Future Health Problems : आज इंसान डिजिटल युग में जी रहा है, उस की आंखें असली दुनिया से दूर जा रही हैं. हर हाथ में स्मार्टफोन है लेकिन मन में बढ़ती थकान और तनाव. बच्चे खेल के मैदान छोड़ कर मोबाइल की स्क्रीन में कैद हैं.
हमारी नींद, नजर और मानसिक शांति सब स्क्रीन-लाइट में खो रहे हैं. अब वक्त है यह सोचने का कि तकनीक हमें चला रही है या हम तकनीक को?
आज का युग स्मार्ट हो चुका है, स्मार्टफोन, स्मार्ट-वॉच, स्मार्ट टीवी, स्मार्ट घर, स्मार्ट क्लासरूम, स्मार्ट थिएटर. पर इसी स्मार्टनैस के पीछे धीरे-धीरे हमारी सेहत स्लो होती जा रही है.
हमारी सुबह की शुरुआत मोबाइल की घंटी से होती है और रात का अंत मोबाइल स्क्रीन के साथ. इस बीच आधा टाइम रील्स खा जाता है. बच्चे खेल के मैदानों से ज्यादा गेमिंग स्क्रीन पर, युवा दफ्तर से ज्यादा चैट ग्रुप्स पर और बुजुर्ग रिश्तों से ज्यादा रील्स पर बंध गए हैं. सवाल यह नहीं कि गैजेट्स गलत हैं बल्कि यह है कि हम उन का उपयोग कर रहे हैं या वे हमें उपयोग कर रहे हैं?
तकनीक की दुनिया : हर हाथ में एक स्क्रीन
आज औसतन हर व्यक्ति के पास 2 से अधिक डिजिटल उपकरण हैं जैसे स्मार्टफोन, टैबलेट, लैपटॉप, स्मार्ट-वॉच, गेमिंग कंसोल, स्मार्ट टीवी. यह तकनीक बढ़िया है. हमारे एक क्लिक पर चीजें औन-औफ होने लगती हैं. सब हमें सहूलियत और सुविधा देते हैं जिस से जिंदगी आसान हुई है.
सुविधा के नाम पर ये सब अब जीवन का हिस्सा बन चुके हैं, पढ़ाई, नौकरी, मनोरंजन, खरीदारी और यहां तक कि नींद और भोजन तक. लेकिन इन उपकरणों की कीमत हमारी सेहत और मानसिक संतुलन चुका रहा है.
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