Social Media Addiction : सोशल मीडिया पर लोग लाइक व शेयर की भीख मांग रहे हैं. एलीट सेक्शन के पास दिखाने के लिए क्रिएटिविटी है तो यह भीख ढक-छिप जा रही है मगर गरीब बिना क्रिएटिविटी के इस दलदल में अपने मूल मुद्दों से भटक रहा है. जानिए क्यों रची जा रही यह साजिश.
सोशल मीडिया धीरेधीरे लोगों से सैन्स औफ क्वेश्चनिंग की प्रवृत्ति खत्म करती जा रही है. खासकर गरीब अपनी समस्याओं के समाधान सोशल मीडिया में खोजने लगे हैं और अपनी सफलता व असफलता के लिए सोशल मीडिया पर निर्भर होने लगे हैं.
एक समय था जब गरीब से गरीब अपनी परिस्थिति के लिए जिम्मेदार देश के लचर सिस्टम को मानता था. वह इतना तो सोचता ही था कि चूंकि सिस्टम को चलाने वाले ईमानदार नहीं हैं इसलिए देश और उन की यह हालत है. इस से होता-जाता भले कुछ न था मगर सरकारों में बैठे नेताओं को इन के सामने झठमूठ का ही सही झकना जरूर पड़ता था.
जल्दी अमीर बनने की जुगत
आज के टैक जायंट्स के बनाए एप्लीकेशन और उन से जल्द अमीर बन जाने की उम्मीद उन्हें ऐसी दुनिया में धकेल रही है जहां सिवा माथा पीटने के और कुछ नहीं है. गरीब से गरीब आज इन्फ्लुएंसर बनने की होड़ में फंस चुका है. अधिकतर को यह लगने लगा है कि सोशल मीडिया बहुत जल्दी और आसान जरिया है अमीर और सफल बनने का. इस के लिए सब से निचले पायदान वाला व्यक्ति भी हर संभव कोशिश/हरकतें कर रहा है जिस से उस के जीवन में सुधार आ सके.
खुद प्रधानमंत्री मोदी ने रील्स बनाने को अपनी सरकार की उपलब्धि घोषित कर दिया है. उन्होंने बिहार के समस्तीपुर में चुनावी रैली के दौरान कहा, ‘एनडीए सरकार के कार्यकाल में इंटरनेट आम जनता को सुलभ हो पाया. आज एक डाटा जीबी की कीमत एक कप चाय से भी कम है, इसलिए युवा इंटरनेट पर क्रिएटिविटी दिखा कर कमाई कर पा रहे हैं.’
इस का मतलब सीधा है कि सरकार ने जनता को उस के हाल पर छोड़ दिया है. बेरोजगार देशवासी रोजी-रोटी के लिए क्या करते हैं, कैसे करते हैं, सब उन्हीं पर है. यही कारण भी है कि देश में गरीब से गरीब तबके में सैन्स औफ क्वेश्चनिंग खत्म होती जा रही है और वे रील्स बना कर समय भरोसे बैठे हैं.
सोशल मीडिया पर ऐसी कई रील देखने को मिलती हैं जिन में टूटे छप्पर, दीवारों की झड़ती पपड़ियां और झग्गीझंपड़ी में बैठा अपाहिज व्यक्ति सोशल मीडिया पर हाथ जोड़े फॉलोअर्स और लाइक्स की भीख मांग रहा है. यह भीख ठीक उसी तरह की है जैसे सड़कों पर भिखारी पैसों की भीख मांगते हैं. हां, मगर इस का डिजिटलाइजेशन हो गया है.
ऐसा एक विकलांग राजू नाम का फेसबुक पर पेज है. इस के सोशल मीडिया पर 47 लाख के लगभग फॉलोअर्स हैं और 26 लाख लाइक्स हैं. इस ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा है, ‘‘प्लीज भाई, अपने विकलांग भाई को फुल सपोर्ट कीजिए, शेयर कीजिए.’’
