. इस पुरुष प्रधान समाज में जब भी कोई महिला इन सब के खिलाफ खड़ी हो तो उसे चुप कराने के लिए बात-बात पर उसे इज़्ज़त का डर दिखाना आम बात है ताकि किसी तरह वो अपना मुंह बंद कर लें. कुछ यही कहानी ‘बॉयज़ लॉकर रूम’ की भी थी, जहां एक सोशल मीडिया ऐप इंस्टाग्राम पर धड़ल्ले से लड़कियों के खिलाफ अश्लील बातें चल रही थी, गैंगरेप की योजनाएं बन रही थी.

जैसे ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम के ‘बॉयज़ लॉकर रूम’ ग्रुप से चैट के कुछ स्क्रीनशॉट लीक हुए. इस ग्रुप की चैट्स जिसने भी पढ़ा अपना माथा पकड़ लिया. कारण साफ है ये बातें ऐसी हैं, जिसे सभ्य समाज में पढ़ना तो दूर कोई सुनना भी बर्दाश्त न करें. लेकिन इसके साथ ही हम भूल गए कि ये सारी बातें लगभग 15 से 18 साल के लड़कों के दिमाग में आई कहा से?

इसी पर बात करते हुए सोशल एक्टिविस्ट जगीशा अरोड़ा कहती है, “ये कुछ नया नहीं है. हमारे समाज में महिलाएं हमेशा से पुरुषों के लिए एक वस्तु की तरह है. हम सोचते है कि समाज बदल रहा है समाज का नजरिया और सोच बदल रहा है, लेकिन ऐसा कभी हुआ ही नहीं. फक्र बस इतना है कि समाज में रह रहें लोग अपने मन की बातें कभी-कभी दबा लेते है. लेकिन सोशल मीडिया पर उन्हें लगता है कि उन्हें पूरा हक है इस बात का की वो किसी भी महिला को कुछ भी कह सकते है इसलिए जो उनके मन में होता है बोल जाते है. साथ ही फ्री इंटरनेट से इस तरह की हरकतों को बढ़ावा मिल गया है. ”

जगीशा आगे कहती है, “इस तरह की घटनाओं से महिलाओं को डरना नहीं चाहिए. बल्कि और मजबूत तरीकें से सामने आना चाहिए और अपनी बातों को और मजबूती और बेहतर तरीकें से समाज में रखना चाहिए. अगर इन घटनाओं से महिलाएं डर जाएंगी तो इस तरह की सोच के लोगों की हिम्मत बढ़ती जाती है. साथ ही ऐसे लोगों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और इनके खिलाफ शिकायत दर्ज करवानी चाहिए.”

अगर आपके साथ ऐसा हो तो क्या करें आप

अगर कोई फोन करके या मैसेज करके या फिर सोशल मीडिया पर किसी महिला या लड़की को रेप या यौन हिंसा की धमकी देता है, तो यह अपराध है. इसके लिए भारतीय दंड सहिंता यानी आईपीसी की धारा 354A, 506 और 509 के तहत पुलिस में शिकायत की जा सकती है. इसके साथ ही इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट यानी आईटी एक्ट 2000 की धारा 67 के तहत भी मामला दर्ज कराया जा सकता है.

अगर पीड़ित महिला अपराधी को जानती है, तो उसके नाम यह केस दर्ज किया जाएगा. यदि अपराधी की पहचान नहीं हो पाती है, तो अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया जाएगा. इसके बाद पुलिस मामले की जांच करेगी और आरोपी को गिरफ्तार करके जेल भेजेगी.

क्या है सजा का प्रावधान

ऐसे अपराधी को आईपीसी की धारा 354A के तहत 3 वर्ष के कठोर कारावास की सजा और जुर्माना हो सकती है. इसके साथ ही आईपीसी की धारा 506 के तहत 2 वर्ष की सजा और 509 के तहत 3 वर्ष की सजा व जुर्माना दोनों का प्रावधान है. ऐसे मामलों में आईटी एक्ट 2000 की धारा 67 के तहत भी अपराधी को सजा मिलती है. इस धारा के तहत पहली बार ऐसा अपराध करने पर 3 साल की सजा और पांच लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है, जबकि दोबारा ऐसा अपराध करने पर 5 साल की जेल और 10 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है.

महिला आयोग में भी करें शिकायात

आप अपनी शिकायत महिला आयोग में भी कर सकती है. इसके बाद महिला आयोग पीड़िता की सहायता के लिए सामने आता है और अपराधी को सजा दिलाने की कोशिश करता है.

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