ऋचा बढ़ेबूढ़ों का जिक्र आते ही मुसकरा पड़ती हैं और कहती हैं, ‘‘बच्चेबूढ़े एक समान होते हैं. उन्हें जिस काम को करने से मना किया जाता है वे उसे करने के लिए अतिउत्साहित रहते हैं.’’ ऋचा आगे कहती हैं, ‘‘एक बार मेरी सासूमां को मौडर्न बनने का भूत सवार हुआ. वे घर में काम करने वाली लड़की से बाल ट्रिम करवाने और आईब्रो बनवाने की जिद पकड़ बैठीं. जब उस ने ऐसा करने से मना कर दिया तो उन्होंने उस के हर काम में गलती निकालना शुरू कर दिया.’’
न्यूकासेल यूनिवर्सिटी के हैल्थ प्रमोशन रिसर्च ग्रुप के बुजुर्गों में पनपे सामाजिक अलगाव और एकाकीपन को ले कर किए गए अध्ययन के अनुसार, ‘बढ़ती उम्र के साथ बुजुर्ग अकेलेपन और सामाजिक अलगाव का शिकार होने लगते हैं और इसी अकेलेपन और भावनात्मक अलगाव का परिणाम होता है कि बुजुर्ग अपना महत्त्व दिखाने के लिए बच्चों जैसे काम करने लगते हैं और तब समस्या शुरू होती है उन से जुड़ी अगली पीढ़ी की जो अपने बुजुर्गों की सेवा करना चाहती है मगर बड़ेबूढ़ों की जिद और आदतों के चलते उन की सेवा करना आसान नहीं रह जाता.’
एक डाक्टर का कहना है कि उन के पास अकसर ऐसे ओल्डऐज पेशेंट्स आते हैं जिन की समस्याएं निराली होती हैं जिन्हें सुलझाने के लिए कई बार उन के बच्चों से भी बात करनी पड़ जाती है. उन के पास एक ऐसी बुजुर्ग पेशेंट आती हैं जिन की बेटी ने बताया कि उन की मां अचानक रात को उन के कमरे का दरवाजा भड़भड़ाने लगती हैं क्योंकि वे चाहती हैं कि बेटी उन के पास आ कर सोए. अपने जीवनसाथी की मृत्यु के बाद उन्हें अकेलापन इतना काटता है कि उन्हें अकेले रहने से डर लगता है. दिन का सूनापन वे अपने छोटेछोटे नातीनातिन से बांट लेती हैं मगर रात का भयावह सूनापन उन्हें इतना खलता है कि वे चाहती हैं कि उन का कोई अपना पास हो, जिस के साथ वे अपना एकाकीपन बांट सकें. उन की मां की ऐसी आदत से उन की स्थिति बड़ी असमंजस वाली हो गई है. समझ नहीं आता कि वे इस पसोपेश से कैसे निकलें.