इस ने 6 नवंबर को एक रील पोस्ट की है जिस में यह एक बच्ची के साथ है. इस ने लगभग फटे कपड़े पहने हैं. पैरों से विकलांग है. जमीन पर बच्ची के लिए खाना पड़ा हुआ है जिसे वह खा रही है. यह इस वीडियो में कह रहा है, ‘‘आप को इस वीडियो को देखने में शर्म आ रही है. क्यों आप देखोगे. बच्ची जमीन से उठा कर खाना खा रही है. आप लोग छोटे कपड़े पहने डांस करती लड़की को भर-भर कर देखते हो, लेकिन ऐसी वीडियो कोई नहीं शेयर करेगा जिस में बच्ची जमीन से खाना उठा कर खा रही है. देखते हैं कौन-कौन शेयर करता है.’’ इस रील को 500 लोगों ने लाइक किया है.
समस्या यह नहीं है कि वह लड़की जमीन पर पड़ा हुआ खाना खा रही है, समस्या यह भी नहीं कि यह आदमी गरीब है, बल्कि समस्या यह है कि यह उस जोड़-गणित में फंस गया है जहां इन जैसों की समस्या का कोई समाधान नहीं.
यह अपनी एक और वीडियो में कह रहा है कि, ‘‘रुको भैया, एक वीडियो कम देखना मगर इस गरीब मां-बच्ची का वीडियो है लेकिन इसे शेयर कर देना.’’ हैरानी यह कि यह भी जान चुका है कि कितने समय की रील सोशल मीडिया पर चलती है. इस की अगली रील में उस ने एक बच्ची को अपने कंधे पर उठाया हुआ है और एक डंडे के सहारे लंगड़ा कर चल रहा है. इस में भी वह लाइक व शेयर करने की भीख मांग रहा है. इस रील को 6 हजार लोगों ने लाइक भी किया है.
इस पर मनीष गुप्ता नाम का यूजर कमैंट करता है, ‘‘करते रहो मेरे भाई, भगवान भोलेनाथ सब सही करेंगे.’’ लेकिन वह यह नहीं समझ रहा कि भोलेनाथ को अगर सही करना होता तो ऐसा खराब करता ही क्यों?
चाहे जितने लाइक मिले हों. भगवान भरोसे बैठे रहता तो वह रील पर लाइक शेयर की भीख न मांग रहा होता. सोशल मीडिया में राज जैसे लोग भरे पड़े हैं जो अपनी समस्या का समाधान सोशल मीडिया में खोजने लगे हैं.
ऐसा ही एक संतोष पांडे है. इस की वीडियो में पीछे ईंटों का बना मकान दिखाई देता है. उसी पैटर्न (राजू विक्लांग जैसे पैटर्न) में यह वीडियो बना रहा है. इस के भी 27 लाख फॉलोअर्स हैं. इस की वीडियो में यह व्यक्ति ज्यादातर अपनी पत्नी और बच्ची के साथ नजर आता है. अकसर वीडियो में बच्ची बोलती दिखाई देती है. लड़की को इतना ट्रैंड कर लिया है कि वह कैमरे में देख कर लाइक और फॉलो के लिए प्रार्थना कर रही है. इस में बोलने की शुरुआत विकलांग आदमी ही करता है. वह शुरू होते ही हाथ जोड़ कर भीख मांगते हुए रुकने की अपील करता है, फिर कहता है कि विकलांग की वीडियो देखते हुए जा भाई.
इस की कुछ वीडियोज 2 करोड़ तक वायरल हुई हैं लेकिन पैटर्न देखने से लगता है कि अधिकतर कुछ हजार में ही देखी जा रही हैं. संतोष सैकड़ों में रील बना चुका है. यानी, पूरा काम उस का इसी रील से चल रहा है. दिलचस्प यह कि विकलांग कैटेगरी में बनने वाली रील में पूरा परिवार ही रील बना रहा होता है.
देहात में गरीबी का कंटेंट
ठीक ऐसे ही संगीता गोस्वामी नाम की एक और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर है. इस के 51 लाख फॉलोअर्स हैं. यह 12 लोगों को फॉलो करती है. इस की सब से रीसेंट वीडियो 6 नवंबर को पोस्ट हुई जिस में यह किसी खेत से भागते हुए कैमरे की तरफ गिरते-पड़ते आती है, रोते-बिलखते हुए यह कहती है, ‘‘भैया, एक मिनट मेरी बात सुनो. गरीब का भी सपोर्ट कर दो. मैं खेती करती हूं, मजदूरी करती हूं. आप लोगों से पैसा नहीं मांगती. बस, एक शेयर कर दो. इस गरीब की मदद हो जाएगी. आप से निवेदन है कि इसे मिलियन तक पहुंचा दो.’’
पहले एक घंटे में इस रील को 800 लोगों ने लाइक किया. कईयों ने कमेंट भी किए. मगर समस्या यह कि कमेंट करने वाले भी इन्हें यह नहीं बता पा रहे कि ऐसा करने से होना-जाना कुछ नहीं है. यह ठीक वैसा ही है जैसा राह चलते भीख मांगना है. अगर किसी ने लाइक कर दिया तो कर दिया वरना न इन वीडियो के कंटेंट में कुछ अलग है न कुछ खास. ऊपर से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने अपने नियम ऐसे सख्त बना दिए हैं कि रिपीटेड कंटेंट को वह काउंट नहीं करता. यानी, कोई इनकम नहीं.
फेसबुक पर रोहित प्रजापति नाम का एक और व्यक्ति है जिस के फॉलोअर्स करीब 54 लाख हैं. रोहित के दोनों हाथों के पंजे नहीं हैं. देखने से लगता है, शादी हो चुकी है क्योंकि उस की अधिकतर रील में उस की पत्नी दिखाई देती है. इस ने भी 5 नवंबर को एक रील पोस्ट की है, जिस में इस की पत्नी नकली हाथ ले कर उस के पास आती है और रोहित झठमूठ रो रहा होता है. बैकग्राउंड में गाना चल रहा है, ‘तुम को जुगनी बन के चमकना दिन हो चाहे रात हो…’ इस गाने के बीच में महिला दोनों थम्ब दिखा कर कहती है, ‘‘प्लीज भैया, मेरे पति के लिए वीडियो को लाइक और शेयर कर दो.’’
यह तो फिर भी ठीक है. रील्स वायरल करने के लिए देहात में लोग कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं. मध्य प्रदेश के झबुआ जिले में एक खतरनाक घटना घटी. वहां 18 साल के युवक ने मुंह में सुतली बम फोड़ दिया. इस घटना में उस के जबड़े के चीथड़े उड़ गए. रील्स के वायरल होने की कीमत पर उस ने अपने जबड़े के चीथड़े उड़ा दिए.
जिम्मेदारी से मांगती सरकार
सवाल यह है कि सरकार ऐसे युवाओं और लोगों की फौज तैयार करना चाहती है जो बेगारी में जी रही हो और सरकार से सवाल करने के बजाय रील में अपना माथा फोड़ रही हो. यह कितनी बड़ी त्रासदी है कि लोग अब इस सिस्टम से अपनी उम्मीद खो बैठे हैं और जिस से उम्मीद लगाए बैठे हैं वह उसे अपने इशारे पर नचा रहा है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में बेशक कुछ लोग बेहद तेजी से अमीर हुए, कुछ आगे बढ़े, मगर साजिश के तहत एक पूरा तंत्र इस बात का प्रोपेगेंडा करने में लग गया है कि ‘आप सोशल मीडिया पर लगे रहिए, जल्दी अमीर हो जाएंगे.’
इस साजिश का अंजाम यह है कि आज कोई भी सरकार से अपनी समस्याओं पर सवाल नहीं कर रहा है. सभी लग गए हैं मोबाइल से वीडियो शूट करने में. वे अपना जबड़ा फाड़ रहे हैं, वे गिर-पड़ रहे हैं, रोधो रहे हैं, मगर सरकार से कुछ नहीं पूछ रहे. इन लोगों में सैन्स औफ क्वेश्चन खत्म होती जा रही है. ये इंडिविजुअली सोच रहे हैं मगर कलैक्टिव कुछ नहीं सोच पा रहे. यही कारण भी है कि कोई भी नेता इस स्थिति पर कुछ नहीं कह रहा, सभी को पता है कि वे कहेंगे तो आगे उन्हीं का नुकसान है. आज सरकारों की अब न कोई जवाबदेही रह गई है न जिम्मेदारी. Social Media Addiction :





